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भूख, प्यास और डर के बीच पैदल तय किया लंबा सफर... नेपाल से लौटे बिहार के मजदूरों की दर्दभरी दास्तां

नेपाल में भड़की Gen Z क्रांति और बिगड़े हालात के बीच बिहार के मजदूर मजबूरी में पैदल भारत लौट रहे हैं. बगहा के वाल्मीकिनगर बॉर्डर पर मजदूरों की भीड़ देखी गई. भूख, प्यास और डर के बीच कई दिनों का सफर तय कर मजदूर पहुंचे. बुटवल से पैदल लौटे मजदूरों ने बताया कि काम, ठहरने और खाने की कमी ने उन्हें घर लौटने को मजबूर कर दिया.

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नेपाल से पैदल लौटे बिहार के मजदूर.(Photo: Abhishek Pandey/ITG)
नेपाल से पैदल लौटे बिहार के मजदूर.(Photo: Abhishek Pandey/ITG)

नेपाल इस समय गहरी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन के बाद भड़की Gen Z क्रांति ने वहां की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ भड़के इस आंदोलन ने नेपाल की सड़कों को हिंसा, उपद्रव और अनिश्चितता से भर दिया है. इसका सबसे बड़ा असर उन भारतीय मजदूरों पर पड़ा, जो रोजगार की तलाश में नेपाल के शहरों और कस्बों में काम कर रहे थे. हालात बिगड़ने के बाद ये मजदूर अब पैदल ही भारत लौटने लगे हैं.

दरअसल, शुक्रवार को बिहार के बगहा स्थित वाल्मीकिनगर गंडक बैराज चेकपोस्ट पर मजदूरों की लंबी कतारें लगी रहीं. नेपाल से लौटने वाले हर मजदूर को एसएसबी जवानों की सघन जांच के बाद ही भारत में प्रवेश दिया गया. मजदूरों के थके हुए कदम और चेहरों पर झलकता डर हालात की गंभीरता बयान कर रहे थे. किसी के पास छोटा-सा झोला था, किसी की गोद में बच्चा. महिलाएं और बुजुर्ग भी पैदल ही लौटने को मजबूर दिखे.

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बगहा के मजदूरों ने बताया कि वे बुटवल में काम कर रहे थे. अचानक हालात बिगड़ने पर मजदूरी ठप हो गई.  खाने-पीने की भारी किल्लत हो गई. कई दिन तक सही से खाना नहीं मिला. डर के माहौल में हम लोग पैदल ही बॉर्डर तक पहुंचे- एक मजदूर ने थके स्वर में कहा. उन्होंने बताया कि रात में खुले आसमान के नीचे सोना पड़ता था और हर पल किसी अप्रिय घटना का डर बना रहता था.

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बगहा

मजदूरों के पास जो थोड़ी-बहुत रकम थी, वह भी रास्ते में खर्च हो गई. कई लोगों को भूखे पेट चलना पड़ा. महिलाओं और बच्चों की हालत सबसे खराब रही. बॉर्डर पर पहुंचते ही मजदूरों ने राहत की सांस ली. वे कहते हैं कि इस बार का अनुभव इतना भयावह रहा कि भविष्य में नेपाल लौटकर मजदूरी करना लगभग नामुमकिन होगा.

वहीं, नेपाल संकट से उपजे हालात ने एक बार फिर प्रवासी मजदूरों की बेबसी और मजबूरी को उजागर कर दिया है. वे मजबूर हैं कि घर छोड़कर बाहर जाएं, लेकिन हर बार सबसे बड़ा सवाल यही रह जाता है— क्या उनके लिए सुरक्षित रोजगार कहीं मिलेगा?

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