अनंतनाग में जो बेगुनाह मारे गए. उनके मातम को क्या नाम दूं? क्या कहें कुछ मुसलमानों ने 7 हिंदुओं को मार दिया और 19 को ज़ख्मी कर डाला. नहीं कतई नहीं...हिंदू मुसलमान का चश्मा उतार कर देखें तो पता चलेगा कि हैवान तो इस्माइल था जो सरहद के उस पार से आया था और फरिश्ता वो सलीम था जो हमारा अपना था. जिसने अपनी जान पर खेलकर 50 से ज़्यादा श्रद्धालुओं को बचाया और याद रहे कि मारने वाले से बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है.
अनंतनाग में अमरनाथ यात्रा पर गए श्रद्धालुओं पर आतंकी हमले के दौरान लोगों ने ऐसे ही एक बचाने वाले को देखा. नाम है सलीम शेख. सलीम उस बस का ड्राइवर है, जिस पर सोमवार की रात आतंकवादियों ने हमला किया था. लेकिन अंधाधुंध गोलियों की बौछार के बीच सलीम ने अपनी जान की परवाह किए बग़ैर जिस तरह से बस में बैठे श्रद्धालुओं की जान बचाने की कोशिश की, उस पर किसी को भी नाज़ हो सकता है.
लेकिन अंधाधुंध गोलियों की बौछार के पीछे जिस कुख्यात आतंकी का हाथ है उसका नाम है अबु इस्माइल. लश्कर कमांडर इस्माइल ने ही अमरनाथ यात्रियों पर हमले की पूरी करतूत को अंजाम दिया था. अमरनाथ के बेगुनाह श्रद्धालुओं पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार करनेवाले आतंकवादी भी तो कहने को मुसलमान थे, लेकिन इस्लाम और मुसलमान के असल मायने क्या होते हैं, ये पता चला इस आतंकवादी हमले की जगह यानी अनंतनाग से दो हज़ार किलोमीटर दूर गुजरात के वलसाड से आए एक दूसरे मुसलमान की बदौलत.
ये एक इत्तेफ़ाक ही था कि हाथों में बंदूक लिए जो आतंकवादी हिंदू श्रद्धालुओं की बस पर गोलियां चला रहे थे, उस बस को चलाने वाला एक मुसलमान ही था, सलीम शेख. आतंकवादियों की सोच और गंदी ज़ेहनियत के उलट सलीम को इस्लाम और मुसलमान होने के सही मायने का पता था. और तभी इस आतंकवादी हमले के दौरान उसने वो काम किया, जो किसी भी इंसान का फ़र्ज था.
उसने खुद अपनी ज़िंदगी की परवाह नहीं की और गोलियों की बौछार के बीच पूरी दिलेरी और जांबाज़ी के साथ अपनी बस चलाता रहा और तो और हमले के दौरान एक बार फिर बस का टायर पंक्चर हो गया. लेकिन सलीम शेख ने बस नहीं रोकी और क़रीब डेढ़ किलोमीटर तक तब तक अपनी बस दौड़ाता रहा, जब तक वो आतंकवादियों की पहुंच से बाहर नहीं निकल गए.
इसके बाद उसने अपने घर में टेलीफ़ोन कर उन्हें अपने सलामत होने की खबर तो दी, साथ ही ये भी कहा कि वो हरगिज़ टेलीविजन ना चलाए, जिससे घर के दूसरे लोगों और खास कर बीमार लोगों को टेंशन हो. कहने की ज़रूरत नहीं है कि अगर सोमवार को सलीम ने आतंकवादियों के सामने अपनी जिदारी का मुज़ाहिरा नहीं किया होता, तो आज शायद इस हमले में मरनेवालों की तादाद कहीं और भी ज़्यादा होती. लेकिन सामने से चलती गोलियों के बीच वो अपना सिर झुका कर बस चलाता रहा. और नामालूम कितने और लोगों की ज़िंदगी बचाने में कामयाब रहा.
जम्मू कश्मीर से दूर गुजरात के वलसाड में हमले का शिकार हुए बस के ड्राइवर सलीम के घर एक अजीब सा माहौल है. एक तरफ़ तो उन्हें इस बात सुकून और गर्व है कि उनका अपना सलीम इस हमले में ना सिर्फ़ सलामत बच गया, बल्कि उसने अपनी बस भगा कर दूसरों की ज़िंदगी बचाने की भी कोशिश की. लेकिन इस हमले में जो लोग मारे गए, उनके लिए इस परिवार के दिल में भी एक अनकही तड़प सी है. शायद तभी सलीम के बहादुरी का किस्सा बताने की शुरुआत उसकी मां खुद को मुस्कुराती हुई करती है, लेकिन जवाब देते-देते आगे उनका गला रुंध जाता है और वो रोने लगती हैं.
उधर, सलीम की मां की तरह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी अब बहुत सी मांओं और बहनों के दिल से भी अब बस सलीम के लिए दुआएँ ही निकल रही हैं. सचमुच अगर हमले के वक्त सलीम ने अपनी बहादुरी नहीं दिखाई होती, तो शायद आतंकवादियों की इस करतूत का अंजाम कहीं और भयानक होता.