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कार्डियक सर्जन की फर्जी डिग्री, 15 ऑपरेशन और 7 मौत... MP के 'डॉक्टर डेथ' की सच्चाई सुन पैरों तले खिसक जाएगी जमीन!

Damoh Fake Doctor Scandal: मध्य प्रदेश के दमोह में एक मिशन अस्पताल है. उसकी जितनी बड़ी इमारत, उतना ही बड़ा नाम. लेकिन हाल के कुछ महीनों से ये अस्पताल एक गलत वजह से चर्चे में है. अस्पताल में कार्डियोलॉजी यानी दिल के जितने भी मरीजों का ऑपरेशन किया जाता है, उनमें से आधे मौत के मुंह में समा जाते हैं.

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मध्य प्रदेश के दमोह में एक फर्जी डॉक्टर का महाफर्जीवाड़ा सामने आया है.
मध्य प्रदेश के दमोह में एक फर्जी डॉक्टर का महाफर्जीवाड़ा सामने आया है.

मध्य प्रदेश के दमोह में एक मिशन अस्पताल है. उसकी जितनी बड़ी इमारत, उतना ही बड़ा नाम. लेकिन हाल के कुछ महीनों से ये अस्पताल एक गलत वजह से चर्चे में है. अस्पताल में कार्डियोलॉजी यानी दिल के जितने भी मरीजों का ऑपरेशन किया जाता है, उनमें से आधे मौत के मुंह में समा जाते हैं. कम से कम पिछले ढाई महीने तो कुछ ऐसा ही हुआ. लेकिन अब जब इन मौतों की सच्चाई सामने आई है, लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई है. पता चला है कि अस्पताल में ऑपरेशन के बाद होने वाली मौतों के पीछे कोई इत्तेफाक, कुदरत की मर्जी या बदकिस्मती नहीं थी, बल्कि ये एक ऐसा फर्जीवाड़ा था, जिसमें ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर ही फर्जी निकला.

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एक ऐसा शख्स जो डॉक्टर बन कर लोगों की जिंदगी से खेल रहा था, वो असल में डॉक्टर था ही नहीं. अस्पताल में ऑपरेशन के बाद पहले एक की मौत हुई. फिर दूसरे मरीज की. फिर तीसरे. चौथे और इस तरह एक-एक कर कुल सात लोग बेमौत मारे गए. लेकिन अब से पहले तक इन मौतों को लोग तकदीर का लिखा मान कर खुद को दिलासा देते आ रहे थे. लेकिन शायद अब इस सिलसिले के थमने का वक्त आ गया था. एक शख्स ने इसकी मानवाधिकार आयोग से शिकायत कर दी.

इन मौतों को लेकर चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी के दीपक तिवारी ने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए ना सिर्फ मानवाधिकार आयोग की एक टीम खुद ही इस मामले की जांच के लिए दमोह पहुंची, बल्कि दमोह पुलिस को भी इसकी जांच के आदेश दिए. जब जांच आगे बढ़ी तो एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसके बारे में आज से पहले कभी किसी ने सुना भी नहीं था. इस सच को जानने के बाद किसी को भी उस पर जरा भी यकीन नहीं हो रहा था.

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क्योंकि क्या आप यकीन करेंगे कि मिशन अस्पताल में जो डॉक्टर मरीजों का ऑपरेशन कर उनके दिलों से खेल रहा था वो असल में कोई डॉक्टर था ही नहीं. दावा है कि उसके पास सारी की सारी डिग्रियां फर्जी थी. यानी वो डॉक्टर के नाम पर एक खालिस जालसाज था, जो मिशन अस्पताल में ताबड़तोड़ ऑपरेशन कर पैसे बना रहा था और उसकी कमाई के चक्कर में भोले-भाले और बेगुनाह मरीज बेमौत मारे जा रहे थे. जाहिर है इस खबर से दमोह के साथ पूरे एमपी में भूचाल आ गया.

ये अपनी तरह का एक अजीबोगरीब केस था. इस आदमी ने अपना नाम बताया था डॉक्टर एन जॉन केम. लंदन से कार्डियक सर्जरी की पढ़ाई करने का दावा करने वाले डॉ एन जॉन केम ने पिछले ढाई महीनों में कुल 15 लोगों के हार्ट का ऑपरेशन कर डाला था और इन 15 में से 7 की मौत हो गई थी. यानी ऑपरेशन का सक्सेस रेट सिर्फ 50 फीसदी के आस-पास ही था. लेकिन इधर जांच चालू हुई और उधर डॉ एन जॉन केम गायब हो गया. और इसी के साथ कई दूसरी बातों को लेकर शक गहरा गया.

Damoh Fake Doctor Scandal

डॉ केम की असलियत एक कॉनमैन यानी जालसाज के सिवाय और कुछ भी नहीं. आखिरकार सीएमएचओ डॉ मुकेश जैन ने इस मामले में कोतवाली थाने में डॉ केम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई और उसकी तलाश शुरू कर दी गई. लेकिन आगे इस केस में ऐसे-ऐसे खुलासे हुए कि जिनकी सच्चाई जान कर खुद पुलिस भी सन्न रह गई. अब तक दमोह पुलिस की छानबीन में डॉ केम की असली पहचान भी सामने आ चुकी थी. पता चला कि जो शख्स खुद को विदेश से पढ़ कर आया हुआ डॉ केम बता रहा है, उसका असली नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जो मूल रूप से यूपी के कानपुर का रहने वाला है. वैसे ब्रिटेन में डॉ एन जॉन केम नाम के एक सचमुच के हार्ट सर्जन हैं, जो काफी मशहूर हैं.

