देश की सबसे बड़ी इंफ्रा लेंडर ग्रुप यानी सड़क पुल और बिल्डिंग बनाने वाली कंपनी IL&FS और उसकी सैकड़ों छोटी कंपनियां जब डूब रही थीं उस वक्त टॉप मैनेजमेंट बेहतरीन काम के नाम पर बोनस बटोर रहा था. आंकड़े और दस्तावेज बताते हैं कि इस दौरान चेयरमैन रवि पार्थसारथी ने तो अपनी सैलरी 177 फीसदी तक बढ़वा ली.
इंडिया टुडे की डाटा इंटेलिजेंस टीम DiU ने कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट और सरकारी जांच एजेंसियों की रिपोर्ट के विश्लेषण के बाद पाया कि ग्रुप का टॉप मैनेजमेंट सहयोगी कंपनी आईफिन के फर्जी मुनाफे से लाभांस यानी डिविडेंड लेता रहा, साथ ही कंपनी की बैठकों के लिए भारी भरकम कमीशन की वसूली की.
बंदरबांट का असल खेल
कहानी यहीं खत्म नहीं होती अब फर्जीवाड़े की एक और नई परत खुलने वाली है. IL&FS का टॉप मैनेजमेंट सहयोगी कंपनी आईफिन का भी काम देखता था. कंपनी नॉन बैंकिंग बिजनेस में थी. इसका काम लोन देना था, लेकिन ये काम मैनेजमेंट ने ठीक से नहीं किया, नतीजा आईफिन से कई ऐसी कंपनियों ने भी लोन ले लिया जो उधार चुकता नहीं कर पाईं और दिवालिया हो गईं. अब पैसे वसूलने के बजाए IL&FS ने अपने बैलेंस शीट में छेड़छाड़ की और बैंकों से और कर्ज ले लिया, यही नहीं इस पैसे को मुनाफा बताते हुए आईफीन ने अपनी होल्डिंग कंपनी IL&FS को करीब 600 करोड़ रुपए का डिविडेंड दिया. मुनाफा कमाने के लिए की गई ‘मेहनत’ के लिए बोर्ड ने खुद के लिए पांच साल में 76 करोड़ का बोनस दे दिया. जिसे बिजनेस की भाषा में ‘परफॉर्मेंस रिलेटेड पे’ यानी पीआरपी कहते हैं. खुद को बोनस बांटने वालों में चेयरमैन रवि पार्थसारथी के अलावा रमेश बावा, हरि शंकरन, अरून साहा, वैभव कपूर और के रामचंद शामिल थे.

होल्डिंग कंपनी यानी IL&FS के कर्ताधर्ताओं ने आईफिन को फर्जी मुनाफा दिखाने के लिए कहा. हैरानी की बात ये है कि रिजर्व बैंक के एनपीए से जुड़े नियमों की अनदेखी करते हुए लोन लेकर बैलेंसशीट में मुनाफा दिखाया गया ताकि दूसरे रास्ते से कमाई की जा सके. ये पैसा आम जनता का था. बैंकों से लोन और म्यूचुअल फंड्स को कमर्शियल पेपर बेचकर पैसे लिए गए. आईफिन गैर बैंकिंग बिजनेस में थी इसलिए केवल आरबीआई के हिसाब से जरूरी रिजर्व के कंपनी के खातों में रखकर कंपनी की सारी पूंजी डिविडेंड के जरिए होल्डिंग कंपनी को दे दी गई, यानी अब आईफिन को लोन में मिला सारा पैसा IL&FS के खाते में चला गया.

चार्टर्ड एकाउटेंस को रेगुलेट करने वाली संस्था ICAI के पूर्व प्रेसीडेंट और अकाउंटिंग एक्सपर्ट अमरजीत चोपड़ा ने इंडिया टुडे से कहा, 'मेरे हिसाब से खाते में हेराफेरी और विंडो ड्रेसिंग का ये सबसे संगीन मामला है. बिना वाजिब मुनाफे के डिविडेंड दिया गया. ठीक उसी तरह बिना वास्तविक नुकसान के कमीशन और बोनस बांटा गया. इन सभी पैसों की वसूली होनी चाहिए.' बर्बादी की हालत के बावजूद आईफिन ने मैनेजमेंट के छह बड़े अधिकारियों को कमीशन भी बांटा.


आधिकारिक रूप से 2013 के बाद आईफिन में रवि पार्थसारथी का हस्तक्षेप केवल नोटिंग तक सीमित था. लेकिन जांच एजेंसियों ने पाया कि व्यावहरिक स्तर पर स्थिति एकदम उलट थी. पार्थसारथी आईफिन के हर बड़े कामकाज में दखल देते थे. पार्थसारथी और बाकी टॉप मैनेजमेंट ने आईफिन की पॉलिसी और गाइडलाइन कुछ इस तरह बनवाई जिससे उन्हें निजी तौर पर बड़ा फायदा हो.
दिल्ली स्थित कॉरपोरेट वकील सुमित बत्रा का मानना है, 'ऐसे मामलों से निपटने के लिए ऑडिटर्स की जिम्मेदारी तय करने के अलावा कॉरपोरेट गवर्नेंस के सख्त नियमों की दरकार है. खासतौर पर उन मामलों में जहां कंपनी डायरेक्टर्स निवशकों के पैसों को अपने लिए खर्च कर रहे हैं. हालांकि सभी डायरेक्टर्स की भूमिका को एक तरह से नहीं देखा जा सकता लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता जिसमें कुछ डायरेक्टर्स ऐसे नियमों में मनमानी करते हैं.'
बढ़ा-चढ़ाकर बनाए गए बहीखाते के आधार पर अगर किसी ने डिविडेंड, कमीशन और सिटिंग फी ली है तो उसके साबित होने पर उससे वसूली के साथ वाजिब कानूनी कार्रवाई करना चाहिए. 2018 की आईफिन की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि कंपनी ने उधार लेकर शेयर होल्डर्स को पैसे दिए हैं. थोड़े ही समय के अंतर पर पिछले साल आईफिन छह कमर्शियल पेपर के पैसे लौटाने में दिवालिया हो गया.
सरकार भी करीब 3 महीने पहले हरकत में आई और IL&FS के कई बड़े अधिकारियों जैसे सीईओ रमेश बावा और वाइस चेयरमैन हरि शंकरन को गिरफ्तार कर लिया, देश में आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसी एसएफआईओ का शिकंजा कस गया है. आईफिन की चार हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की लंबी अवधि वाली उधारी भी संकेत थी कि कंपनी बचेगी नहीं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार डूबे पैसे वसूल कर पाएगी. क्या जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाले अपने किये की सजा पाएंगे?