सुरक्षा, हथियार, हथियारों का लाइसेंस, बॉडीगार्ड ये सब कायदे से इंसानी जान की हिफाजत के लिए हैं. मगर कई बार हिफ़ाज़त की ये जरूरी चीजें, शौक और जलवे में तब्दील हो जाती हैं. और बात जब अपने नेताओं के जलवे की हो तो फिर तो कहना ही क्या. मगर अब श्रीमती नेताजी भी इसी जलवे के पीछे भागने लगें तब मामला थोड़ा अजीब हो जाता है. लोकसभा चुनाव में ऐसे बहुत से नेता मैदान में हैं जिनके पास छह-छह हथियार हैं. मगर ख़बर उनकी नहीं है. ख़बर उनकी पत्नियों की है. क्योंकि हथियारों के शौक और जलवे से वो भी खुद को बचा नहीं सकीं.
कहते हैं सियासत में असलहों का क्या काम. मगर जनाब ये हिंदुस्तान की सियासत है. यहां चुनावी रणभेरी में ताल ठोकने के लिए असलहों की ज़रूरत पड़ती ही पड़ती है. खुद के पास हो ना हो मगर साथ चलने वाले चेले चपाटे अगर हवा में हथियार ना लहराएं तो महौल कहां बनता है. पहली पंक्ति के नेता तो खैर सरकारी सिक्युरिटी में चलते हैं मगर दूसरी और तीसरी सफ के नेता तो इन्हीं हथियारों से अपना रसूख बनाते हैं. देश में ऐसे नेताओं की लंबी कतार जिनके पास लाइसेंसी हथियार हैं. पब्लिक लाइफ़ में हथियारों का लाइसेंस लेने में ज़्यादा हर्ज भी नहीं है. मगर खबर तो तब बनती है जब नेताओं की रानी रिवाल्वर रानी बन जाती हैं.
हथियार रखने की दो ही वजह होती हैं. असलहों का शौक या मौत का खौफ. कोई छुपा कर रखता है. तो कोई लहराकर रखता है. मगर हथियार कौन कौन रखता है इसका खुलासा चुनावी उम्मीदवारी के दौरान भरे जाने वाले हलफनामे में होता है. इस बार भी लोकसभा के चुनावी रण में ताल ठोक रहे देश के कई दर्जनों ऐसे नेता है जो असलहों के मालिक हैं. इतना ही नहीं उनकी पत्नियां भी हैं असलहों की शौकीन.
कल्याण सिंह की बहू के पास बंदूक, रिवॉल्वर और राइफल
यूपी की बात करें तो इस लिस्ट में पहला नाम आता है. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की बहू प्रेमलता देवी का. जो एटा से बीजेपी के मौजूदा सांसद और उम्मीदवार राजवीर सिंह उर्फ राजू भैय्या की धर्म पत्नी हैं. इनके हलफनामे से पता चला है कि जनाब खुद तो पिस्टल, राइफल, रिवॉल्वर के मालिक हैं हीं इनकी पत्नी भी असलहों का शौक रखती हैं. धर्मपत्नी प्रेमलता देवी के पास भी बंदूक, रिवॉल्वर और राइफल है.
दबंग अतीक अहमद की रिवॉल्वर रानी
नैनी जेल में बंद और वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बाहुबली अतीक अहमद ने बनारस में भरे अपने हलफनामे में बताया कि उनके पास पिस्टल, राइफल और दोनाली बंदूक तो है ही. साथ ही उनकी शरीक-ए-हयात यानी बीवी शाइस्ता परवीन के पास भी रिवॉल्वर, राइफल और एक नाली बंदूक है. जो नैनी जेल से अतीक अहमद को पैरोल ना मिलने के बाद उनकी जगह बनारस में चुनावी प्रचार का कार्रभार संभाले हुए हैं.
जनरल वीके सिंह की 'पिस्टल' वाली पत्नी
मोदी सरकार में विदेश राजमंत्री और पूर्व सेनाप्रमुख जनरल वीके सिंह को यूं तो हालांकि काफी सिक्युरिटी मिली हुई है. लेकिन बावजूद उसके उनके पास दो रायफल हैं. गाजियाबाद से मौजूदा सांसद और दूसरी बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जनरल वीके सिंह ने अपने हलफनामे में खुलासा किया कि सिर्फ उनके पास ही रायफल नहीं है. बल्कि उनकी पत्नी भारती सिंह के नाम भी पिस्टल और बंदूक है.
रिवॉल्वर रानी और भी हैं
नेताओं की रिवॉल्वर रानियों की ये लिस्ट बहुत लंबी है. इसमें मुरादाबाद से बीजेपी प्रत्याशी कुंवर सर्वेश सिंह की पत्नी के नाम भी तीन-तीन असलहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री और धौरहरा से कांग्रेस प्रत्याशी जितिन प्रसाद की बीवी नेहा प्रसाद का नाम भी इस लिस्ट में है जिनके नाम एक-एक राइफल और बंदूक है. कभी बीएसपी के कद्दावर नेता रहे और अब बिजनौर से कांग्रेस का चेहरा बने नसीमुद्दीन सिद्दीकी पत्नी हुस्ना के पास भी राइफल और रिवॉल्वर है.
