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बगदादी की फौज में होना था शामिल, रच डाली ट्रेन उड़ाने की खौफनाक साजिश

वो चार थे, मगर बड़े बेकरार थे. बेकरारी भी ऐसी कि दर-दर भटकते रहे, मगर उनकी बेकरारी नहीं मिटी. दरअसल उन्हें जिहाद करना था. क्यों करना था, किसके लिए करना था, ये तो फाइनल नहीं हुआ था. मगर बस उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें जिहाद करना है. कुल 7 रास्ते ढूंढे थे उन्होंने जिहाद की राह के लिए. मगर कोई भी रास्ता उन्हें दुनिया के सबसे बड़े जिहादियों के आका तक ले नहीं गया. लिहाज़ा हार कर उन्होंने हिंदुस्तान में ही जिहाद कर डाला.

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IS में शामिल होना चाहते थे आतंकी
IS में शामिल होना चाहते थे आतंकी

वो चार थे, मगर बड़े बेकरार थे. बेकरारी भी ऐसी कि दर-दर भटकते रहे, मगर उनकी बेकरारी नहीं मिटी. दरअसल उन्हें जिहाद करना था. क्यों करना था, किसके लिए करना था, ये तो फाइनल नहीं हुआ था. मगर बस उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें जिहाद करना है. कुल 7 रास्ते ढूंढे थे उन्होंने जिहाद की राह के लिए. मगर कोई भी रास्ता उन्हें दुनिया के सबसे बड़े जिहादियों के आका तक ले नहीं गया. लिहाज़ा हार कर उन्होंने हिंदुस्तान में ही जिहाद कर डाला.

ये खिसियाहट थी उन नौजवानों की, जो जिहादी बनना चाहते थे. इराक और सीरिया जाकर दुनिया के सबसे बड़े आतंकी और आईएस सरगना अबू बकर अल बगदादी के हाथों से जिहाद की डिग्री लेना चाहते थे. मगर बदकिस्मती उनकी ऐसी कि सात कोशिशों के बाद भी जिहाद की राह उन्हें नहीं मिली. कभी वो उत्तर गए, कभी वो पश्चिम गए. पूरब भी गए, मगर जो भी रास्ते उन्हें दहशत की दुनिया में दाखिल कराते. उस हर रास्ते पर भारत की सुरक्षा एजेंसियां और जवान चट्टान की तरह खड़े थे. उन्हें भेदना इन चारों के बूते की बात नहीं थी. लिहाज़ा जिहादी बनने की बेकरारी ने उन्हें अपराधी बना दिया.

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जिहादी बनना चाहते थे आतंकी
चूंकि अभी चारों ने जिहादी बनने की नीयत ही की थी इसलिए न तो उनके पास आतंक का साज़ो-सामान था और न ही कोई प्लान था. थी तो सिर्फ बेकरारी, कि क्या ऐसा कर दें कि जिहादी बन जाएं. फिर उन्होंने 7 मार्च को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में अपनी कुव्वत और हैसियत के हिसाब से धमाका करने की कोशिश की. इस धमाके से पहले आतिफ, दानिश, फैज़ल और गौस मोहम्मद खान ने अपने रोल मॉडल अबू बकर अल बगदादी की आगोश में जाने की भरसक कोशिश की. इस कोशिश की शुरूआत पिछले साल फरवरी के महीने से शुरू हुई थी.

इराक या सीरिया जाना चाहते थे आतंकी
बगदादी के कारनामों से प्रभावित होकर आतिफ मुजफ़्फ़र की अगुवाई में दानिश और फैज़ल कई बार देश के तमाम बार्डर पर जाकर हर उन एजेंट्स से मिले, जो उन्हें इराक या सीरिया भेज सकते थे. मगर उनकी हर कोशिश नाकाम रही. यूपी के कानपुर में अपनी तरह की सोच रखने वाले लोगों का एक 'कोर' ग्रुप बनाने के बाद आतिफ, दानिश और फैजल कई बार श्रीनगर, अमृतसर, वाघा और जैसलमेर गए. ताकि किसी तरह बॉर्डर पार करके पाकिस्तान पहुंच जाएं. उन्होंने पाकिस्तान जाने के लिए वीजा लेने की कोशिश के तहत कई ट्रैवल एजेंट्स से बात भी की.

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श्रीनगर में कई आतंकी संगठनों से मिले
बात नहीं बनी तो श्रीनगर में कई आतंकी संगठनों से भी मिले. जिनकी मदद से उन्हें पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग लेने और फिर IS से जुड़ने के लिए इराक या सीरिया जाने की उम्मीद थी. लेकिन उनके कोई भी मंसूबे पूरे नहीं हो रहे थे. श्रीनगर में नाकामयाबी हाथ लगी तो बस के जरिए अमृतसर जाने का फैसला किया. पर वहां भी उन्हें किसी भी एजेंट के जरिए पाकिस्तान जाने का वीजा नहीं मिल सका. लिहाज़ा ये तय किया गया कि अवैध तरीके से ही सही पर बॉर्डर पार करके पाकिस्तान जाने की कोशिश की जाएगी. मगर यहां भी मायूसी ही हाथ लगी.

बॉर्डर पार करना था बेहद मुश्किल
पंजाब से निकलकर रूख राजस्थान के जैसलमेर की तरफ किया गया. अमृतसर से दिल्ली लौटने के बाद ट्रेन से जोधपुर रवाना हुए, जहां से पाकिस्तान जाने की उम्मीद में जैसलमेर के लिए बस पकड़ी गई. बॉर्डर इलाके का मुआयना करने और जानकारी इकट्ठा करने के बाद उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि यहां से बॉर्डर पार करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन है. लिहाज़ा वहां से भी लौटना पड़ा. अब एक ही रास्ता बचा था, जिसके जरिए नौकरी के नाम पर सऊदी अरब के रास्ते ये ट्रेनी जिहादी आतंक के आका की ज़ियारत कर सकते थे. मगर ये ज़ियारत इतनी आसान नहीं थी, क्योंकि असली कहानी अभी बाकी थी.

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हर जगह हो गए नाकाम
जिहादी बनने की बेकरारी के बावजूद भी जब हर तरफ नाकामी हाथ लगी तब सैफ और फैज़ल ने प्लान बदल दिया. वो वहीं से सीधे कानपुर लौट गए. मगर आतिफ़ ये तय करके ही घर से निकला था कि कुछ भी हो जाए वो जिहादी बनकर ही रहेगा. लिहाज़ा आखिरी कोशिश के तहत अब उसने मुंबई का रूख किया. अब आतिफ के सामने दो ही रास्ते बचे थे. पहला ये कि वो जिहादी बनने का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे और दूसरा कि वो बॉर्डर पार करने के अलावा किसी और तरीके से आतंक के आका अबू बकर अल बगदादी की सल्तनत तक पहुंचे.

सऊदी जाने का बनाया प्लान
ऐसे में उसे एक और प्लान सूझा. प्लान ये था कि वो मुंबई की किसी प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नौकरी के नाम पर सऊदी रवाना हो जाए और फिर वहां से इराक या सीरिया निकल जाए. लिहाज़ा उदयपुर और अहमदाबाद के रास्ते बस के जरिए वो मुंबई पहुंचा. यहां कई प्लेसमेंट एजेंसियों से सऊदी अरब जाने के लिए वीज़ा लेने की कोशिश की. मगर उसकी किस्मत उसे हिंदुस्तान से निकलने का मौका ही नहीं दे रही थी. आखिरकार वो भी कानपुर लौट गया. करीब तीन महीने बाद यानी जुलाई के महीने में आतिफ को बार्डर पार करने की सनक फिर से सवार हुई.

