
India Justice 2025 Report: साउथ इंडिया के राज्यों की पुलिसिंग, जेल और इंसाफ देश के बाकी राज्यों के मुकाबले कई ज्यादा बेहतर है. पुलिसिंग के मामले में तेलंगाना पहले नंबर पर है, वहीं बद से बदतर पुलिसिंग के लिए पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश का नाम आता है. इसी तरह जेल और इंसाफ के मामले में भी पश्चिम बंगाल और यूपी निचले पायदान पर हैं. पेश इंडिया जस्टिस 2025 की पूरी रिपोर्ट.
हमारे देश का पूरा ज्यूडीशियल सिस्टम य़ानि न्यायिक व्यवस्था थाने से शुरु होता है और कचहरी में खत्म. इसी थाने से कचहरी तक की इस दूरी को तय करने में कौन कितना वक्त लेता है? कौन कितनी ईमानदारी से अपना काम करता है? और किसके पास कितनी बुनियादी सहूलियत है? इसी से तय होता है कि हमारी न्यायिक व्यवस्था कैसी है? और यहीं से ये सवाल उठता है कि क्या दक्षिण के राज्यों में कानून व्यवस्था ज्यादा बेहतर है? क्या दक्षिण भारत के राज्यों की पुलिस, वहां की अदालतें और वहां की जेल उत्तर भारत के मुकाबले ज्यादा बेहतर हैं? और क्या देशभर में सबसे बदतरीन और बुरी पुलिस पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश की है? क्या जेलों, अदालतों और कानूनी मदद के मामले में भी देश के तमाम बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे पीछे है?
जिस तरह लोकतंत्र के चार पिलर न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया है. ठीक उसी तरह हमारे देश में इंसाफ के भी चार पिलर हैं. पुलिस, कोर्ट, जेल और कानूनी सहायता. अगर ये चारों सही से काम कर रहे हैं तो समझ लीजिए देश का जस्टिस सिस्टम बेहतरीन है. लेकिन अगर इनमें से एक भी अपना काम ठीक से नहीं करता तो पूरी न्यायिक व्यवस्था चरमरा सकती है.
हमारे देश में अदालतें, पुलिस और जेल किस हाल में है, कैसा काम कर रही हैं, इसको लेकर 15 अप्रैल को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की तरफ से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 जारी की गई. इस रिपोर्ट में देश भर में पुलिस, जेल, ज्यूडिशरी और कानून मदद का पूरा हाल बताया गया है. ये रिपोर्ट सरकारी आंकड़ों और 100 से ज्यादा सबूतों के आधार पर तैयार की गई है.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में देश भर के राज्यों को दो अलग अलग हिस्सों में बांटा गया है. एक बड़े राज्य और दूसरा छोटे राज्य. बड़े राज्यों में कुल 18 राज्यों को पुलिस, जेल, जूडिशियरी और कानूनी मदद के मामले में अच्छे या बुरे काम के लिए रैंकिंग दी गई है. इस रैंकिंग में पुलिसिंग के मामले में तेलंगाना को सबसे बेहतर राज्य करार दिया गया है. जबकि पश्चिम बंगाल को सबसे बदतर. बदतर पुलिसिंग के मामले में पश्चिम बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश का नाम आता है.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस, जेल, जूडिशियरी और कानूनी मदद की ओवरऑल रैंकिंग में कर्नाटक पहले नंबर पर है. आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर, तेंलंगाना तीसरे नंबर पर, केरल चौथे नंबर पर और तमिलनाडू पांचवें नंबर पर. यानि टॉप फाइव राज्य में सभी दक्षिण भारत के राज्य है. इनमें से एक भी उत्तर भारत का राज्य नहीं है.
