वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान मोदी सरकार की सत्ता में वापसी हुई, लेकिन इसी
दौरान सरकार की चुनौतियां भी बढ़ गईं. खासकर वित्तीय मोर्चे पर सरकार लक्ष्य
से काफी दूर दिख रही है. अब चालू वित्तीय वर्ष को खत्म होने में चंद दिन बचे
हैं. लेकिन जाते-जाते यह वित्तीय वर्ष सरकार के लिए चुनौतियों का पुलिंदा
छोड़ जा रहा है. जिससे निपटने के लिए लंबा वक्त लगेगा.
दरअसल, हाल के वर्षों का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार गुड्स एंड सर्विस टैक्स
(GST) सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है. खासकर तय लक्ष्य तक जीएसटी कलेक्शन
नहीं होना, सरकार को परेशान कर रहा है.
चालू वित्त वर्ष के लिए कलेक्शन का लक्ष्य 13.71 लाख करोड़ रुपये था, यानी प्रति माह करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये कलेक्शन होना चाहिए था. लेकिन कई महीने में कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपये से भी नीचे रहा. सितंबर 2019 में तो जीएसटी कलेक्शन महज 91,916 करोड़ रुपये हुआ था.
सरकार लगातार जीएसटी कलेक्शन को लेकर सजग है. जनवरी 2020 में टैक्स डिपार्टमेंट ने जीएसटी कलेक्शन के लक्ष्य में इजाफा किया. फरवरी के लिए जीएसटी कलेक्शन का लक्ष्य 1.15 लाख करोड़ रुपये और मार्च के लिए 1.25 लाख करोड़ रुपये तय किया गया.
जबकि सरकार को फरवरी में 1.05 लाख करोड़ रुपये ही कलेक्शन हुआ, यानी लक्ष्य से 10 हजार करोड़ रुपये कम. वहीं, अगर मार्च की बात करें तो आप अंदाजा लगा सकते हैं, देश में कारोबार की क्या स्थिति है, कोरोना वायरस की वजह से सबकुछ लॉकडाउन है तो फिर जीएसटी कलेक्शन का लक्ष्य पूर्व निर्धारित 1.25 लाख करोड़ तक पहुंचना असंभव ही लग रहा है.
इससे पहले जनवरी 2020 में जीएसटी कलेक्शन 1.10 लाख करोड़ रुपये हुआ था. बता दें, जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद अब तक 11 बार कलेक्शन सरकार के निर्धारित लक्ष्य 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा है. तमाम बैठकों और जीएसटी में फर्जीवाड़े पर शिकंजा के बावजूद सरकार कलेक्शन लक्ष्य से काफी दूर दिख रही है.
मालूम हो कि जीएसटी में राज्यों के कुल राजस्व का करीब 60 फीसदी हिस्सा होता है. जीएसटी लागू करते समय राज्य सरकारों के साथ केंद्र का जो समझौता हुआ है, उसके मुताबिक इससे होने वाले राजस्व के नुकसान की केंद्र सरकार भरपाई करती है.
अब वित्त सचिव अजय भूषण पांडे के सामने जीएसटी कलेक्शन को लक्ष्य तक ले जाना बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि कोरोना का कहर वित्तीय वर्ष 2020-21 पर ज्यादा होगा. और जीएसटी कलेक्शन के मोर्चे पर झटका लगना लगभग तय है.
बता दें कि जीएसटी लागू करते वक्त कर की औसत दर 15.3% प्रस्तावित थी, जो घटकर अब 11.6 फीसदी रह गई है. ऐसे में गिरती जीडीपी को संभालने के लिए सरकार को पैसे चाहिए, और वो जीएसटी कलेक्शन के जरिये ही मिलना है. लेकिन वर्तमान को देखकर लगता है कि आने वाला वक्त और चुनौती भरा रहने वाला है.