पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस की वैक्सीन के लिए परेशान है. ऐसे आपको पता चले कि आपके हिस्से की वैक्सीन अगर किसी अमीर देश ने जमा करके रख ली है तो आप क्या करेंगे. जी हां, अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम ने अध्ययन करके बताया है कि पूरी दुनिया की कुल 13 फीसदी आबादी वाले अमीर देशों ने कोविड-19 वैक्सीन के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से को खरीद कर अपने स्टॉक में रख लिया है.
अमीर देशों ने वैक्सीन पर काम कर रही कंपनियों के साथ मिलकर कई समझौते और व्यापारिक सौदे किए हैं. अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि एनालिटिक्स कंपनी एयरफिनिटी द्वारा जमा किए डेटा के अनुसार ट्रायल्स के अंतिम दौर से गुजर रही 5 वैक्सीन के साथ करार किए गए हैं. इसके मुताबिक गिनती के अमीर देश जिनकी आबादी दुनिया की कुल आबादी का 13% है उन्होंने 50% से ज्यादा वैक्सीन को खरीद लिया है.
ऑक्सफैम अमेरिका के रॉबर्ट सिल्वरमैन ने कहा कि जिंदगी बचाने वाली वैक्सीन की पहुंच इस बात पर तय होती है कि आप कहां रहते हैं और आपके पास कितना पैसा है. एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन का विकास बेहद जरूरी है. उससे ज्यादा जरूरी है कि वह शत-प्रतिशत लोगों तक पहुंच सके. ये वैक्सीन सभी के लिए उपलब्ध हों. सस्ती हों और आसानी से मिल सके.
ऑक्सफैम ने जिन वैक्सीन का अध्ययन और एनालिसिस किया है उनमें वो सारी वैक्सींस हैं जिनसे दुनिया को उम्मीद है. ये वैक्सीन इन कंपनियों के हैं- एस्ट्राजेनेका, गामालेया-स्पुतनिक, मॉडर्ना, फाइजर और साइनोवैक. ये पांचों कंपनियां मिलकर कुल 590 करोड़ डोज बनाने की क्षमता रखती हैं. यह दुनिया के 300 करोड़ लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन है. क्योंकि हर शख्स को दो डोज दी जाएंगी.
इन पांचों दवा कंपनियों के साथ कई देशों ने समझौते किए हैं. अमीर देशों ने इन कंपनियों की कुल क्षमता के 50 फीसदी से ज्यादा डोज खरीद लिया है. यानी कोरोना वैक्सीन के 270 करोड़ डोज अमीर देशों ने खरीद लिए हैं. इन अमीर देशों में दुनिया की सिर्फ 13 प्रतिशत आबादी रहती है. यानी दुनिया के बाकी देशों को वैक्सीन मिलने में दिक्कत हो सकती है.
जिन अमीर देशों ने इन पांचों कंपनियों के वैक्सीन को खरीद कर स्टॉक करने का प्लान बनाया है वो हैं - अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, ऑस्ट्रेलिया, हॉन्गकॉन्ग, मकाऊ, जापान, स्विट्जरलैंड और इजरायल शामिल है. बची हुई 260 करोड़ डोज को भारत, बांग्लादेश, चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया और मेक्सिको में बेचा जाएगा. ताकि इन विकासशील देशों में भी लोगों को कोरोना से बचाया जा सके.