वहीं मेरठ से बीएसपी प्रत्याशी और कारोबारी हाजी याकूब कुरैशी की बीवी संजीदा के नाम भी पिस्टल और बंदूक है. नगीना से कांग्रेस उम्मीदवार ओमवती भी असलहों की शौकीन हैं. इनके पास राइफल और डबल बैरल बंदूक है. नगीना से ही बीएसपी उम्मीदवार गिरीश चंद की पत्नी के पास भी राइफल और पिस्टल है. जबकि गोरखपुर से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राम भुआल निषाद की पत्नी के पास दो रिवॉल्वर और दो राइफल हैं.
बिहार में भी हथियारों की बहार
हालांकि नेताओं की रिवॉल्वर रानियों की ये कहानी तो अभी सिर्फ यूपी की है. अभी दूसरे सूबों की रिवॉल्वर रानियों की असलहों से मोहब्बत की कहानी बाकी है. यूपी के बाद अब बात बिहार की. जहां हथियार वाले नेताओं के अलावा चुनावी मैदान में बाहुबलियों की तादाद भी बहुत ज़्यादा है. यहां सिर्फ नेताओं की रिवॉल्वर रानी ही नहीं हैं. बल्कि बाहुबलियों की रानियां भी मैदान में हैं. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि 12 मई को बिहार की जिस लोकसभा सीट पर छठे चरण में मतदान हुआ है. वहां से दो-दो बाहुबली नेताओं की बीवियां ताल ठोक रहीं हैं.
पुराने जुर्म, अदालती रोक और चुनाव आयोग की बंदिशों ने कुछ ऐसा किया है कि अपने बहुत से बाहुबली इस बार चुनावी मैदान से गायब हो गए हैं. इनमें मोहम्मद शहाबुद्दीन, सूर्यभान सिंह, प्रभुनाथ सिंह, अनंत सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी, सतीश चंद्र दुबे, रमा सिंह, मनमोरंजन सिंह जैसे नाम शामिल हैं. लेकिन सिर्फ ये गायब हुए हैं. वर्ना बदले चेहरे में असली चेहरा इन्हीं का है. क्योंकि खेल ये हुआ है कि इन लोगों ने खुद की जगह अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को चुनावी मैदान में उतार दिया है. कमाल ये कि इन्हें तमाम राजनीतिक पार्टियों ने उतने ही प्यार से गले भी लगा लिया है.
बिहार के सीवान में करीब 9 लाख वोटरों के सामने लोकसभा चुनाव में अपना सांसद चुनने के लिए मुख्य रुप से सिर्फ दो विकल्प हैं. पहला ये कि वो बाहुबलि शहाबुद्दीन की पत्नी और आरजेडी की उम्मीदवार हिना शहाब को चुनें या फिर हिंदू युवावाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष और बाहुबलि अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को चुनें. जिन्हें जेडीयू ने टिकट दिया है. पत्नियां भले ही बेदाग हों मगर जिन पतियों की वजह से इन पत्नियों को सियासी पार्टियों ने टिकट दिया है, उन पर हत्या, जबरन वसूली और रंगदारी जैसे दर्जनों मुकदमें हैं. हत्या के सात अलग-अलग मामलों में सैय्यद शहाबुद्दीन जेल में हैं. वहीं गैंगस्टर और हिन्दुवादी राजनीति का चेहरा रहे अजय सिंह जेल से भले बाहर हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवार पर जेडीयू को नुकसान होने की रिपोर्ट थी. लिहाज़ा उनकी पत्नी को उम्मीदवारी दी गई है.
लालू यादव के बिहार का सीएम बनने के बाद मोहम्मद शहाबुद्दीन ने इस सीट पर एकक्षत्र राज किया. 1992 से शुरू हुई उनकी जीत का सिलसिला 2004 तक चला. अपनी बाहुबली छवि के लिए कुख्यात शहाबुद्दीन को जब सजा हुई तो उनकी पत्नी हिना शहाब ने जिम्मेदारी संभाली. हालांकि शहाबुद्दीन की इलाके पर जबरदस्त पकड़ होने के बावजूद हिना शहाब को कभी जीत हासिल नहीं हुई. 2009 और 2014 के दोनों चुनाव में ओम प्रकाश यादव ने हिना को हराया. मगर इस बार जेडीयू ने उनकी जगह गैंगस्टर अजय सिंह की पत्नी को कविता सिंह को हिना के सामने उतारा है.
पुरानी कहावत है जिस तरह लोहा लोहे को काटता है. वैसे ही आरजेडी की इस उम्मीदवार की काट में जेडीयू ने अपनी इस उम्मीदवार को उतारा है. कविता सिंह अपहरण और फिरौती जैसे 30 संगीन मामलों के आरोपी बाहुबली अजय सिंह की धर्मपत्नी हैं और दरौंदा से विधायक भी. ये दोनों महिलाएं घरेलू महिलाएं ही थीं पर हालात इन्हें राजनीति के मैदान तक ले आई.
ये दोनों महिलाएं बेशक सियासी मैदान में पहली बार नहीं उतरी हैं लेकिन ये भी सच है कि ये दोनों मोहरा भर हैं. असली चुनावी जंग तो इनके पतियों के बीच लड़ी जाती रही है. इत्तेफाक से दोनों के पतियों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य पाया गया था.