scorecardresearch
 

इकोनॉमी के फ्रंट पर कहीं जॉर्ज बुश जैसे मात न खा जाएं नरेंद्र मोदी

क्या नोटबंदी और जीएसटी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए 2019 में इट्स दि इकोनॉमी, स्टूपिड साबित होगी. नोटबंदी और जीएसटी मौजूदा सरकार के वह बड़े आर्थिक फैसले हैं जिन्हें पिछली सरकार के कार्यकाल में नहीं लिया जा सका था.

Advertisement
X
नोटबंदी कहीं मोदी का 'इकोनॉमी, स्टूपिड' न बन जाए
नोटबंदी कहीं मोदी का 'इकोनॉमी, स्टूपिड' न बन जाए

Advertisement

इट्स दि इकोनॉमी, स्टूपिड. क्या नोटबंदी मोदी सरकार के लिए इकोनॉमी स्टूपिड साबित होगा? इट्स दि इकोनॉमी, स्टूपिड 1992 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार के दौर इस्तेमाल किया गया था. इस चुनाव में राष्ट्रपति जॉर्ज एच डबल्यू बुश इराक युद्ध के नाम पर दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की तैयारी में थे. विपक्ष ने उनके विरोध में बिल क्लिंटन को मैदान में उतारा.

विपक्षी पार्टी मान रही थी कि इराक युद्ध का विरोध कर वह अमेरिकी चुनाव में जॉर्ज बुश को नहीं हरा सकते. इराक पर हमले के कुछ ही दिनों के बाद मार्च 1991 में हुए सर्वे में 91 फीसदी अमेरिकी मान रहे थे कि राष्ट्रपति बुश की नीतियों से अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है.

लेकिन बिल क्लिंटन की चुनाव प्रचार टीम इराक युद्ध का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कुप्रभावों को जोरशोर से उठाना शुरू किया. उन्होंने राष्ट्रपति बुश की सभी आर्थिक नीतियों पर सावल खड़े किए. बिल क्लिंटन के प्रचार में बदलाव को मुद्दा बनाया गया.

Advertisement

इसे भी पढ़ें: न नौकरी, न कोई रोजगार कार्यक्रम- क्या 2014 में चूक गई मोदी सरकार?

वहीं अमेरिकी मीडिया ने अर्थव्यवस्था को चलाने में बुश की उपलब्धियों को कम करके आका और जहां चुनाव से पहले ज्यादातर सर्वे राष्ट्रपति की सफलता दर्शा रहे थे, वहीं चुनाव से ठीक पहले अगस्त 1992 में कराए गए सर्वे में 64 फीसदी अमेरिकी बुश की आर्थिक नीति के विरोध में थे.

लिहाजा, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहले बिल क्लिंटन की जगह देखें तो क्या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का विरोध कर और उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने में सफल होने के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में जीतने में सफल हुए?

इसके विपरीत, यह भी देख सकते हैं कि क्या नोटबंदी और जीएसटी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए 2019 में इट्स दि इकोनॉमी, स्टूपिड साबित होगी. नोटबंदी और जीएसटी मौजूदा सरकार के वह बड़े आर्थिक फैसले हैं जिन्हें पिछली सरकार के कार्यकाल में नहीं लिया जा सका था.

जहां जीएसटी, एक कर सुधार प्रक्रिया है जिसकी तैयारी लंबे समय से की जा रही थी. इस नई कर व्यवस्था को लागू करने के बाद दुनिया के ज्यादातर देशों में आर्थिक उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. लेकिन एक बार लागू हो जाने के बाद लंबे अंतराल में अर्थव्यवस्था को इससे बड़ा फायदा पहुंचना है.

Advertisement

वहीं, नोटबंदी मौजूदा सरकार का अभीतक का सबसे साहसिक फैसला है. इसके जरिए देश में कालेधन के संचार पर हमला करना था. हालांकि इसके फायदे करेंसी आंकड़ों में जाहिर नहीं हो रहे लेकिन सरकार का दावा है कि नोटंबदी से बड़ा सुधार हुआ है और इसका भी असर लंबी अवधि में दिखेगा.

 

Advertisement
Advertisement