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प्यार, परिवार और कत्ल... तीन बार DNA टेस्ट और फिर सामने आई 40 महीनों से कैद कंकाल की खौफनाक दास्तान

इटावा के सरकारी अस्पताल की मॉर्चरी में रखा एक रेफ्रिज़रेटर अपने आप में एक पूरी कहानी बन गया. असल में उस रेफ्रिज़रेटर में रखी एक लाश या यूं कहें कि एक कंकाल पूरे 40 महीनों तक अपने अंजाम तक पहुंचने का इंतज़ार करता रहा. ये पूरी कहानी आपको हैरान कर देगी.

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पुलिस की लापरवाही के चलते एक कंकाल 3 साल तक कैद रहा
पुलिस की लापरवाही के चलते एक कंकाल 3 साल तक कैद रहा

Rita Murder Case in Etawah: लगभग साढ़े तीन साल से एक सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में एक लड़की का कंकाल रखा हुआ था. इस दौरान लड़की के माता-पिता थाने से लेकर अदालत तक दौड़ लगाते रहे. वो चाहते थे कि कम से कम उन्हें अंतिम संस्कार के लिए उनकी बेटी का कंकाल दे दिया जाए. ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके. लेकिन पुलिस के लापरवाह रवैये की वजह से ऐसा हो ना सका. फिर करीब दो साल बाद किसी को DNA टेस्ट कराने का आइडिया आया. मगर इसके बाद कहानी और उलझ गई.

40 महीनों से कैद कंकाल
इटावा के सरकारी अस्पताल की मॉर्चरी में रखा एक रेफ्रिज़रेटर अपने आप में एक पूरी कहानी है. असल में उस रेफ्रिज़रेटर में रखी एक लाश या यूं कहें कि एक कंकाल पूरे 40 महीनों तक अपने अंजाम का इंतज़ार करता रहा. घरवाले कंकाल को इस रेफ्रिज़रेटर से बाहर निकालने के लिए पुलिस थाने से लेकर अदालत की चौखटों पर एड़ियां रगड़ते रहे, लेकिन कंकाल को रेफ्रिज़रेटर से आज़ादी नहीं मिल सकी. और तो और इन 40 महीनों में दो-दो बार उस कंकाल का डीएनए एग्जामिनेशन हुआ, मगर दोनों ही बार रिपोर्ट ऐसी आई कि मरनेवाले शख्स की पहचान ही साबित नहीं हो सकी और इसी के साथ कंकाल की क़ैद की मियाद भी लगातार बढ़ती रही.

हैरान कर देगी कंकाल की मर्डर मिस्ट्री
मगर 40 महीने बाद अचानक एक रोज़ कुछ ऐसा हुआ कि रेफ्रिज़रेटर में क़ैद वो कंकाल एक ही झटके में ना सिर्फ आज़ाद हो गया, बल्कि रिहाई के फौरन बाद उसे उसकी सही जगह भी मिल गई यानी कंकाल का अंतिम संस्कार हो गया. लेकिन अब सवाल ये है कि दो-दो बार डीएनए जांच के बावजूद जिस कंकाल की पहचान साबित नहीं हो सकी, आखिर 40 महीने के बाद ऐसा क्या हो गया कि एकाएक मरने वाले की पहचान साफ हो गई? और सवाल ये भी है कि अगर कंकाल की पहचान साफ हो गई, तो फिर उस शख्स को कंकाल बनाने के दोषी यानी उसके क़त्ल के गुनहगारों का क्या हुआ? तो जब आप एक रेफ्रिज़रेटर क़ैद रहे इस कंकाल की मर्डर मिस्ट्री सुनेंगे, तो यकीन मानिए कि दांतों तले उंगली दबा लेंगे.

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19 सितंबर 2020, चक सलेमपुर, इटावा 
इस कहानी की शुरुआत होती है आज से कोई तीन साल और चार महीने पहले. इटावा ज़िले की जसवंत नगर तहसील का गांव है चक सलेमपुर. उसी चक सलेमपुर की रहनेवाली 19 साल की एक लड़की रीता 19 सितंबर 2020 को अचानक अपने घर से गायब हो गई. रीता किसी से मिलने जाने की बात कह कर घर से निकली और ऐसे गुम हुई कि किसी को ढूंढे नहीं मिली. इसी बीच घरवालों ने ना सिर्फ अपने तौर पर रीता की बहुत तलाश की, बल्कि उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई. 

बाजरे के खेत में मिला था कंकाल
लेकिन इससे पहले कि पुलिस रीता के बारे में कोई खास जानकारी जुटा पाती, गांव के बाहर एक बाजरे के एक खेत से एक कंकाल बरामद हुआ. कंकाल को देख कर साफ था कि उसकी मौत किसी केमिकल से जलाए जाने के चलते हुई है या फिर क़त्ल के बाद लाश पर केमिकल डाला गया है. वैसे तो कंकाल को देख कर मरने वाले की पहचान नामुमकिन थी, लेकिन कंकाल के पास से मिला लेडीज चप्पल और कपड़े इस बात की तरफ इशारा कर रहे थे कि ये कंकाल किसी और की नहीं बल्कि बमुश्किल हफ्ते भर पहले गायब हुई रीता का ही है. 

