भारत में कॉरपोरेट सोशल रेप्सपॉन्सिबिलिटी यानी CSR को लागू हुए 10 साल हो गए हैं. CSR के तहत आने वाली कंपनियों को अपने मुनाफे का न्यूनतम 2 परसेंट समाज की भलाई से जुड़े कार्यों पर करना होता है. आंकड़ों के मुताबिक इन 10 वर्षों में 2 लाख 17 हजार करोड़ रुपये सामाजिक भलाई के कार्यक्रमों पर कारोबार जगत ने खर्च किए हैं.
2014-15 के मुकाबले 2023-24 तक CSR के तहत खर्च की जाने वाली रकम 3 गुना बढ़ गई है. लेकिन अगले 10 साल में इस कार्यक्रम में काफी बड़ा बदलाव हो सकता है. अनुमानों के मुताबिक अगले 10 साल में CSR के तहत 7.24 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं.
HDFC बैंक ने किया सबसे ज्यादा खर्च
2034 तक हर साल CSR पर खर्च होने वाली रकम 3 गुना बढ़कर 1.2 लाख करोड़ हो सकती है, यानी 13.48 फीसदी की CAGR से CSR की रकम का खर्च बढ़ सकता है. अगर बीते 2 साल के दौरान CSR में भारत की टॉप -3 कंपनियों की बात करें तो HDFC बैंक इस मामले में टॉप पर है जिसने 2023-24 में 945 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
दूसरे नंबर पर TCS और तीसरे नंबर पर रिलायंस इंडस्ट्रीज है. टॉप पोजीशन पर मौजूद HDFC बैंक ने बीते 10 सालों में सीएसआर फंड के तहत 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं. सीएसआर फंड के तहत बैंक दिव्यांगों, बेरोजगारों, और ग्रामीण शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रहा है.
तीसरे पायदान पर रिलायंस इंडस्ट्रीज
साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे कामकाज की समय-समय पर समीक्षा भी कर रहा है. इसके साथ ही वाराणसी में दिव्यांगों के लिए स्किल सेंटर चलाया जा रहा है, जिसका मकसद उन्हें अलग-अलग स्किल्स में ट्रेन करना और आत्मनिर्भर बनाना है.
बैंक के मुताबिक 'परिवर्तन' एचडीएफसी सीएसआर का फ्लैगशिप कार्यक्रम है. कंपनियों की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक CSR के जरिए HDFC बैंक ने 2 करोड़ छात्रों को मदद की है और 10 लाख टीचर्स को ट्रेनिंग दी है.
वहीं बैंक ने 10 हजार सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बनाए हैं जिनसे 9 लाख महिलाओं और 3 लाख युवाओं को ट्रेनिंग दी है. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस मामले में करीब 7 करोड़ लोगों के जीवन को बदलने का दावा किया है. फिलहाल CSR खर्च का फोकस केवल 6 क्षेत्रों तक सीमित है जिसे ज्यादा सेक्टर्स तक बढ़ाने का सुझाव दिया जा रहा है.