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...तो बच जाती थी मकसूद की जान

दो मिनट 26 सेकेंड. दिल्ली के चिड़ियाघर से निकली दिल को कचोट देने वाली पूरी कहनी बस इन्हीं दो मिनट 26 सेकंड में सिमटी है. एक इंसान और जानवर के दरम्यान जिंदगी और मौत के बीच शह और मात का एकतरफा खेल खेला गया. एक खेल जिसके शुरू होने से पहले ही जिंदगी और मौत का फैसला हो चुका था.

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दो मिनट 26 सेकेंड. दिल्ली के चिड़ियाघर से निकली दिल को कचोट देने वाली पूरी कहनी बस इन्हीं दो मिनट 26 सेकंड में सिमटी है. एक इंसान और जानवर के दरम्यान जिंदगी और मौत के बीच शह और मात का एकतरफा खेल खेला गया. एक खेल जिसके शुरू होने से पहले ही जिंदगी और मौत का फैसला हो चुका था.

मकसूद ने अपनी जिंदगी बेशक गुमनामी के अंधेरे में निकाल दी, लेकिन मौत ने उसे नाम दे दिया. दिल्ली के आनंद पर्वत इलाके में मजदूरी कर गुजर बसर करने वाले मकसूद से कम ही लोग वाकिफ थे. जो उसे जानते भी थे तो बस एक मनमौजी और दिमागी तौर पर बीमार शख्स के तौर पर. लेकिन मकसूद को ऐसी मौत मिली कि हर घर में उसकी तस्वीर पहुंच गई.

रिक्शा चलाता था मकसूद
मकसूद इन दिनों इंडस्ट्रियल एरिया में रिक्शा चला कर 60-65 रुपये कमा लिया करता था. मंगलवार को भी वो घरवालों को काम पर जाने की बात कह कर निकला था. लेकिन काम पर ना जाकर वो चिड़ियाघर पहुंच गया और फिर देर सवेर घरवालों तक उसकी मौत की खबर पहुंची. घरवालों ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान की रहनेवाली एक लड़की से उसकी शादी भी करवाई थी. लेकिन शायद मकसूद का मिजाज ही था, जिसके कारण उसकी बीवी भी उसे छोड़कर चली गई.

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जिस बाघ ने पिछले 6 साल में कभी किसी बकरे तक का शिकार ना किया हो, उसी बाघ ने फकत 2 मिनट 26 सेकेंड में मकसूद की जान ले ली. इस घटना के पीछे की हकीकत अफसोस पैदा करती है, क्योंकि जानकारों की मानें तो अपने बाड़े में आ गिरे मकसदू को ये बाघ मारना नहीं चाहता था. लेकिन जाने-अनजाने इंसानों ने वो गलती कर दी जिसके बाद बाघ को गुस्सा आ गया और उसने एक बेबस इंसान की जान ले ली.

तस्वीरें गवाह हैं कि बाघ मकसूद को नहीं मारना चाहता था. कम से कम शुरुआती चंद लम्हों की तस्वीरें तो यही कहती हैं. मकसूद की सूरत में एक इंसान के बाड़े में आ गिरने के बावजूद बाघ ने उस पर हमला नहीं किया, बल्कि उसे समझने या फिर उससे खेलने की कोशिश कर रहा था.

मौत का ट्रिगर बना वो पत्थर
विजय नाम का वह बाघ अगर चाहता तो मकसूद के बाड़े में गिरते ही उस पर हमला कर सकता था. उसे दबोच सकता था. लेकिन वो मकसूद के करीब आकर उसे गौर से देखने लगा. यहां तक कि विजय ने एक-दो बार पंजों से उसे छूने और समझने की कोशिश की और हवा में अपनी दुम कुछ ऐसे हिलाता रहा, जैसे वो उससे खेलने की कोशिश कर रहा हो. लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था.

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दरअसल, चिड़ि‍याघर प्रशासन की लापरवाही के बीच लोगों की भीड़ ही अपने तरीके से मकसूद को बचाने की कोशिश करती रही. लेकिन इसी कोशिश में भीड़ ने जैसे ही बाघ को एक पत्थर मारा, गुस्साए बाघ ने मकसूद की गर्दन पकड़ ली. मौत की उन दर्दनाक तस्वीरों को देखने वाले वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि अगर जू प्रशासन ने तब मुस्तैदी दिखाई होती, तो मकसूद की जान बचाई जा सकती थी.

खुद जू प्रशासन भी ये बात मानता है कि छह साल के इस बाघ ने अपनी पूरी उम्र में कभी शिकार नहीं किया. आदमखोर होना तो बहुत दूर की बात है, क्योंकि विजय की पैदाइश लक्ष्मण और यमुना नाम के एक ऐसे जोड़े से हुई, जो पहले से रीवा के जू में बंद थे. ऐसे में विजय को उसकी मां से ना तो शिकार की ट्रेनिंग मिली और ना ही उसके कभी किसी जानवर को मारा. अलबत्ता दिल्ली में जू प्रशासन से हर रोज मिलनेवाले दस किलो मांस से ही वो अपना काम चलाता था. यहां तक कि खाने के मामले में भी विजय आलसी मिजाज ही है.

जू के कर्मचारियों की मानें तो वो रोज मिलने वाला दस किलो मांस भी जल्दी में नहीं, बल्कि कई घंटों में घूम फिर कर खाता है. बहुत मुमकिन है कि मंगलवार को भी विजय अपने बाड़े में आ गिरे मकसूद को बख्श देता, अगर जू प्रशासन पहले ही उसका ध्यान बंटा कर उसे मकसूद से दूर करने में कामयाब हो जाता. उसके लिए जो सबसे पहली और जरूरी शर्त थी, वो थी उसके बाड़े के पास से दूसरे लोगों को दूर करना. लेकिन ये सब करने में प्रशासन की काहिली मकसूद के लिए जानलेवा साबित हुई.

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