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कंकाल के पास मिले सामान से की घरवालों ने पहचान
रीता के घरवालों को भी जब इस कंकाल का पता चला तो वो भागे-भागे उस खेत के पास पहुंचे और कंकाल को अपनी बेटी का होने की बात कहते हुए उस पर दावा कर दिया. घरवालों का कहना था कि चूंकि कंकाल के पास से मिले कपड़े और चप्पल रीता के ही हैं, ये लाश रीता के सिवाय किसी और की हो नहीं सकती. और तो और घरवाले रीता को इस हाल में पहुंचाने वाले यानी उसके क़ातिलों के नाम भी बता रहे थे. 

तीन साल चार महीने कैद में रहा कंकाल
मगर रीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने, गांव के बाहर से कंकाल के बरामद होने और कंकाल के साथ ही रीता के कपड़े और चप्पल मिलने के बावजूद पुलिस ने रीता के घरवालों के दावे पर यकीन नहीं किया और किसी साइंटिफिक रिपोर्ट के बगैर उन्हें वो कंकाल सौंपने से भी मना कर दिया. पुलिस ने कंकाल बरामद की और उसे सीधे इटावा के सरकारी अस्पताल की मॉर्चरी में रखवा दिया. और बस इसी के साथ एक कंकाल के फ्रिज में बंद होने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो पूरे तीन साल और चार महीने तक चलता रहा.

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दो साल बाद DNA टेस्ट
इस बीच रीता के घरवालों ने हर मुमकिन कोशिश की. यहां तक कि अपने ही पड़ोस में रहने वाले एक रामकुमार नाम के एक शख्स और उसके घरवालों पर अपनी बेटी के क़त्ल का मुकदमा भी दर्ज करवा दिया, लेकिन लाख शिकायत के बावजूद उन्हें ना तो वो कंकाल मिला और ना ही वो अपनी बेटी का अंतिम संस्कार कर सके. धीरे-धीरे वक़्त गुजरता रहा और दो साल में पहली बार इटावा पुलिस ने साल 2022 के शुरुआती दिनों में कंकाल के साथ-साथ रीता के माता-पिता का डीएनए सैंपल कलेक्ट किया और उसे फॉरेंसिक जांच के लिए हैदराबाद की लैबोरेट्री में भिजवा दिया. 

क्लीयर नहीं थी पहली DNA रिपोर्ट
लेकिन रीता के घरवालों को तब ज़ोर का झटका लगा, जब 26 मार्च 2022 को लैब से आई रिपोर्ट से ये बात साफ नहीं हो सकी कि लाश उनकी बेटी की है या नहीं. असल में डीएनए का सैंपल सही नहीं होने की वजह से रिपोर्ट अस्पष्ट थी. चूंकि रिपोर्ट साफ नहीं थी, तो रीता के घरवालों ने उनकी दोबारा डीएनए जांच करवाने की मांग शुरू कर दी. 

दूसरी बार भी नहीं मिला DNA टेस्ट का सही नतीजा 
इसके बाद पुलिस ने फिर से उसी साल यानी 18 अगस्त 2022 को एक बार फिर से कंकाल के साथ-साथ रीता के माता-पिता का डीएनए सैंपल कलेक्ट करवाया और दोबारा जांच के लिए भिजवाया. लेकिन सितम देखिए कि इस कोशिश का नतीजा भी वही निकला, जो पहली बार निकला था. लैब से बताया गया कि सैंपल ठीक नहीं होने की वजह से डीएनए मैचिंग को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना मुमकिन नहीं है. यानी कंकाल को लेकर घरवालों का इंतज़ार एक बार फिर से लंबा हो गया.

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पीड़ित परिवार ने हाई कोर्ट से लगाई गुहार
अब हार कर रीता के घरवालों ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. चूंकि इससे पहले दोनों बार रिपोर्ट साफ नहीं आई थी और कंकाल भी जस का तस फ्रीज़र में ही पड़ा था, घरवालों ने एक बार फिर से कंकाल से उनकी डीएनए मैच करवाने की गुहार लगाई. और कहा कि अगर जरूरत पड़े तो वो इसके लिए खर्च वहन करने को भी तैयार हैं. घरवालों की इस फरियाद को हाई कोर्ट ने ना सिर्फ गंभीरता से लिया, बल्कि इस बात पर भी हैरानी जताई कि आखिर कैसे पुलिस ने तीन साल से भी ज्यादा समय से एक कंकाल को फ्रीज़र में रख छोड़ा है, जबकि किसी भी लावारिस लाश को ज्यादा से ज्यादा 72 घंटे तक मॉर्चरी में रखे जाने का नियम है और इसके बाद जरूरी सैंपल सुरक्षित रख कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. 

