scorecardresearch
 

देश के 20% शॉपिंग मॉल क्यों बने 'घोस्ट मॉल', क्यों हो रहा है करोड़ों का घाटा?

खराब प्लानिंग, पुरानी डिज़ाइन और अनुभव की कमी के चलते ये संपत्तियां सालाना करोड़ों रुपये के किराये के राजस्व का नुकसान करा रही हैं. लेकिन इस निष्क्रिय पड़ी संपत्ति के एक छोटे से हिस्से को भी पुनर्जीवित करने पर सालाना ₹357 करोड़ का किराया मिल सकता है.

Advertisement
X
: खराब प्लानिंग और आउटडेटेड डिजाइन ने कैसे बिगाड़ा खेल? (सांकेतिक फोटो)
: खराब प्लानिंग और आउटडेटेड डिजाइन ने कैसे बिगाड़ा खेल? (सांकेतिक फोटो)

भारत का रिटेल रियल एस्टेट बाजार एक अजीब मोड़ पर खड़ा है. एक तरफ ग्राहक लगातार नए और बेहतर शॉपिंग एक्सपीरियंस की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ देश के लगभग 20% शॉपिंग मॉल खाली पड़े हैं और उन्हें 'घोस्ट मॉल' कहा जाने लगा है.

नाइट फ्रैंक इंडिया की हालिया रिपोर्ट 'थिंक इंडिया, थिंक रिटेल 2025' के अनुसार, देश के 365 सर्वे किए गए मॉल्स में से 74 एसेट ऐसे हैं, जिनमें 40% से ज़्यादा खाली हैं. ये मॉल कुल मिलाकर 1.55 करोड़ वर्ग फुट जगह घेरे हुए हैं, जो बेकार पड़ी है. 

हालांकि ये रिपोर्ट बताती है कि अगर इन निष्क्रिय पड़ी संपत्तियों के एक छोटे से हिस्से को भी रणनीतिक रूप से पुनर्जीवित किया जाए, तो सालाना करोड़ों का किराया मिल सकता है.

क्यों खाली पड़े मॉल

"नाइट फ्रैंक इंडिया की रिटेल स्टडी, 'थिंक इंडिया, थिंक रिटेल 2025 वैल्यू कैप्चर अनलॉकिंग पोटेंशियल' के अनुसार, भारत के लगभग पांचवें हिस्से शॉपिंग सेंटर 'घोस्ट मॉल' की स्थिति में आ गए हैं.

रिपोर्ट में खाली पड़े मॉल्स में से 15 ऐसे सेंटरों की पहचान की गई है, जिनमें बहुत अच्छी क्षमता है कि उन्हें फिर से सफल बनाया जा सकता है. इन 15 मॉल्स का कुल क्षेत्रफल 48 लाख वर्ग फुट है. अगर इन्हें ठीक से सुधारा जाए, तो बड़े टियर 1 शहरों में 29 लाख वर्ग फुट की जगह से सालाना ₹236 करोड़ का किराया मिल सकता है. वहीं, छोटे टियर 2 शहरों में भी 20 लाख वर्ग फुट की जगह को पुनर्जीवित करके सालाना ₹121 करोड़ का अतिरिक्त किराया राजस्व प्राप्त किया जा सकता है, जिससे पुनरुद्धार की कुल क्षमता ₹357 करोड़ तक पहुंच जाती है.

Advertisement

सबसे ज्यादा मॉल पश्चिमी क्षेत्र में

भारत के करीब 44% 'घोस्ट मॉल्स' पश्चिमी क्षेत्र में स्थित हैं, और दक्षिणी क्षेत्र को साथ मिला दें तो इन दोनों क्षेत्रों में ₹357 करोड़ के अवसर का 77% हिस्सा मौजूद है. शीर्ष आठ शहरों का योगदान ही अनुमानित किराये के लाभ का 66% है, जो अच्छी जगह पर स्थित लेकिन पुराने हो चुके सेंटरों के पुनर्विकास के महत्व को रेखांकित करता है. इन शीर्ष आठ शहरों में बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, अहमदाबाद, नागपुर और तिरुवनंतपुरम शामिल हैं.

भले ही 32 शहरों में औसतन 15.4% दुकानें खाली हैं, लेकिन नाइट फ्रैंक का कहना है कि असली दिक्कत यह है कि अच्छी क्वालिटी की रिटेल दुकानें बहुत कम हैं. खासकर छोटे टियर 2 शहरों में, जहां ग्राहकों की मांग तो तेजी से बढ़ रही है, पर उस मांग के हिसाब से अच्छी जगहें उपलब्ध नहीं हैं. 

यह भी पढ़ें: NCR से पहाड़ों तक...दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे से रियल एस्टेट में बंपर कमाई का मौका!

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement