एक तरफ सरकार लोगों से समय पर टैक्स चुकाने और देश निर्माण में भागीदार होने की गुजारिश करती है, तो दूसरी तरफ करोड़ों-अरबों की हैसियत वाली कंपनियां टैक्स बचाने के लिए बचकाने उदाहरण देती हैं. दवा कंपनियों से जुड़ा हुआ ऐसा ही एक मामला सामने आया है.
दरअसल, दवा कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त में भेंट-उपहार आदि देती हैं. उनके इस आचरण की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आलोचना की है. कैग ने कहा है कि कानून में इस तरह के व्यवहार के निषेध होने के बावजूद यह आश्चर्य की बात है कि दवा कंपनियां इस तरह के खर्चे पर टैक्स लाभ का दावा भी करती हैं.
कैग ने कहा है कि उसने दवा कंपनियों के 2,868 दस्तावेजों की ऑडिट की है. इनमें से 246 मामले निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार नहीं थे, जिनमें कुल 1,348.44 करोड़ रुपये के टैक्स का मामला शामिल है. कैग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा, ‘हमने सात राज्यों में 55.10 करोड़ रुपये के टैक्स प्रभाव के 36 मामले देखे, जिनमें चिकित्सा पेशेवरों को उपहार आदि के खर्च के कुल मद में दिखाने की अनुमति दी गई, जबकि कानूनी तौर पर यह प्रतिबंधित है.’
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) ने दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को उपहार, यात्रा खर्च, हॉस्पिटैलिटी, नकदी व मौद्रिक अनुदान पर रोक लगाई हुई है. इसके अलावा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने भी 2012 में स्पष्ट किया था कि इस तरह के खर्च की अनुमति नहीं है.
इनपुट: भाषा