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राजस्थानः सड़क और कचरे में फेंक चुके हैं मां-बाप, अब सरकार पाल रही है

जब लोग कचरे की तरह बेटियों को कचरे के ही ढेर पर फेंकने लगें तो सरकार सिर्फ यही गुजारिश कर सकती है कि अपनी बेटियों को मारो या फेंकों मत, हमें दे दो. राजस्थान के पालना गृह से निकली ये वो कहानी है, जो सबको झकझोर कर रख देती है.

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10 दिन की बच्ची को कचरे में फेंका
10 दिन की बच्ची को कचरे में फेंका

मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है. मेरे पीछे ये जो कुछ लिखा हुआ है ये उसी डर को ज़ाहिर करता है. कचरा और इंसान में कुछ तो फर्क होना था पर क्या करे वो सरकार भी. उसकी भी क्या गलती. कचरे की तरह जब लोग बेटियों को कचरे के ही ढेर पर फेंकने लगें तो बस यही फरियाद, यही गुजारिश की जा सकती है कि अपनी बेटियों को मारो या फेंको मत बल्कि हमें दे दो. राजस्थान के पालना गृह से निकली ये वो कहानी है जो बस झकझोर जाती है.

आज भी नहीं बदली बेटियों की किस्मत
पहले पैदा होने से पहले मार रहे थे, अब पैदा होने के बाद मार रहे हैं. पहले कचरे के ढेर पर फेंकते थे, अब पालने में फेंक रहे हैं. तरीका बदला पर किस्मत नहीं, क्योंकि वो बेटी है. जो एक दर्द है तेरे सीने में वो ही सच्चा है. पर ये दर्द है कहां? किनके दिलों में है? जिस बच्ची ने अभी ठीक से आंख भी न खोली हो, जिसने अभी दुनिया को ठीक से देखा भी न हो, जिसे अभी भले-बुरे की समझ तक न हो, जो मोहब्बत और नफरत के मायने तक न जानती हो, जो लड़के और लड़की के बीच का फर्क भी न कर पाती हो, उस बच्ची को कोई मां कचरे के ढेर पर भूखे कुत्तों का निवाला बनने छोड़ देती है, तो कोई रेलवे ट्रैक पर मरने के लिए. कोई सड़क किनारे तपती पथरीली जमीन पर फेंक आती है तो कोई मंदिर की सीढ़ियों पर इन्हें खामोशी से रख आती है. सिर्फ इसलिए क्योंकि ये बेटी है.

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बेटियां होने की इतनी बड़ी सजा?
जिसके नन्हे-नन्हे नाजुक पांव अभी जमीन पर भी नहीं पड़े हों उसी मासूम को गोद से उठा कर फेंक दिया जाता है. वो रोती हैं, चीखती हैं पर आंसुओं में लिपटी उन मासूम चीखों को कोई नहीं सुनता. सिर्फ इसलिए क्योंकि ये बेटी है. अगर ये सारी बच्चियां बोल पातीं तो यकीनन अपनी मां से यही कहतीं पर अफसोस, ये बोल नहीं सकतीं. और इनकी पत्थरदिल मां इन मासूमों की अनकही बातों को सुनना ही नहीं चाहती. क्योंकि ये बेटियां हैं. पर ये बेटियां हैं तो क्या इन्हें मार देंगे? इन्हें कचरे में फेंक देंगे?

बेटियों को बचाने के लिए राजस्थान सरकार की पहल
दिल को कचोट देने वाली ये सारी तस्वीरें राजस्थान के अलग-अलग इलाकों की हैं. इन तस्वीरों में वो बदसनीब मासूम बच्चियां हैं, जिन्हें खुद उनकी अपनी मांओं ने गोद से उठा कर सड़क पर फेंक दिया. क्योंकि उन्हें बेटा चाहिए था पर ये बेटियां हैं. किस 21वीं सदी और कैसी-कैसी तरक्की की बातें करते हैं हम सब? पर इस एक तस्वीर को देखने के बाद लगता है कि वो बातें तो बस बातें ही हैं. ये चार लाइनें पूरे समाज को आईना दिखाने के लिए काफी हैं 'फेंकें मत हमें दे दें.' राजस्थान सरकार की ये फरियाद जीती-जागती बेटियों के लिए है.

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सरकार ने कहा मारो मत, हमें दे दो
जाहिर है सवाल कचोट देने वाले हैं. आखिर क्यों, क्यों किसी सरकार को ऐसे पालना गृह बना कर मां-बाप से ये गुजारिश करनी पड़ रही है कि वो अपनी बेटियों को मारें या फेंके नहीं, बल्कि सरकार को दे दें. सरकार उन्हें पाल लेगी. दिल को छलनी कर देने वाले इन सवालों के जवाब जानने से पहले आइए एक बार, बस एक बार उन बेटियों का हाल पूछ लेते हैं जिनहें कायदे से मां की गोद में होना चाहिए था पर अस्पताल में हैं.

10 दिन की मासूम को बेसहारा छोड़ा
महज दस दिन पहले इस दुनिया में आई बच्ची को उसकी मां ने जयपुर में एक मंदिर के पास फूलों की टोकरी में छोड़ दिया. इससे उसकी ममता छीन कर ममता की जगह उसी टोकरी में डायपर, पाउडर और दूध की बोतल रख कर चल दी वो मां. वो तो टोकरी से रोने की आवाज सुन कर किसी की नजर इस बच्ची पर पड़ी तो उसने पुलिस को बुला लिया. पुलिस बच्ची को जयपुर के जेके लोन अस्पताल ले गई. इस वक्त वहीं आईसीयू में इसका इलाज चल रहा है.

झाड़ियों में मिली मासूम, खा रही थी चीटियां
ऐसी ही एक बच्ची जो तीन महीने की है, जयपुर में ही एक झाड़ी में पड़ी मिली. कीड़े-मकोड़ों और जानवरों के बीच. कान चीटियां खा गईं. पैर नीले पड़ गए. फिलहाल जयपुर के जेके लोन अस्पताल में ये बच्ची जिंदगी से जद्दोजेहद कर रही है. दिल और दिमाग दोनों नहीं मानता कि कोई मां अपनी बेटी को यूं झाड़ियों में मरने के लिए फेंक दे.

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तपती धूप में सड़क पर छोड़ गई मां
ऐसी ही एक गुड़िया को विधाधर इलाके में सुनसान सड़क पर कोई मां छोड़ गई. तपती धूप में रोती बच्ची पथरीली सड़क पर किसी मजदूर को मिली. फिर पुलिस उसे अस्पताल ले आई. बच्ची तो बस तीन दिन पहले ही दुनिया में आई थी. 44 डिग्री पारा में तपती धूप के बीच पथरीली सड़क पर पड़ी रहने की वजह से उसका शरीर काला पड़ गया.

रेल की पटरी पर फेंका, अस्पताल में मौत
चार महीने की एक मासूम कोटा से 40 किमी दूर इंदरगढ़ रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर मिली थी. शायद उसकी मां ने इस उम्मीद में उसे पटरियों के बीच फेंक दिया था कि ये ट्रेन के नीचे आ जाए पर एक शख्स की नजर बच्ची पर पड़ गई तो उसकी जान बच गई. फिलहाल ये मासूम भी अस्पताल में है. दुनिया में आने के सिर्फ चंद घंटों के अंदर ही मासूम ने इतनी सारी चीजें देख ली थीं कि अब इस दुनिया को ये शायद और देखना ही नहीं चाहती थी और इसीलिए चल बसी. पैदा होने के सिर्फ एक दिन बाद ये गुमनाम बच्ची बीकानेर के एक पालना गृह में मिली थी. उसकी हालत नाजुक थी. अस्पताल में डाक्टरों ने कोशिश भी की पर ममता का मुंह फेर लेना ये बेटी बर्दाश्त ही नहीं कर पाई.

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कोख में नहीं तो सड़कों पर बच्चियों को बांट रहे हैं मौत
पिछले एक महीने में राजस्थान के जयपुर, उदयपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, श्रीगंगानगर, सीकर और धौलपुर में 16 बेटियों को इसी तरह पैदा होने के बाद अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया गया. इनमें से ज्यादातर बच्चियों की हालत बेहद खराब थी. जिसकी वजह से कुछ को तो बचाया भी नहीं जा सका पर जिस राजस्थान में अब तक कोख में ही बेटियों को मार दिया जाता था वहां अचानक अब बेटियों को सड़कों, झाड़ियों और ऐसे पालना गृह में क्यों फेंका जा रहा है? तो इसकी वजह राजस्थान का एक कानून है. एक ऐसा कानून जिसके चलते अब बेटियों की कोख में तो मौत बंद हो गई मगर सड़कों पर उनकी तादाद बढ़ गई.