सही निकली तीसरे DNA टेस्ट की रिपोर्ट 
लेकिन ये मामला थोड़ा अलग था. यहां पूरा का पूरा कंकाल ही फ्रीज़र में पड़ा था, लेकिन सैंपल ही सही तरीके से कलेक्ट नहीं हो पा रहे थे. मगर कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब अदालत के आदेश पर इटावा पुलिस ने तीसरी बार डीएनए सैंपल कलेक्ट करवाए. कंकाल के भी और रीता के माता-पिता के भी. और इस बार जब डीएनए की रिपोर्ट सामने आई, तो वही हुआ, जिसका दावा रीता के घरवाले तीन साल से भी ज्यादा समय से कर रहे थे. साइंटिस्ट ने रिपोर्ट दी कि कंकाल किसी और का नहीं बल्कि चक सलेमपुर गांव की लड़की रीता का ही है. 

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रीता के घरवालों को सौंप दिया गया कंकाल
अब पुलिस ने आनन-फानन में ना सिर्फ रीता के घरवालों को बुला कर तीन साल और चार महीने बाद अचानक वो कंकाल उनके हवाले कर दिया, बल्कि जल्दबाजी में गांव के ही एक खेत में उसका अंतिम संस्कार भी करवा दिया. रीता के वो अवशेष पुलिस ने अपनी मौजूदगी में घरवालों से ही ज़मीन में दफ्न करवा दिए. यानी जो डीएनए सैंपल दो-दो जांच में फेल हो गया, तीसरी बार लिए गए सैंपल से ना सिर्फ़ डीएनए की रिपोर्ट क्लीयर हो गई, बल्कि ये भी साफ हो गया कि कंकाल रीता का ही है.

कौन है रीता का गुनाहगार?
फिलहाल, पूरे चालीस महीने बाद मॉर्चरी में बंद एक कंकाल की रिहाई तो हो गई, उसका अंतिम संस्कार भी हो गया और तो और घरवालों को भी ये राहत मिल गई कि वो अपनी बेटी का अंतिम क्रियाएं कर सके, लेकिन जो सवाल अब सामने खड़ा है, वो है कि आखिर रीता को इस हाल में पहुंचाने का दोषी कौन है? अगर वो वही है, जिस पर घरवाले शुरू से इल्ज़ाम लगाते रहे हैं, तो आखिर पुलिस की तफ्तीश से ये कब तक पता चलेगा कि रीता का क़त्ल उसी गांव के रहनेवाले रामकुमार ने किया था या फिर किसी और ने? आखिर पुलिस क़त्ल के उस मामले में मकतूल को कब तक इंसाफ दिलाएगी, जिसमें मरनेवाले की पहचान पता करने में ही उसे तीन साल से ज्यादा लग गए.

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शादीशुदा शख्स से प्यार करती थी रीता
पुलिस सूत्रों की मानें तो इटावा की रहने वाली 19 साल की रीता अपने गांव के ही रामकुमार यादव नाम के एक शख्स के बेहद करीब थी. दोनों की फोन पर एक दूसरे से ना सिर्फ लंबी बातें होती थीं, बल्कि दोनों वक़्त-वक़्त पर एक दूसरे से मिलते भी थे. लेकिन दिक्कत ये थी कि दोनों ना सिर्फ अलग-अलग बिरादरी से थे, बल्कि रामकुमार शादीशुदा और बाल-बच्चेदार था. ऐसे में दोनों के घरवालों को ही रीता और रामकुमार के इस रिश्ते पर ऐतराज़ था.

रामकुमार पर ही था कत्ल का इल्जाम
यही वजह है कि जब गांव के बाहर खेत से एक कंकाल मिला और कंकाल के पास से रीता के चप्पल और कपड़े मिले, तो रीता के घरवालों ने सीधा इल्ज़ाम रामकुमार और उसके घरवालों पर लगाया. रीता के घरवालों का कहना था कि रामकुमार ने अपने घरवालों के साथ मिल कर रीता का क़त्ल कर दिया है.

पुलिस ने दिखाई बड़ी लापरवाही
सितम देखिए कि रीता की गुमशुदगी की शुरुआती तफ्तीश में भी इस बात का इशारा मिला था कि उसकी गुमशुदगी से गांव के ही रामकुमार का कोई ना कोई रिश्ता जरूर है, क्योंकि अपने मोबाइल फोन पर उसकी आखिरी बातचीत भी रामकुमार से ही हुई थी. लेकिन तब से लेकर अब तक पुलिस ने कभी इस पहलू को ठीक से खंगालने की जरूरत ही नहीं समझी. शायद पुलिस ये सोच कर तफ्तीश करने से बचती रही कि अभी तो रीता की लाश की पहचान भी नहीं हुई है, जब लाश की पहचान हो जाएगी, तो फिर तफ्तीश का देखा जाएगा.

आरोपी रामकुमार ने किया सरेंडर
इसी दौरान रामकुमार का पूरा परिवार गांव छोड़ कर चला गया. लेकिन अब डीएनए रिपोर्ट में कंकाल रीता का होने की बात साफ होने पर अचानक रामकुमार ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया है. उधर, तीन सालों से ज्यादा का वक्त गुजरने के बावजूद अब तक पुलिस को रीता का मोबाइल फोन भी नहीं मिला है और अब इतने साल बाद इस बात की गुंजाइश भी कम है कि रीता का मोबाइल फोन पुलिस कभी बरामद कर भी पाएगी.

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