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दिल्ली: LNJP अस्पताल में घोर लापरवाही, अंदर चल रहा था इलाज, कहा- भाग गया कोरोना मरीज

संदीप ने बताया कि हम अपने पिता की तबीयत के बारे में डॉक्टरों की तरफ से जवाब मिलने का इंतजार करते रहे थे, लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने वार्ड बॉय को 1000 रुपये दिए ताकि हम उनसे बात कर सकें.

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दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में लापरवाही (फाइल फोटो-PTI)
दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में लापरवाही (फाइल फोटो-PTI)

  • अस्पताल को मरीज के बारे में ठीक से नहीं थी जानकारी
  • पहले बताया मरीज भाग गया, पर मरीज अस्पताल में ही था

दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में कोरोना मरीजों के उचित इलाज न मिलने की शिकायतें मिलती रही हैं, लेकिन अब एक लापरवाही का केस सामने आया है. मामला 60 साल के कोरोना संक्रमित सुरिंदर कुमार से जुड़ा है.

सुरिंदर कुमार के बेटे संदीप ने इंडिया टुडे को बताया कि उनके पिता को 9 जून को एलएनजेपी अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती किया गया था. अस्पताल ने उचित इलाज का आश्वासन दिया. लेकिन अगले दिन जब उन्होंने अपने पिता की स्थिति के बारे में पूछा तो डॉक्टरों ने कोई ढंग का जवाब नहीं दिया. इसकी वजह से संदीप के परिवार वाले काफी चिंतित हो गए.

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संदीप ने बताया कि हम अपने पिता की तबीयत के बारे में डॉक्टरों की तरफ से जवाब मिलने का इंतजार करते रहे थे, लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने वार्ड बॉय को 1000 रुपये दिए ताकि हम उनसे बात कर सकें.

संदीप ने बताया कि आखिरकार जब फोन पिता जी के पास पहुंचा तो मैंने उन्हें कॉल किया. पिता जी बोले कि मुझे यहां से ले चलो, मैं यहां कोरोना से तो नहीं लेकिन इनके खराब ट्रीटमेंट की वजह से जरूर मर जाऊंगा. इसके बाद हम फौरन अस्पताल भागे. चूंकि पहले फोन के बाद उन्होंन दूसरी कॉल रिसीव नहीं को तो हम लोग और डर गए.

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बकौल संदीप, जैसे ही मैं अपने भाई के साथ अस्पताल पहुंचा, अस्पताल प्रशासन ने बताया कि आपके पिता यहां से भाग गए हैं. मैं ये सुनकर हैरान था क्योंकि मुझे पता था कि मेरे पिता अस्पताल में खराब ट्रीटमेंट के बावजूद ऐसा नहीं करेंगे. इसके तुरंत बाद मुझे मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर का फोन आया और उन्होंने मुझसे मेरे पिता का नाम पूछा और जब मैंने उन्हें बताया, तो उनकी तत्काल प्रतिक्रिया थी कि अस्पताल के अनुसार "आपके पिता अस्पताल से भाग गए हैं."

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संदीप ने कहा कि इस पर मुझे और मेरे भाई को समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहें. क्योंकि हम दोनों जानते थे कि हमारे पिता ऐसा कभी नहीं करेंगे. इसके बाद हमारी प्रशासन से बहस हो गई. अस्पताल परिसर के अंदर हंगामा हुआ क्योंकि हम सुबह से शाम तक इंतजार कर रहे थे और शाम तक उनके बारे में अस्पताल से कोई जवाब नहीं मिला कि उनका इलाज कैसा चल रहा है, और अचानक मेरे पिता भाग कैसे गए.

संदीप ने बताया कि काफी हंगामे के बाद हमें एक सफाईकर्मी की मदद मिली. मैंने उसे अपने पिता की तस्वीर दिखाई और उसे 700 रुपये दिए और कहा कि वो हमारी मदद करे. बाद में स्वीपर ने हमें बताया कि उसने हमारे पिता को देखा और उन्हें एक अलग वार्ड में डायलिसिस दिया जा रहा था.

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हम आश्चर्यचकित थे. जब मैंने अस्पताल प्रशासन से बताया कि मेरे पिता अस्पताल में ही हैं तो स्टाफ के पास कहने के लिए कुछ नहीं था. बाद में हमें लगा कि यहां कोई ख्याल रखने वाला नहीं है और हमने अपने पिता जी को दूसरे अस्पताल में भर्ती कराने का फैसला किया.

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