अजय (बदला हुआ नाम) पूर्वी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. वे मुंबई में नौकरी करते थे. उन्होंने अपनी नौकरी गवां दी और अपने पैतृक गांव वापस लौटने का फैसला किया. 56 घंटे की लंबी और मुश्किल यात्रा के बाद वे घर पहुंचे तो उनका परिवार और ग्रामीणों ने पहले की तरह स्वागत नहीं किया.
38 वर्षीय अजय को गांव के बाहर रामलीला मैदान में कम से कम 14 दिनों तक ठहरने के लिए कहा गया है. मेडिकल प्रमाणपत्र दिखाने के बावजूद अजय लोगों को यह समझाने में कामयाब नहीं हो सके कि उनका कोरोना वायरस टेस्ट निगेटिव आया है. गांव के लोग उन्हें भोजन, पानी वगैरह सब कुछ उपलब्ध करा रहे हैं, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया है कि अजय को गांव के बाहर 14 दिन बिताने होंगे.
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इसी तरह उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में लोग कोरोना के मामलों में काफी सतर्क हैं. मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि प्रवासी मजदूरों के वापस लौटने की वजह से बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में कोविड-19 की “प्रभावी प्रजनन दर” (effective reproductive number-Rt) का रुझान ऊपर की ओर जाता दिख रहा है.
प्रभावी प्रजनन दर
“प्रभावी प्रजनन दर” या Rt रोग की प्रसार क्षमता का अनुमान लगाने का एक उपकरण है. Rt के जरिये यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे कोरोना वायरस एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे लोगों में फैल रहा है. इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन के हर चरण में प्रभावी प्रजनन दर (Rt) में गिरावट आई है और यह गिरावट हर राज्य में अलग-अलग रही है. लेकिन 3 मई को लागू हुए लॉकडाउन के बाद आरटी में तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है.
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इस अध्ययन से जुड़े डॉ लक्ष्मीकांत द्विवेदी ने इंडिया टुडे को बताया, “प्रभावी प्रजनन दर में अचानक वृद्धि वापस लौट रहे इन प्रवासियों के कारण हो सकती है, क्योंकि सरकार संपर्कों का पता लगाने में सक्षम नहीं है. इसके अलावा, अच्छी गुणवत्ता के क्वारनटीन न होने के कारण सरकार कोरोना के मामलों की पहचान करने में भी असमर्थ है.”
IIPS अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि आने वाले दिनों में कोरोना वायरस के मामले बढ़ेंगे. इसमें कहा गया है, “आने वाले हफ्तों में आशंका है कि भारत में रोजाना कन्फर्म केसेज बढ़ेंगे क्योंकि प्रवासी बड़ी संख्या में घर लौट रहे हैं. इसलिए सभी राज्यों में आइसोलेशन बेड, आईसीयू बेड और वेंटिलेटर बेड की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए”. प्रभावी प्रजनन दर के मूल्य में उल्लेखनीय वृद्धि 17 से 22 मई के बीच देखी गई है.
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के कुल कर्मचारियों में से 40 प्रतिशत से अधिक प्रवासी कामगार हैं जो स्थायी या अर्ध-स्थायी नौकरियों में लगे हैं. इसके अलावा, लगभग 1.5 करोड़ प्रवासी कामगार नौकरियों की अल्पकालिक अस्थायी या चलने फिरने वाली नौकरियां करते हैं.
आर्थिक सर्वेक्षण, 2017 के अनुसार, 2011 से 2016 के बीच हर साल करीब 90 लाख लोग अंतरराज्यीय प्रवासी के रूप में बाहर काम करने गए. इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश से हैं. वे नौकरी खोजने के लिए महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु और केरल जैसे उच्च आय वाले राज्यों में गए हैं.
प्रभावी प्रजनन दर
शहरों से पलायन
घातक कोरोना वायरस बीमारी के संक्रमण को रोकने और इसकी श्रृंखला को तोड़ने के लिए कई चरणों में लॉकडाउन लागू किया गया. लेकिन इस लॉकडाउन के कारण शहरों से कामगारों, खास तौर पर दिहाड़ी मजदूरी करने वालों ने शहरों से अपने गांवों की ओर पलायन किया.
IIPS का ही एक और अध्ययन कहता है, “देश के भीतर कुछ विशिष्ट माइग्रेशन कॉरिडोर हैं- बिहार से दिल्ली, बिहार से हरियाणा और पंजाब, उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र, ओडिशा से गुजरात, ओडिशा से आंध्र प्रदेश और राजस्थान से गुजरात. इस बात की काफी संभावना है कि प्रवासियों की वापसी के कारण गरीब राज्यों में कोविड-19 के मामलों में काफी तेजी से वृद्धि हो सकती है.”
प्रभावी प्रजनन दर
कोविड-19 की प्रसार दर से पता चलता है कि इस बीमारी के केंद्र महानगरीय इलाके रहे, जहां से यह बीमारी निकटवर्ती इलाकों में फैल रही है. ये प्रवासी मजदूर इन शहरों में असंगठित क्षेत्र के छोटे और मध्यम उद्योगों में काम कर रहे थे. कोविड-19 के चलते लागू हुए लॉकडाउन के चलते देश मंदी का सामना कर रहा है और अब यह असंगठित क्षेत्र करीब-करीब ढहने के कगार पर है.