पूरी रैंकिंग पर नज़र पर डालें तो देश भर की पुलिसिंग में महिलाओं की हालत भी उतनी बेहतर नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुल 20 लाख पुलिसवाले हैं, इनमें से महिला पुलिस की तादाद 2 लाख 42 हजार है. इन 2 लाख 42 हजार महिला पुलिस में से 90 फीसदी महिलाएं कॉंस्टेबल के पद पर हैं. 1 हजार से भी कम ऐसी महिलाएं हैं जो सीनियर पोजिशन यानि एसपी या डीजी जैसे पदों पर हैं. 2 लाख 42 हजार महिला पुलिसकर्मियों में से सिर्फ 960 IPS अफसर हैं. जबकि देश भर में कुल IPS अफसर की तादात 5047 है.
रिपोर्ट कहती है कि जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच देशभर में पुलिस अधिकारियों के 64 हजार नए पद मंजूर हुए लेकिन भर्ती सिर्फ 44 हजार पदों पर हुई. इस दौरान पुलिस अफसर के 28 से 32 फीसदी पद खाली रहे. यानि हर 4 में से एक अधिकारी का पद खाली है.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में औसतन 1 पुलिसवाले पर 831 लोगों की जिम्मेदारी का भार है. जबकि बिहार में एक पुलिस के जिम्मे 1522 लोग, उड़ीसा में 1298 लोग, और पश्चिम पंगाल में 1 पुलिस पर 1277 लोगों का भार है. इस मामले में देश के 18 सबसे बड़े राज्यों में पंजाब की हालत सबसे बेहतर है. जहां एक पुलिस के जिम्मे 504 लोगों का भार है.
देशभर की पुलिसिंग में एससी समुदाय की भागीदारी 17 फीसदी जबकि एसटी समुदाय की भागीदारी 12 फीसदी है. अगर मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही अकेले हर जज पर 15-15 हजार केसों का भार हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश भर में पेंडिंग केसों की तादाद क्या होगी। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के आखिर तक देश में पेंडिंग केसों की तादाद 5 करोड़ तक पहुंच गई है. देश के 17 बड़े राज्यों की निचली अदालतों में ही 25 फीसदी से ज्यादा ऐसे केस हैं जो 3 साल से पेंडिंग पड़े हैं.
2024 के आखिर तक सिक्किम, त्रिपुरा और मेघालय को छोड़े दे तो बाकी ज्यादातर हाईकोर्ट में हर जज पर औसतन 1 हजार से ज्यादा केसों का वर्कलो़ड है। जिला स्तर पर हर जज पर औसतन 500 से ज्यादा केस लंबित पड़े थे. जिला स्तर पर पेंडिंग पड़े केस के मामले में यूपी सबसे आगे है. यूपी में जिला स्तर पर हर जज पर 43 सौ केसों का भार है. जबकि कर्नाटक में 1750 और केरल में हर जज पर 38 केसों का भार है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 140 करोड़ की आबादी वाले देश में कुल 21 हजार 285 जज हैं. लेकिन अब भी हाईकोर्ट में 33 फीसदी और निचली अदालतों में जजों के 21 फीसदी पद खाली हैं. देश की हर 10 लाख की आबादी पर कुल 15 जज हैं. अगर खाली पदों पर जजों की बहाली हो जाए तो हर 10 लाख की आबादी पर 19 जज हो जाएंगे. यहां गौर करने वाली बात ये है कि विधि आयोग ने 1987 में ये सिफारिश की थी कि हर 10 लाख की आबादी पर कम से कम 50 जज होने चाहिए.
पुलिसिंग के मुकाबले ज्यूडिशियरी में महिलाओं की भागीदारी थोड़ा बेहतर है. लोअर कोर्ट्स में 38 फीसदी जज महिला है. जबकि हाईकोर्ट्स में 14 फीसदी महिलाएं जज हैं. यानि इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के हिसाब से जजों के सबसे ज्यादा खाली पद देश के अलग अलग हाई कोर्ट में हैं. यही वजह है कि हाईकोर्ट में ना सिर्फ पेंडिंग केसों की तादाद बहुत ज्यादा है बल्कि हाईकोर्ट के हर जज पर केसों का भार भी ज्यादा है. देश के 25 हाईकोर्ट में करीब 51 फीसदी मुकदमे 5 साल से भी ज्यादा अरसे से पेंडिंग पड़े हैं. कई अदालतों में तो 70 फीसदी से ज्यादा केस लंबित है. इस मामले में पश्चिम बंगाल का हाल तो और भी बुरा है. यहां निचली अदालतों के हर एक जज पर 1 लाख 14 हजार 334 लोगों को इंसाफ देने की जिम्मेदारी है.
