कोरोना महामारी ने जहां एक और देश में सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह से बिखेर दिया है. वहीं, इस कठिन समय में कुछ ऐसी तस्वीरें भी सामने आईं हैं जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी हुई हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश के बालाघाट में बीते 1 साल से सोहेल और उनके मित्र हिंदू शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. (इनपुट-रवीश पाल सिंह/अतुल वैद्य)
जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से सोहेल और उनके दोस्त मिलकर हिंदू शवों का श्मशान घाट में ही रहकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं. सांप्रदायिक सौहार्द की इस तस्वीर की हर तरफ तारीफ हो रही हैं. लोग सोहेल और उसके दोस्त के इस कार्य की तारीफ रहे हैं.
दरअसल, जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से सोहेल और उसके दोस्त मिलकर हिंदू शवों का श्मशान घाट में ही रहकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं. सांप्रदायिक सौहार्द की इस तस्वीर की हर तरफ तारीफ हो रही हैं. लोग सोहेल और उसके दोस्त के इस कार्य को सराहा रहे हैं.
पिछले 1 साल ये टीम लगातार कोरोना संक्रमित लोगों का अंतिम संस्कार कर रही है. कहने को तो इन्हें इस काम के लिए नगर पालिका से 200 रुपये रोज की मामूली पगार मिलती है लेकिन पगार से ऊपर सेवा की भावना और मन में सांप्रदायिक सद्भावना इनके काम में झलकती है.
हिंदू शवों का अंतिम संस्कार करने वाले सोहेल खान ने बताया कि पिछले 1 साल से हम यहां पर शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. कई बार ऐसा भी देखने में आया कि परिवार के लोग शवों को फेंक गए जिनका हमने निस्वार्थ भाव से अपने पास से खर्च कर हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया है. हमारी कोशिश होती है कि लोग बिना डरे अपनों का अंतिम संस्कार करें. लेकिन कई बार उनको समझाना मुश्किल होता है ऐसे में हम ही अंतिम संस्कार करते हैं'.