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तीन महीने से बंद घर में फंसी दो बिल्लियों को ग्रामीणों ने बचाया, दरभंगा में इंसानियत की अनोखी मिसाल

दरभंगा के मझौलिया गांव में तीन महीनों से बंद घर में फंसी दो बिल्लियों को ग्रामीणों ने मालिक की अनुमति लेकर ताला तोड़कर आज़ाद कराया. घर में ताला लगा होने के कारण बिल्ली बाहर नहीं निकल पा रही थी. ग्रामीण रोज खिड़की से उसे बिस्किट और पानी देते थे. दूसरी बिल्ली के भी फंसने और रातभर रोने के बाद ग्रामीणों ने दोनों को बचाया.

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बिस्किट और पानी से जिंदगी चला रही थी बिल्ली.(Photo: Prahalad Kumar/ITG)
बिस्किट और पानी से जिंदगी चला रही थी बिल्ली.(Photo: Prahalad Kumar/ITG)

बिहार के दरभंगा जिले के मझौलिया गांव से इंसानियत की एक ऐसी मिसाल सामने आई, जिसने पूरे इलाके को भावुक कर दिया. आमतौर पर इंसान संकट में होता है तो लोग मदद के लिए आगे आते हैं, लेकिन इस बार ग्रामीणों ने एक घरेलू बिल्ली की जान बचाकर यह साबित कर दिया कि इंसानियत सिर्फ इंसानों के लिए नहीं है. इस घटना की सबसे खास बात यह रही कि बिल्ली पिछले तीन महीनों से गांव के एक बंद घर के अंदर कैद थी और ग्रामीण लगातार उसके खाने-पानी का इंतज़ाम कर रहे थे.

स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह बिल्ली सरोज झा के उस घर में फंस गई थी, जिसमें दुर्गा पूजा से पहले ताला लगाया गया था. सरोज झा मूल रूप से इसी गांव के रहने वाले हैं, लेकिन परिवार के साथ कोलकाता में रहते हैं और त्योहारों या विशेष मौकों पर ही गांव आते हैं. उनके घर में ताला लगा होने की वजह से बिल्ली बाहर निकल नहीं पा रही थी. ग्रामीणों ने कई बार कोशिश की, लेकिन वह न तो खिड़की के ग्रिल से निकल सकी और न ही किसी दूसरी जगह से रास्ता बना पाई.

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बंद घर में बिस्किट और पानी से जिंदगी चला रही थी बिल्ली

जब गांव वालों ने पहली बार बिल्ली को बंद घर में देखा, तो तुरंत फोन पर मकान मालिक सरोज झा को इसकी सूचना दी. हालांकि, झा किसी कारण गांव नहीं आ पाए. ऐसे में ग्रामीणों ने खुद ही बिल्ली की जिम्मेदारी संभाल ली. लोगों ने बंद घर की खिड़की जैसी जगहों से रोज सुबह-शाम उसके लिए बिस्किट और पानी डालना शुरू कर दिया. बिल्ली सिर्फ बिस्किट खाती थी और पानी पीकर अपने दिन काट रही थी.

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दरभंगा

धीरे-धीरे तीन महीने बीत गए और बिल्ली के लिए ग्रामीणों की मदद उसकी दिनचर्या बन चुकी थी. ग्रामीण बताते हैं कि बिल्ली कभी खिड़की के पास आती, तो कभी घर के पिछले हिस्से की ग्रिल तक पहुंचती, लेकिन हर बार असफल होकर भीतर ही लौट जाती. गांव के लोग उसकी बेबसी देखते और बार-बार यही सोचते कि आखिर यह कैद कब खत्म होगी.

रात में दूसरी बिल्ली घुसी, दोनों की पुकार ने गांव को झकझोड़ा

घटना में मोड़ तब आया, जब एक रात अचानक दूसरी बिल्ली भी उसी बंद घर में घुस गई. अब घर के अंदर दो बिल्लियां कैद थीं. दूसरी बिल्ली ने पूरी रात उत्पात मचाया और लगातार जोर-जोर से रोती रही. घर से निकल रही दर्दभरी आवाजें सुनकर आसपास के लोग परेशान हो उठे.

दरभंगा

दोनों बिल्लियों की करुण पुकार सुनकर ग्रामीणों के दिल पसीज गए. कई लोगों ने कहा कि बिल्ली का इस तरह रोना अच्छा संकेत नहीं होता, इसलिए उन्हें हर हाल में बाहर निकालना जरूरी हो गया था. लोगों ने एक बार फिर तत्काल मकान मालिक सरोज चौधरी से संपर्क किया और ताला तोड़ने की इजाजत मांगी. इस बार उन्होंने ग्रामीणों की बात मान ली और कहा कि अगर जरूरत है तो ताला तोड़ दें.

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मालिक की सहमति के बाद ताला तोड़ा गया, दोनों बिल्लियां आज़ाद

ग्रामीणों ने रात में ही तय किया कि अगली सुबह ताला तोड़कर दोनों बिल्लियों को बाहर निकालेंगे. रौशन मिश्रा, जो शुरुआत से इस बिल्ली की देखभाल कर रहे थे उन्होंने बताया कि बिल्ली तीन महीनों से बंद घर में थी और उसकी हालत देखकर सभी चिंतित थे. जैसे ही मालिक की अनुमति मिली, गांव के लोगों ने घर का ताला तोड़ा और भीतर फंसी दोनों बिल्लियों को आज़ाद कर दिया. जैसे ही घर का दरवाजा खुला, दोनों बिल्लियां तेजी से बाहर निकलकर खुली हवा में दौड़ पड़ीं.

रौशन मिश्रा और राम कुमारी देवी.
रौशन मिश्रा और राम कुमारी देवी.

गांव की महिला रामकुमारी देवी ने बताया कि बिल्ली दुर्गा पूजा से पहले घर में घुसी थी और महीनों तक बाहर नहीं निकल सकी. ग्रामीण ही उसे भोजन देते थे और उसके रोने की आवाज से आसपास का माहौल दुखी हो जाता था. जब घर में दूसरी बिल्ली भी घुस गई और दोनों की आवाजें तेज हुईं, तब सभी ने मिलकर फैसला किया कि अब इन्हें आज़ाद कराना अनिवार्य है. अंततः ताला तोड़कर दोनों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.

इंसानियत की मिसाल बनी मझौलिया की यह घटना

पूरी घटना ने गांव में लोगों की दया, संवेदना और एकता की मिसाल पेश की है. तीन महीनों तक ग्रामीणों ने जिस तरह एक जानवर के जीवन की रक्षा की और अंत तक उसके साथ खड़े रहे, वह समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि इंसानियत सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि कर्मों से जीवित रहती है. दरभंगा का मझौलिया गांव इस संवेदनशील प्रयास के लिए अब चर्चा में है और ग्रामीणों की यह पहल सोशल मीड‍िया पर भी सराही जा रही है.

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