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कोरोना वैक्सीन की सिंगल डोज ही प्रभावी? साइंस जर्नल-BHU के तर्क को एक्सपर्ट ने किया खारिज

ऐसी रिसर्च भी सामने आ रही हैं, जिनमें ये दावा किया जा रहा है कि अगर कोरोना हो चुका है तो पर्याप्त एंटीबॉडीज़ बनाने के लिए वैक्सीन की एक डोज़ ही काफी है. हालांकि इस थ्योरी पर कई एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं.

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कोरोना वैक्सीन लगवाते बुजुर्ग (फोटो-pti)
कोरोना वैक्सीन लगवाते बुजुर्ग (फोटो-pti)

कोरोना वैक्सीन की कमी के बीच भारत सरकार इस पर भी रिसर्च करने वाली है कि क्या वैक्सीन की एक डोज़ ही काफी है. ऐसी रिसर्च भी सामने आ रही हैं, जिनमें ये दावा किया जा रहा है कि अगर कोरोना हो चुका है तो पर्याप्त एंटीबॉडीज़ बनाने के लिए वैक्सीन की एक डोज़ ही काफी है. हालांकि इस थ्योरी पर कई एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं.

भारत में सरकार का महत्वाकांक्षी कोरोना टीकाकरण अभियान हिचकोले खा रहा है. ना सिर्फ वैक्सीन की कमी है, बल्कि डर, अफ़वाह और वैक्सीन के असरदार होने पर जबरदस्त कन्फ्यूजन है. इन सबके बीच भारत में कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक वी वैक्सीन लगाई जा रही हैं. इनमें भी सबसे ज़्यादा डोज़ कोविशील्ड की लगाई जा रही है.

अब तक लगी वैक्सीन डोज़ में से 90 फीसदी से ज़्यादा कोविशील्ड है. भारत सरकार अगले कुछ महीनों में इस बात पर रिसर्च करेगी कि क्या कोविशील्ड की सिंगल डोज़.. कोरोना से रक्षा के लिए काफी है?

साइंस जर्नल का दावा- कोरोना से ठीक हुए लोगों में एक डोज काफी
आपको बता दें कि हर वैक्सीन की अलग-अलग डोज़ में समय का एक निश्चित अंतर होता है और ये अंतर इसलिए होता है ताकि अच्छी मात्रा में एंटीबॉडी बन सके. कोविशील्ड को लेकर अलग-अलग रिसर्च आए और वैक्सीन की डोज़ के बीच का गैप कई बार बढ़ाया गया. माना गया कि जो व्यक्ति कोरोना से बचा हुआ है, उसे दो डोज़ लगाने पर ही पर्याप्त एंटीबॉडी बनेगी.

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भारत में 4 करोड़ 30 लाख से ज़्यादा लोगों ने दोनों डोज ली है. इनमें एंटीबॉडी भी बनी है, लेकिन बहुत से ऐसे केस भी होते हैं, जिनमें एंटीबॉडी पर्याप्त मात्रा में नहीं बनती. इस बीच साइंस जर्नल नेचर में पब्लिश हुई रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना से ठीक हुए लोगों में वैक्सीन की एक डोज काफी है यानी उन्हें बूस्टर या दूसरी डोज लगाने की जरूरत ही नहीं है.

बीएचयू ने भी साइंस जर्नल के रिसर्च को बताया सही
वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे लोगों में एंटीबॉडी प्राकृतिक रूप से बनती है और अगर कोरोना से रिकवर हुए लोगों को  वैक्सीन का एक डोज भी मिल जाए तो इम्यूनिटी लंबे समय तक बनी रहती है. इसके साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी अपनी स्टडी में पाया है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों के लिए वैक्सीन की एक डोज ही पर्याप्त है.

BHU के वैज्ञानिकों ने 20 लोगों पर अध्ययन किया है और इस रिसर्च को पब्लिश करने के लिए भेजा है. संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से साझा किया है और ये सुझाव दिया है कि कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को वैक्सीन की एक डोज ही दी जाए. इससे वैक्सीन का संकट दूर होगा.

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मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स ने सिंगल डोज पर उठाए सवाल
अब सवाल उठता है ऐसे दावों का पूरा सच क्या है. क्या कोरोना से ठीक हुए मरीजों को वैक्सीन की दूसरी डोज की जरूरत ही नहीं है. हमें ये समझना चाहिए कि डोज का निर्धारण किस आधार पर होता है और ये कैसे पता लगेगा कि वैक्सीन का एक डोज ही पर्याप्त है. हमने भी इन सवालों का जवाब मेडिकल साइंस के एक्सपर्ट्स से पूछा.

वैज्ञानिक प्रोफेसर गिरिधर बाबू ने कहा कि नहीं, बिल्कुल भी अच्छा विचार नहीं है, यह सुझाव देने के लिए कोई डेटा नहीं है कि जनसंख्या स्तर पर मृत्यु दर या गंभीर बीमारी के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक खुराक ही काफी है, उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि टीकों की दो खुराक मौतों को रोकने में प्रभावी है.

प्रोफेसर गिरिधर बाबू ने कहा कि कमजोर आबादी के लिए दोनों खुराक की आवश्यकता है, दी गई समय सीमा में यदि हम दो खुराक को कवर करने में असमर्थ हैं, तो शायद हम एक खुराक को कवर कर सकते हैं, लेकिन दूसरी खुराक को कुछ समय बाद कम से कम 12 सप्ताह की अवधि में दिया जाना चाहिए.

 

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