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गौस मोहम्मद खान के साथ गए कोलकाता
मॉड्यूल में शामिल इंडियन एयरफोर्स के रिटायर्ड कर्मचारी गौस मोहम्मद खान के साथ इस बार वो कोलकाता गया. यहां दोनों ने बॉर्डर पार कर बांग्लादेश जाने की कोशिश की, जो फिर नाकाम रही. करीब एक साल के अंदर मॉड्यूल के लोगों ने देश के बाहर जाने की सातवीं और आखिरी कोशिश इस साल जनवरी में की. लखनऊ एनकाउंटर में मारे गए संदिग्ध आतंकी सैफुल्ला और दानिश के साथ आतिफ ने केरल के कोझिकोड जाकर IS से जुड़े एक शख्स से मुलाकात की. मगर यहां भी उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाई.

बॉर्डर पार करने की हर कोशिश हो गई फेल
बॉर्डर पार करने की हर कोशिश फेल हो जाने के बाद मॉड्यूल ने एमपी में पन्ना के जंगलों में अपना बेस बनाने का प्लान बनाया. मगर दो दिन बाद ही सब भोपाल आ गए और फिर वहां से लखनऊ. इसके बाद मॉड्यूल के सभी मेंबर ने आतिफ को अपना कमांडर चुन लिया और आईएसआईएस के लिए काम करने की कसम खाई. लिहाज़ा ये तय हुआ कि इराक और सीरिया जाकर न सही हिंदुस्तान में ही रहकर ये मॉड्यूल बगदादी का झंडा बुलंद करेगा.

रेल नेटवर्क की गहरी रिसर्च
आतंक की प्रतिज्ञा लेने के बाद बगदादी के इस इंडियन मॉड्यूल ने हथियार और विस्फोटक जुटाने का फैसला किया, ताकि आईएसआईएस के समर्थन में भारत में हमले कर सकें. रेलवे को अपना पहला टारगेट बनाने के लिए उन्होंने रेल नेटवर्क और मैप की गहराई से रिसर्च की. इस दौरान आतंकी गौस मोहम्मद खान ने किसी ट्रेन को पटरी से उतारने की योजना पर काम करने का फरमान सुनाया. इस फरमान के बाद आतिफ और दानिश के साथ सैय्यद मीर नाम के संदिग्ध आतंकी ने भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में धमाका का प्लान तैयार किया और 7 मार्च को एमपी जबड़ी रेलवे स्टेशन पर ये धमाका हुआ.

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तेलंगाना पुलिस से मिला था इनपुट
शुरूआती जांच में ही अंदाज़ा लग गया था कि ये महज़ हादसा न होकर आतंकी हमला था. जिसके बाद तेलंगाना पुलिस से मिले इनपुट के आधार पर पूरी साजिश का खुलासा हो गया. तेलंगाना पुलिस के इनपुट पर ही एमपी पुलिस और एटीएस ने होशंगाबाद पुलिस को अलर्ट किया और पिपरिया में टोल नाके से तीन संदिग्धों को हिरासत में ले लिया गया. शुरूआती पूछताछ में ही आतिफ, दानिश और सैय्यद मीर ने कई अहम खुलासे किए. इन्हीं की इंफार्मेशन पर यूपी पुलिस ने कानपुर से दो और संदिग्धों को हिरासत में लिया.

यूपी एटीएस को मिली सैफुल्ला की जानकारी
यहीं से यूपी एटीएस को सैफुल्ला के बारे में जानकारी और लोकेशन मिली, जहां सरेंडर करने से इंकार करने के बाद एनकाउंटर शुरू हुआ और सैफुल्ला को मार गिराया गया. काफी लंबे वक्त से आईएसआईएस हिंदुस्तान और आसपास के मुल्कों को मिलाकर वहां दहशत की प्लानिंग बना रहा है. इसी प्लानिंग के तहत उसके गुर्गों ने आईएसआईएस के हिंदुस्तान मॉड्यूल की बुनियाद भी रख दी थी. लेकिन हिंदुस्तान में पहला क़दम रखते ही सुरक्षा एजेंसियों ने उसके मंसूबों को नाकाम कर दिया.

