आज पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ने कोहराम मचा दिया है. भारत में लोग घर से निकलने से पहले सोच रहे हैं कि वो आखिर सफर कैसे करें. मेट्रो, टैक्सी, प्लेन, ट्रेन या बस कौन सा सार्वजनिक परिवहन है जो सबसे सेफ है. भीड़ में ये पहचान करना मुश्किल होगा कि आखिर संक्रमित कौन है. आइए जानें इन सार्वजनिक साधनों से सफर करने पर कितना खतरा हो सकता है.
कोरोना वायरस के संक्रमण के बारे में जैसा कि तमाम शोधों से स्पष्ट है कि कोरोना वायरस (सार्स COV-2) वायरस संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से हवा में फैले या फिर किसी सतह पर गिरे संक्रमित व्यक्ति के थूक के छींटों के किसी भी तरह से संपर्क में आने से फैल सकता है.
सार्वजनिक यातायात साधनों से सफर करने के दौरान ये संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाती हैं. अक्सर संक्रमित व्यक्ति को खुद पता नहीं होता है और सफर के दौरान ऐसी जगहों में ट्रेन के हैंडल, सीटों, टैक्सी के दरवाजे आदि में उसका संक्रमण थूक के जरिये वहां से आगे प्रसारित होता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस बुखार फैलाने वाले संक्रामक तत्वों की तरह हवा में नहीं ठहरते हैं. ऐसे में अगर आप किसी संक्रमित व्यक्ति के बहुत पास में हैं तो आप इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं.
ब्रिटेन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (नेशनल हेल्थ सर्विस) NHS की गाइडलाइन के अनुसार संक्रमित व्यक्ति से हमें कम से कम दो मीटर की दूरी में रहना चाहिए. जो कि भारत में खचाखच भरी रहने वाली ट्रेनों या मेट्रो में संभव नहीं दिखाई देता.
ऐसे में साफ है कि आपको बस मेट्रो या ट्रेन में सफर करने से वायरस की चपेट में आने का कितना खतरा है. ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी बस या ट्रेन कितनी भरी हुई है. क्या उसमें संक्रमित व्यक्ति भी सफर कर रहे हैं.
मसलन उन इलाकों में जहां अधिक संख्या में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है, जहां लगातार संक्रमित मरीजों की संख्या सामने आ रही है. उस इलाके के सार्वजनिक साधनों का इस्तेमाल भी काफी नुकसानदायक हो सकता है.
बरतें ये सावधानी
हम यात्रा के दौरान मुख्य सावधानी जो बरत सकते हैं वो ये है कि हम ऐसे समय में सफर करें जब भीड़ कम होती हो. लेकिन वर्किंग लोगों के लिए ऑफिस आवर का विशेष महत्व होता है, ऐसे में भीड़ में सफर करना पड़ता है. इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि भीड़ में सफर करने से संक्रमण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है.
बीबीसी से बातचीत में इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ से जुड़ीं डॉ. लारा गोस्के ने बताया कि उनके शोध में ये सामने आया है कि जो लोग रोज मेट्रो की सवारी करते हैं, उनके फ्लू जैसे लक्षणों से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा होती है.
उन्होंने कहा कि खास बात ये है कि वो इलाक़े जहां तक कम ट्रेनें
पहुंचती हैं और जहां यात्रियों को ट्रेन में सवारी करते हुए बार-बार लाइन
बदलनी पड़ती है, वहां इंफ्लूएंजा जैसी बीमारियों के फैलने के मामले और ज्यादा होते हैं. वहीं वो इलाक़े जहां एक सीधी ट्रेन लोगों को उनके गंतव्य तक
पहुंचाती है, वहां ऐसा खतरा अपेक्षाकृत कम होता है.