
कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) देशभर के कई राज्यों में दस्तक दे चुका है. इसके कई मामले दिन-ब-दिन सामने आ रहे हैं जो कि बेहद चिंताजनक हैं. Omicron variant के बारे में पता लगाने के लिए जीनोम sequencing की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक का नाम आप पिछले कई दिनों से सुन रहे होंगे, लेकिन जीनोम sequencing आखिर है क्या, कैसे पता चलता है कि आपके सैंपल में वैरिएंट ओमिक्रॉन पाया गया है या नहीं? जानिए, किस तरह से यह पूरी प्रतिक्रिया होती है.
आईएलबीएस के वाइस चांसलर डॉक्टर एसके सरीन बताते हैं, मानव शरीर जैसे DNA से मिलकर बनता है, वैसे ही वायरस भी या तो DNA या फिर RNA से बनता है. कोरोना वायरस RNA से बना है. जीनोम सीक्वेंसिंग वह तकनीक है, जिससे RNA की जेनेटिक जानकारी मिलती है. आसान भाषा में कहें तो वायरस कैसा है, कैसे हमला करता है और कैसे बढ़ता है, ये जानने में जीनोम सीक्वेंस ही काम आता है.
RNA प्रोसेसिंग की प्रक्रिया
सबसे पहले आपके RT-PCR सैंपल को bsl3 लैब में लाया जाता है. वहां पर उस सैंपल में से आरएनए को अलग किया जाता है. इसके बाद जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती है, इसीलिए आरएनए को उस सैंपल वायरस से अलग करना बेहद जरूरी है. आरएनए अलग करने के बाद इसे -80 डिग्री के टेंपरेचर पर रखा जाता है. इसके बाद सीधे जिनोम सीक्वेंसिंग लैब में लाया जाता है. जहां पर आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया शुरू होती है.

RNA को DNA में करते हैं तब्दील
लैब के डॉक्टर प्रमोद बताते हैं कि आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में आरएनए को डीएनए में तब्दील किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि आरएनए बहुत जल्दी रिएक्ट कर जाता है जिसके कारण उस पर किसी भी तरह का टेस्ट करना मुमकिन नहीं है. इसलिए इसे डीएनए में कन्वर्ट किया जाता है. डीएनए में कन्वर्ट करने के लिए इसे एक न्यूनतम तापमान पर एक पीसीआर मशीन में डाला जाता है. जब डीएनए, आरएनए में कन्वर्ट हो जाता है तब इसे फ्रेगमेंटेशन के लिए भेजते हैं.

क्या है फ्रेगमेंटेशन
डॉक्टर वरुण ने बताया कि फ्रेगमेंटेशन वह प्रक्रिया है, जहां पर डीएनए को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा जाता है. चूंकि डीएनए का सैंपल बहुत लंबा होता है, इसलिए उसे सीक्वेंस नहीं किया जा सकता. इसी कारण से उसका फ्रेगमेंटेशन किया जाना बेहद जरूरी है. फ्रेगमेंटेशन के बाद इंडेक्सिंग की प्रक्रिया होती है. इस प्रक्रिया में हर एक सैंपल को नाम देकर टैग किया जाता है.
एनालाइजर मशीन से चलता है पता
इंडेक्शन के बाद इसे सीक्वेंसिंग के लिए एनालाइजर मशीन में डाला जाता है. एनालाइजर मशीन में यह पता चलता है कि सैंपल की मात्रा और उसकी गुणवत्ता सही है या नहीं. यदि यहां सब सही हुआ तो ग्राफ के जरिए यह पता लगता है कि सैंपल को आगे की प्रक्रिया के लिए भेजा जा सकता है.

केमिकल्स से होती है सीक्वेंसिंग
एनालाइज करने के बाद इस अप्रूव्ड सैंपल को एक मशीन में डाला जाता है जहां पर कई सारे केमिकल्स के साथ इसे मिक्स किया जाता है. इसी मशीन में पूरी सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती है. सीक्वेंसिंग की मशीन को डाटा एनालाइजर मशीन पर डाला जाता है, जिससे पता लग सके कि सैंपल में कौन-सा वैरिएंट पाया गया है.

वायरस में म्यूटेशन बताती है डाटा एनालाइजर मशीन
डाटा एनालाइजर मशीन में जीनोम में होने वाले बदलाव के बारे में पता चलता है. यह बदलाव पुराने वायरस से कितना अलग है? यह भी बतलाता है. सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टर्स समझ पाते हैं कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ? अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो ये ज्यादा संक्रामक होता है. इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक हफ्ते का समय तो लगता ही है.