'द इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासान'
सीरिया और इराक़ जैसे मुल्कों में बेशक आईएसआईएस के पांव उखड़ने लगे हों, लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया में अपने पैर पसारने को लेकर उसके अरमान अभी कमज़ोर नहीं पड़े हैं. मध्य प्रदेश के बाद शाजापुर के पास ट्रेन में ब्लास्ट, फिर कई अलग-अलग राज्यों से आईएसआईएस के गुर्गों की गिरफ्तारी और तब सैफुल्ला नाम के आतंकी को लखनऊ में ढेर किया जाना, आईएसआईएस के इसी प्लान का एक सुबूत है. और इस प्लान का नाम है, 'द इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासान.'

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हिंदुस्तानी एजेंसियों ने दिया करारा जवाब
बग़दादी और उसके गुर्गों ने हिंदुस्तान और आसपास के मुल्कों में अपना राज कायम करने को लेकर जो ख्वाब देखा है, उसे वो इसी नाम से जानते हैं. ये और बात है कि हिंदुस्तान में ऐसे किसी प्लान में कामयाब होना कतई मुमकिन नहीं है. इसकी पहली कोशिश में ही इस जल्लाद गैंग के गुर्गों और बग़दादी के कथित आंतंकियों को हिंदुस्तानी एजेंसियों ने करारा जवाब दिया है. इस्लामिक स्टेट ने अपने इस प्लान की शुरुआत सबसे पहले उसी पाकिस्तान सरज़मीन से की थी, जो दुनिया भर में आतंकवादियों के खैरमकदम के लिए पहले ही काफ़ी बदनाम है.

बांग्लादेश के कैफ़े में हुआ था आतंकी हमला
वहां अंसार-उल-तौहिद और तहरीक-ए-तालिबान जैसे कुछ आतंकी संगठनों ने पहले ही बग़दादी को अपना खलीफ़ा मान कर पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी जड़ें जमाने की शुरुआत कर दी थी. इसके बाद पिछले साल बांग्लादेश के कैफ़े में आईएसआईएस ने अपने इसी प्लान की एक कड़ी को एक बड़े आतंकी हमले के तौर पर अंजाम दिया था. इसके बाद हिंदुस्तान में पैर पसारने की कोशिश उसे उल्टी पड़ गई. हिंदुस्तानी एजेंसियां तो पहले से ही बग़दादी के नक्शेकदम पर चलने वाले सिरफिरों को ट्रैक करने में लगी थी, लेकिन जैसे ही मंगलवार को शाजापुर के पास एक पैसेंजर ट्रेन में इस मॉड्यूल ने पहला धमाका किया, एजेंसिया हरकत में आ गई.

नहीं पूरा होगा बगदादी का ये ख्वाब
फिर इसके बाद जो कुछ हुआ, वो सबके सामने है. फ़ौरन देश में तमाम सुरक्षा एजेंसियों ने आईएसआईएस के इन गुर्गों पर क्रैक डाउन की शुरुआत की और लखनऊ में इसी खुरासान का एक अहम चेहरा सैफुल्ला मारा गया. दरअसल बग़दादी को लगता है कि वो अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर तो वो बहुत आसानी से अपनी पैठ बना लेगा. लिहाज़ा अब उसका पूरा फोकस हिंदुस्तान पर है. शुरूआत में तो उसने खुरासान का जो नक्शा दुनिया के सामने पेश किया था, उसमें गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड का हिस्सा शामिल था. लेकिन बाद में उसने हिंदुस्तान, श्रीलंका, नेपाल और चीन के आधे हिस्से को ही खुरासान में शामिल कर लिया. इनके अलावा जो और देश इस खुरासान के नक्शे में आते हैं, उनमें आधा ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान और किरगिस्तान शामिल हैं. लेकिन अब बग़दादी और उसके गुर्गों की हालत देख कर ये साफ़ है कि उसका ये ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सकता.

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