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इस ठग ने उनके इसी नाम का इस्तेमाल करते हुए खुद को ही डॉ एन जॉन केम घोषित कर लिया था. खैर, नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नाम के इस ठग की तलाश में अब पुलिस उसके मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा चुकी थी और नंबर की लास्ट लोकेशन यूपी के प्रयागराज में नजर आई. आनन-फानन में दमोह पुलिस की एक टीम प्रयागराज रवाना हुई, लेकिन ऐन मौके पर डॉ केम उर्फ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव का मोबाइल फोन स्विच्ड ऑफ हो गया. आखिरकार दमोह पुलिस को उसे प्रयागराज से गिरफ्तार करने में कामयाबी मिल ही गई. 

गिरफ्तारी के बाद जब इस शख्स को दमोह लाकर उससे पूछताछ की गई, तो उसने ऐसी-ऐसी बातें बताईं कि सारे लोग चकरा गए. लोगों को समझ में नहीं आया कि कोई इस लेवल का फर्जीवाड़ा भी कर सकता है. जांच के सिलसिले में जब मिशन अस्पताल से डॉ केम के डॉक्यूमेंट्स मांगे गए, तो बताया कि उसने कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई की है, जबकि कार्डिएक सर्जन की डिग्री पॉन्डिचेरी से ली है. लेकिन जब इन डॉक्यूमेंट्स को वेरिफाई किया गया, तो सब के सब फर्जी निकले.

Damoh Fake Doctor Scandal

यहां तक कि पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी के चांसलर के तौर पर डॉ केम की डिग्री में तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी का जो हस्ताक्षर था, वो भी फर्जी था. अब सवाल ये भी था कि आखिर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को मिशन अस्पताल ने अपने यहां नौकरी पर रखा कैसे? तो जाहिर है इस मामले की भी जांच होनी है. लेकिन फिलहाल ये पता चला है कि मिशन अस्पताल ने उसे हर महीने 8 लाख रुपए की सैलरी पर नौकरी दी थी. छानबीन में साफ हुआ है कि इस अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना के तहत भी मरीजों का इलाज होता था और अब शक है कि उस योजना के तहत आने वाली रकम में भी घोटालेबाजी की गई है. इस मामले पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. 

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वैसे डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव की जालसाजी और धोखे से किए गए ऑपरेशन से हुई मौतों का ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी वो कई जगहों पर ऐसी ही हरकतें कर चुका है. डॉ केम उर्फ यादव का नया सच सामने आने के बाद अब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में भी उसकी करतूतों का पिटारा खुल गया है. पता चला है कि नरेंद्र विक्रमादित्य यादव साल 2005-06 में वहां के एक नामी अस्पताल में सर्जन के तौर पर पोस्टेड था. वहां भी उसने ऐसे ताबड़तोड़ ऑपरेशन कर कई लोगों की जान ले ली थी. 

यहां तक कि उसी ने छत्तीसगढ़ विधान सभा के अध्यक्ष रहे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल का भी ऑपरेशन किया था, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी. अब मध्य प्रदेश में उसी नरेंद्र विक्रमादित्य यादव का सच सामने आने के बाद शुक्ल के बेटे प्रोफेसर प्रदीप शुक्ल की सारी पुरानी यादें ताजा हो गई हैं और वो गुनहगार पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. अब इस केस स्टडी को पढ़िए. दमोह के रहने वाले मंगल सिंह राजपूत को 4 फरवरी को सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई. इसके बाद उन्हें मिशन अस्पताल में भर्ती करवाया गया.

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वहां लंदन से आए कार्डियोलॉजिस्ट डॉ एन जॉन केम उर्फ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने उसका ऑपरेशन किया और फिर उसकी जान चली गई. लेकिन अब उन्हें पता चला है कि लंदन ने आने वाला वो डॉक्टर और उसकी पूरी की पूरी कहानी ही फर्जी है. जाहिर है दमोह में ऐसे एक नहीं अब कई केसेज़ हैं. वैसे नरेंद्र विक्रमादित्य यादव इससे पहले भी चर्चे में आ चुका है. इससे पहले वो नरसिंहपुर में डॉक्टर के तौर पर काम कर चुका है. लेकिन वहां इसके इलाज से कितनों की जांच गई अब वो भी जांच का विषय है.

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वैसे इस मामले में दमोह के मिशन अस्पताल की भूमिका भी शक के घेरे में है. सवाल ये है कि अस्पताल ने ऐसे किसी जालसाज को आंख मूंद कर नौकरी पर कैसे रख लिया? कैसे उसे लोगों के दिलों का ऑपरेशन करने की छूट दे दी? इस मामले में अस्पताल का संचालक अजय लाल भी अब फरार हो गया है. उस पर फर्जीवाड़े में शामिल होने के साथ-साथ धर्मांतरण का भी आरोप है. पुलिस की कई टीमें इस मामले की जांच में लगी हुई है. मुख्यमंत्री के दखल के बाद पुलिसिया कार्रवाई तेज हो गई है.
 

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