scorecardresearch
 

राइट ऑफ क्या कर्जमाफी है? कांग्रेस सही है या सरकार? यहां जानें दोनों का मतलब

बैंकों द्वारा 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डालने को कर्जमाफी बताए जाने के राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी काफी हमलावर हो गई है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सख्त जवाब के बाद अब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर ने बुधवार को कहा कि राहुल गांधी को इस बारे में चिदंबरम से ट्यूशन लेना चाहिए.

Advertisement
X
राइट ऑफ और कर्जमाफी को लेकर बवाल
राइट ऑफ और कर्जमाफी को लेकर बवाल

  • कारोबारियों के कर्ज राइट ऑफ को लेकर बवाल
  • बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह कर्जमाफी नहीं है
  • बैंको ने 50 बड़े कारोबारियों का कर्ज राइट ऑफ किया है

देश के कई बैंकों द्वारा 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डालने का विवाद अब नेताओं के ज्ञान-अज्ञान के आरोप तक पहुंच गया है. इसे कर्जमाफी बताए जाने के राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी काफी हमलावर हो गई है. आइए जानते हैं कि कर्जमाफी और राइट ऑफ का अंतर क्या है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सख्त जवाब के बाद अब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर ने बुधवार को कहा कि राहुल गांधी को इस बारे में चिदंबरम से ट्यूशन लेना चाहिए. किसी का एक पैसा माफ नहीं किया गया है. राइटिंग ऑफ का मतलब कर्जमाफी नहीं होता.

क्या कहा था कांग्रेस ने

Advertisement

कांग्रेस ने बुधवार को फिर ट्वीट कर कहा कि मोदी सरकार ने 2014-15 से 2019-20 (2019) तक बैंक घोटालेबाजों का 6,66,000 करोड़ रु. छोड़ दिया.

क्या है मसला

गौरतलब है कि मंगलवार को रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दी गई जानकारी सामने आई है. आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने सूचना का अधिकार कानून के तहत देश के केंद्रीय बैंक से 50 विलफुल डिफाल्टर्स का ब्योरा और उनके द्वारा लिए गए कर्ज की 16 फरवरी तक की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी थी. इसे बाद रिजर्व बैंक ने बताया कि 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया है.

इस पर काफी बवाल मचा है. मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने इसको लेकर एनडीए सरकार पर हमला बोला. सबसे पहले इसका जवाब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिया.

इसे भी पढ़ें: बैंक कर्जमाफी के आरोप पर जावेड़कर बोले- चिदंबरम से ट्यूशन लें राहुल

क्या है कर्जमाफी और राइट ऑफ में अंतर

विलफुल डिफाल्टर उन कर्जदारों को कहते हैं जो सक्षम होने के बावजूद जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे. लेकिन जब इनसे कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती तो बैंक इनके कर्ज को राइट ऑफ कर देते हैं यानी बट्टे खाते में डाल देते हैं. यह कर्जमाफी नहीं है, बल्कि ऐसे कर्ज को लगभग डूबा मान​ लिया जाता है और यह रिजर्व बैंक के नियम के तहत होता है

Advertisement

रिजर्व बैंक के नियम के अनुसार, पहले ऐसे लोन को नॉन परफॉर्मिंग ऐसट यानी एनपीए माना जाता है. फिर इसके बाद भी जब उनकी वसूली नहीं हो पाती और संभावना बहुत कम रहती है तो इस एनपीए को राइट ऑफ कर दिया जाता है यानी बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. राइट ऑफ कर्जमाफी नहीं है. बट्टे खाते में डाला इसलिए जाता है, ताकि बहीखाते में इस कर्ज का उल्लेख न हो और बहीखाता साफ-सुथरा रहे और उसी हिसाब से प्रभावी तरीके से टैक्स देनदारी हो. लेकिन यह माफी नहीं है, अगर भगोड़े कारोबारी पकड़े गए और भारत आए तो उनसे कानूनी प्रक्रिया के तहत यह कर्ज वसूला जा सकता है. यह सभी बैंकों में आम चलन है और रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक किया जाता है.

इसे भी पढ़ें: चोकसी सहित 50 डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में, कांग्रेस ने कहा-BJP भगोड़ों के साथ

हो सकती है राइट ऑफ वाले कर्ज की वसूली

जब कोई कर्ज एनपीए हो जाता है तो बैंक उतने राशि की प्रोविजनिंग अपने खाते में करते हैं यानी उतनी राशि को वे बहीखाते में अलग दिखाते हैं कि इतना नुकसान हो सकता है. लेकिन जब यह राइट ऑफ हो जाता है तो बैंक को इसकी भरपाई करनी पड़ती है यानी बैंक को इतना घाटा होता है, लेकिन राइट ऑफ किए गए कर्ज की वसूली बाद में हो सकती है. यानी जिन कारोबारियों का कर्ज राइट ऑफ किया गया है उनसे बाद में वसूली हो सकती है.

Advertisement

पर इस मामले में नाकामी तो कही ही जा सकती है कि बैंक और सरकार इन डिफाल्टर्स से कर्ज वसूल नहीं कर पाए और इसे डूबा हुआ मानना पड़ा.

कर्जमाफी में क्या होता है

कर्जमाफी में बैंक पूरी तरह से कर्ज वसूली को निरस्त कर देते हैं और उसे बकाया से हटा देते हैं. इसकी बाद में किसी भी तरह से वसूली नहीं हो सकती. आमतौर पर किसान कर्ज के मामले में ऐसी कर्जमाफी देखी जाती है.

Advertisement
Advertisement