देश की 50 फीसदी जेल ओवरक्राउडेड
इंडिय़ा जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर की 50 फीसदी से ज्यादा जेल ओवरक्राउडेड है. कुछ जेल तो ऐसे हैं जहां क्षमता से लगभग 400 फीसदी ज्यादा कैदी हैं. रिपोर्ट में देश की सबसे ज्यादा भीड़ वाली टॉप फाइव जेलों में पहले नंबर पर मुरादाबद डिस्ट्रिक जेल, दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल की कोंडी सब जेल, तीसरे नंबर पर दिल्ली की तिहाड़ जेल नंबर 4, यूपी की ज्ञानपुर डिस्ट्रिक जेल और दिल्ली की ही तिहाड़ जेल नंबर 1 है.
विचाराधीन कैदियों की वजह से बढ़ रही भीड़
रिपोर्ट के मुताबिक, इस वक्त की देश की अलग अलग जेलों में 5 लाख 70 हजार कैदी बंद हैं. इनमें से सिर्फ 1 लाख 40 हजार सजायाफ्ता कैदी हैं. बाकी के 4 लाख 30 हजार अंडर ट्रायल यानि विचाराधीन कैदी हैं. यानि देशभर की जेलों में बंद 5 लाख 70 हजार कैदियों में से लगभग 76 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं. जिनके मुकदमों का फैसला होना अभी बाकी है. अब जाहिर है जब 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमें अदालतों में लंबित है तो इन 76 फीसदी विचाराधीन कैदियों का फैसला जल्द आएगा ये सोचना ही बेमानी है, इसीलिए देश की जेलों की भीड़ इन्ही विचाराधीन कैदियों की वजह से लगातार बढ़ती जा रही है.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने देश के छोटे और बड़े जेलों की भी रैंकिंग की है. इस रैंकिंग के हिसाब से टॉप 3 बेहतर जेलों में तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल के जेल हैं. जबकि देश की सबसे तीन बुरी जेलों में उत्तराखंड, झारखंड और उत्तर प्रदेश की जेल है. रैंकिंग के हिसाब से देश के 18 बड़े राज्यों की लिस्ट कुछ इस तरह बनाई गई है-

इसी तरह देश के सात छोटे राज्यों के जेलों की भी रैंकिंग निकाली गई है. इनमें सबसे बेहतरीन जेल के मामले में अरुणाचल प्रदेश पहले नंबर पर है जबकि गोवा की जेल को सबसे बुरा बताया गया है.
इसी तरह इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने देश के अलग अलग राज्यों की ज्यूडिशियरी रैंकिंग भी दी है. ज्यूडिशियरी के मामले में सबसे बेहतरीन टॉप 3 राज्यों में केरल, तेलंगाना और तमिलनाडू का नाम है. जबकि ज्यूडिशियरी को लेकर सबसे बदतर राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का नाम है. कुल 18 राज्यों की रैंकिग इस तरह है-

ज्यूडिशियरी को लेकर सात छोटे राज्यों की भी सूची जारी की गई है. इनमें बेहतरीन काम के लिए त्रिपुरा पहले पायदान पर है जबकि बदतर ज्यूडिशियरी के लिए सबसे नीचे गोवा का नाम है. सात छोटे राज्यों की पूरी लिस्ट ये रही-
इंडिया जस्टिस की ये रिपोर्ट सरकारी महकमों से जुटाए गए आंकड़ों को सामने रखकर तैयार किेए गए हैं. मसलन BPRND यानि ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट, इंडियन जेल स्टैट्स-टिक्स, CAG और NALSA जैसे सरकारी स्रोतों से डेटा लिए गए हैं.