राजस्थान सरकार का नया कानून
राजस्थान में लंबे अर्से से ये हो रहा था कि लोग जन्म से पहले ही लिंग की जांच करा कर ये पता लगा लेते थे कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की. अगर लड़की होती तो उसे गर्भ में ही मार डालते थे और इस काम में बहुत से डॉक्टर उनकी पूरी मदद कर रहे थे. इसी के बाद राजस्थान सरकार ने एक कानून बनाया. बस इस कानून के आते ही बेटियों के फेंके जाने का सिलसिला शुरू हो गया. लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम यानी पीसीपीएनडीटी एक्ट. यही वो कानून है जिसने एक तरफ राजस्थान में कोख में तो बेटियों के कत्ल पर कुछ हद तक रोक लगा दी मगर राज्य भर में ऐसे पालना गृह की तादाद बढ़ा दी.

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सरकारी पहल का असर
दरअसल कोख में बेटियों के कत्ल की बढ़ती वारदात को देखते हुए राजस्थान सरकार ने इस कानून के तहत गर्भ में लिंग जांच पर सख्ती से रोक लगा दी थी. इस दौरान राज्य भर में ऐसे डॉक्टरों, नर्सिंग होम, क्लीनिक और अस्पतालों पर छापे मारे गए. इस कानून के तहत अब तक 60 से ज्यादा डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं जबकि 150 से ज्यादा सोनोग्राफी सेंटरों पर भी कार्रवाई की गई है. वैसे राजस्थान सरकार के इस कानून का असर भी दिखा है. कोख में कत्ल की संख्या कम हो रही है. 2015-16 में लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात 929 हो गया है जबकि 2011 में ये आंकड़ा 887 था.

लेकिन बच्चियों को फेंकने की बढ़ी घटनाएं
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि गर्भ में भ्रूण जांच को लेकर चलाए जा रहे इस अभियान की वजह से अब लड़कियों को सड़कों पर या पालना गृह में फेंकने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसकी वजह ये है कि अब लोग गर्भ में लिंग का पता नहीं लग पा रहे. लिहाजा पैदा होने के बाद ही उन्हें लड़का या लड़की होने का पता चलता है. बेटा हुआ तो ठीक बेटी हुई तो उसे फेंक आते हैं.

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ऐसे हुआ पालना गृहों का जन्म
जब लोग बेटियों को कचरे के ढेर पर, सड़क किनारे, रेलवे लाइन पर और यहां तक कि झाड़ियों-जंगलों में फेंकने लगे तब बेटियों की जान बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक फैसला लिया. फैसला बेटियों को खुद पालने का और उसी फैसले से जन्म हुआ पालना गृह का. फेंको मत... हमें दे दो. ये है आज के राजस्थान की हकीकत. गर्भ में लिंग जांच पर रोक लगाए जाने के बाद जब लगों ने बेटियों को फेंकना शुरू किया तब सरकार ने ये नया कदम उठाया. पालना गृह. इस पालना गृह को शुरू करने का मकसद यही है कि लोग बेटियां पैदा होने पर उन्हें मारें या फेंकें नहीं. बल्कि इन पालना गृह में छोड़ जाएं. बेटियों को सरकार पालेगी.

1700 बेटियों को पाल रहे अनाथालय
फिलहाल पूरे राजस्थान में ऐसे 150 पालना गृह बनाए गए हैं. इसके अलावा तीस अनाथालय हैं जिनमें इस वक्त 1700 बेटियां पल रही हैं. सरकार ने एलान किया है कि राजस्थान के हर जिले में करीब 700 पालना गृह बनाए जाएंगे. पालना गृह इस तरह बनाए गए हैं कि यहं कोई भी बिना अपनी पहचान बताए बेटियों को छोड़ सकता है. इसके लिए ज्यादातर पालना गृह सुनसान जगहों पर बनाए जा रहे हैं.

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