सरकारी स्वामित्व वाली खनन कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का मानना है कि विद्युत उत्पादकों की 50 प्रतिशत ईंधन मांगें आयात के जरिए ही पूरी की जा सकती है.
सीआईएल के चेयरमैन एस. नरसिंग राव ने कम्पनी के निदेशक मंडल की सोमवार को होने वाली बैठक से पहले कहा, 'सीआईएल ने स्पष्ट कर दिया है कि कम्पनी हर किसी की मांग पूरी नहीं कर पाएगी. यदि ऐसा करना है तो 50 प्रतिशत कोयला आयात करना होगा.' सोमवार की बैठक में आदर्श ईंधन समझौते (एफएसए) को मंजूरी दी जाएगी, जिसमें 1.5 से 40 प्रतिशत के जुर्माने का प्रावधान है.
राव ने कहा कि कम्पनी मौजूदा वित्त वर्ष में लगभग दो करोड़ टन कोयले का आयात कर सकती है और इसकी लागत विद्युत उत्पादकों को वहन करनी होगी.
राव ने कहा, 'यहां पहुंचने के बाद 6,000 किलो कैलोरी मूल्य के एक टन कोयले पर लगभग 6,000 रुपये प्रति टन की लागत पड़ेगी और इसके परिणामस्वरूप इस आयात पर कुल 3,000 करोड़ रुपये खर्च होने की सम्भावना है. जबकि विद्युत उत्पादकों को इस कोयले के लिए प्रति टन 4,500 रुपये का ही भुगतान करना है.'
राव ने कहा, '1,500 रुपये प्रति टन की बाकी धनराशि पूल से ली जाएगी, जो इस बोझे को सभी विद्युत उत्पादकों पर बांटेंगा और इसमें उत्पादकों की खपत कोई मायने नहीं रखेगी. इस तरह से कोयले की लागत 87 रुपये प्रति टन बढ़ने की सम्भावना है.'
इस प्रस्ताव को हालांकि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण और खरीददारों से मंजूरी मिलने की जरूरत है, क्योंकि कीमत बढ़ने से मौजूदा विद्युत संयंत्रों के लिए कोयले की लागत बढ़ जाएगी और विद्युत दरें भी लगभग सात पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाएंगी.
राव ने कहा, 'यदि कोयले का आयात किया गया, तो उपभोक्ताओं को उसी दर पर कोयला लेना होगा. हम ऊर्जा क्षेत्र को आयातित कोयले को 26 से 70 प्रतिशत छूट के साथ बेच रहे हैं. देश इस स्थिति में नहीं है कि इतनी ऊंची लागत वहन कर सके.'
राव ने कहा कि कोल इंडिया लम्बित मांगें पूरी करने के लिए ईंधन आपूर्ति समझौते में जुर्माने के नियमों में बदलाव करने पर सहमत हुआ है. उन्होंने कहा, 'विद्युत कम्पनियों की लम्बित मांगें पूरी करने के लिए हम इस नए जुर्माना नियम पर सहमत हुए हैं.'