एक साल से ज्यादा होने के बाद अभी भी पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना के नए-नए लक्षणों और उससे जुड़ीं दिक्कतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में न्यू जर्सी के रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को अपनी स्टडी में पहला ऐसा मामला मिला था जिसमें कोरोना की वजह से मरीज के बाजू में खतरनाक ब्लड क्लॉटिंग हो गई. जिसे लेकर दुनिया भर में काफी बवाल हुआ. वैक्सीन पर कुछ दिनों के लिए अस्थाई रोक लगा दी गई.
जॉन्सन एंड जॉन्सन और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने के बाद कुछ जगहों पर ब्लड क्लॉट के मामले सामने आए थे. ऐसे में अब ब्रिटेन में हुई एक रिसर्च से सामने आया है कि एस्ट्राजेनेका या फाइजर की वैक्सीन की पहली डोज की तुलना में कोरोना वायरस के संक्रमण से ब्लड क्लॉट होने का ज्यादा खतरा है.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक 29 मिलियन से अधिक लोगों के रिजल्ट्स पर नजर रखी गई जिन्हें दिसंबर 2020 से अप्रैल 2021 के बीच किसी भी टीके की पहली डोज दी गई थी. जानकारी के मुताबिक रिसर्च में सामने आया कि एस्ट्राजेनेका की पहली डोज लेने वाले करीब 1 करोड़ लोगों में से 66 लोगों को ब्लड क्लॉटिंग जैसी दिक्कत का सामना करना पड़ा. रिसर्च में एस्ट्राजेनेका या फाइजर की वैक्सीन का पहला डोज लगवाने वाले दो करोड़ 90 लाख से ज्यादा लोगों के नतीजों को जांचा गया था.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल महामारी विज्ञान और सामान्य अभ्यास (Professor of Clinical Epidemiology and General Practice) की प्रोफेसर जूलिया हिप्पीस्ले-कॉक्स ने कहा कि लोगों को कोरोना वैक्सीनेशन के बाद इन बढ़े हुए जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए और लक्षण मिलने पर तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए. लेकिन यह भी ध्यान रखें कि यदि वे SARS-CoV-2 से संक्रमित हो जाते हैं तो जोखिम काफी अधिक और अधिक समय तक रहता है.