दिल्ली के अस्पताल में सिर्फ एक बेड के लिए तीन-तीन जानें चली गईं. डेंगू का शिकार हुए सात साल के बेटे को किसी अस्पताल ने बेड नहीं दिया. इकलौते बेटे की मौत से दुखी मां-बाप ने खुद ही मौत को गले लगा लिया.
दिल्ली जो देश की राजधानी है. जहां से देश पर हुकूमत की जाती है. दिल्ली में वो सब कुछ है जो दुनिया के किसी भी आधुनियक शहर में होनी चाहिए. दिल्ली शहर में अस्पताल दर अस्पताल भटकता, सिसकता, घिसटता एक लड़का मर गया. बेटे की मौत के बाद उसके मां-बाप भी मर गए. मरे भी ऐसे कि मरने से पहले ये तय कर लिया था कि बचना नहीं है. शायद बच कर दोनों फिर कभी किसी बीमार अस्पताल का मुंह नहीं देखना चाहते थे.
शहर के सीने पर खड़े उन आलीशान, शानदार, फाइव स्टार नुमा अस्पतालों को क्या कहें? जिन अस्पतालों की बुनियाद ही जिदगी की ईंट पर रखी जाती है. अगर ये सच ना होता तो सात साल का अविनाश डेंगू से नहीं मरता और अविनाश के मां-बाप अपने बेटे की चिता की राख ठंडी होने से पहले ही एक-दूसरे का हाथ एक-दूसरे के साथ बांध कर चौथी मंजिल से कूदे नहीं होते.
दिल्ली सरकार के आंकड़े कहते हैं कि साल 2010 से 2014 के बीच दिल्ली में 1221 लोगों की मौत हुई. अविनाश का पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी यही कहेगा कि वो डेंगू उसकी जान ली . अविनाश डेंगू से नहीं मरा बल्कि उसे तो अस्पतालों ने मारा. अविनाश के उसके मां-बाप के कातिल भी अस्पताल ही हैं.
अविनाश के पिता लक्ष्मीकांत और मां बबिता को पता चला कि उनके बेटे को डंगू हो गया है. लक्ष्मीकांत ने यह सुन रखा था कि सरकार ने डेंगू के इलाज के लिए सारे सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में बेहतरीन इंतजाम कर रखा है. अविनाश अपने मां-बाप की जान था. लिहाजा हैसियत से आगे बढ़ कर लक्ष्मीकांत और बबिता ने अच्छे अस्पताल में उसे भर्ती कराने का फैसला किया. लक्ष्मीकांत और बबिता सात सितंबर को अविनाश को लेकर दिल्ली के एक बड़े नामी अस्पताल मे पहुंचे. अस्पताल ने अविनाश को भर्ती करने से मना कर दिया.
अविनाश की हालत लगातार बिगड़ रही थी. मां-बाप उसी हाल में अविनाश को लेकर एक दूसरे बड़े नामी अस्पताल में पहुंचते लेकिन वहां भी बेड नहीं मिला. अविनाश को जिस वक्त अस्पताल में होना चाहिए था वो बारी-बारी से मां-बाप की गोद में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का मुंह देख रहा था. सारे अस्पताल उस मासूम से मुंह फेर रहे थे. लक्ष्मीकांत और बबिता बत्रा अस्पताल पहुंचे. ये अस्पताल शायद अभी बीमार नहीं पड़ा था. इसीलिए यहां डॉक्टर ने अविनाश का चेकअप किया और दवा दी. लेकिन जिंदगी के उस एक अदद बेड तक आते-आते शायद बहुत देर हो चुकी थी.
अविनाश के मां-बाप ने मौत का ऐलान तो बेटे की मौत की खबर सुनते ही अस्पताल में डॉक्टरों के सामने कर दिया था. दुनिया को लगा कि बेटे की मौत ने दोनों को जीते जी मार दिया है. लेकिन जीते जी नहीं बल्कि सच में मार दिया.