इंडिया टुडे ग्रुप के बिजनेस टुडे माइंडरश कार्यक्रम में योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया, ICRIER के निदेशक रजत कठूरिआ, अर्थशास्त्री और वित्त मंत्रालय के सलाहकार संजीव सान्याल और NIPFP में प्रोफेसर अजय शाह ने शिरकत की. इस चर्चा में जीडीपी से लेकर रोजगार से अवसरों पर बात की गई.
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने चर्चा में कहा कि पिछले दिनों महंगाई में भारी गिरवाट देखने को मिली है, लेकिन जीडीपी पर वैश्विक अर्थव्यवस्था का असर भी पड़ता रहा है. सरकार की ओर से आर्थिक सुधारों के लिए कुछ मुश्किल कदम भी उठाए गए हैं और हम सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है, इसमें किसी को कोई शक नहीं है.
रोजगार का पुख्ता डाटा नहीं
वित्त मंत्रालय के सलाहकार संजीव सान्याल ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि रोजगार के नए अवसर और नौकरियां आईं हैं लेकिन यह बात सही है कि उनके बेहतर आंकड़े हम नहीं जुटा पाए हैं. मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि इस वक्त रोजगार की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है और यह सरकारी आंकड़े बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि बीते 15 साल में गरीबी जरूर घटी है लेकिन आज के वक्त का युवा कॉलेज से निकलकर अपने लिए बेहतर नौकरी तलाशता है, उसे गरीबी से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है.
योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि सरकार कई बार 10 फीसदी जीडीपी का दावा करते है लेकिन इस हासिल कर पाना मुश्किल है, आठ फीसदी की दर को छुआ जा सकता है. उन्होंने कहा कि निजी निवेश लगातार गिर रहा है और यह सबसे बड़ी मुश्किल है. जब तक घरेलू निवेश नहीं बड़ा हमारी अर्थव्यवस्था अच्छा नहीं कर पाएगी. किसानों के लिए सभी सरकारें चुनाव से पहले चितिंत हो जाती हैं, लेकिन हम उसके लिए बुनियादी तौर पर क्या कर रहे हैं.
प्रोफेसर अजय शाह ने कहा कि महंगाई कम हुई है यह पूरी तरह सच है. उन्होंने कहा कि लगातार महंगाई दर का गिरना भी दिक्कत पैदा करता है क्योंकि लेबर मार्केट पर असर पड़ता है. शाह ने कहा कि जीडीपी के आंकड़ों के लिए यह अच्छी बात है.
सामाजिक सुरक्षा का अभाव
रजत कठुरिया ने कहा कि रोजगार के आंकड़ों को लेकर समस्या है और गैर संगठित क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े जुटा पाना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि 90 फीसदी नौकरियां इसी सेक्टर में हैं जबकि यहां किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा के इंतजाम नहीं है. रजत ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी नौकरियों में कम हो रही है क्योंकि वहां सामाजिक सुरक्षा का अभाव है. उन्होंने कहा कि संस्थागत सुधार जरूरी है क्योंकि उसके बिना बाकी सुधार नहीं लाए सकते हैं.
अहलूवालिया ने कहा कि हमें राजकोषीय घाटे के आंकड़ों के बारे में भी पता होना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्यों में कितना भार है इसकी जानकारी भी जरूरी है. अगर यह घाटा ज्यादा है तो संसाधन जुटा पाना काफी मुश्किल होगा, तब आपके पास ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. अर्थव्यवस्था अगर अच्छा कर रही है तो घाटा कम होना चाहिए लेकिन यह पता करने के लिए आंकड़े होने भी जरूरी है.