बिहार के बगहा-1 प्रखंड में स्थित पहाड़ी मझौआ प्राथमिक विद्यालय आज शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की सबसे बड़ी मिसाल बन चुका है. यहां बच्चे पढ़ने तो रोज आते हैं, लेकिन उनके पास बैठने के लिए न क्लासरूम है, न छत और न ही सुरक्षित माहौल. खुले आसमान के नीचे, पेड़ों की छांव में बच्चों की पढ़ाई चल रही है.
किताबें हैं, सपने हैं और आगे बढ़ने की चाह भी है, लेकिन व्यवस्था साथ नहीं दे रही. एक छात्र की बात पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करती है. छात्र का कहना है “सर, धूप में सिर जल जाता है, बरसात में कॉपी गीली हो जाती है, फिर भी हम रोज स्कूल आते हैं.” इस एक वाक्य में बच्चों की मजबूरी और हौसला दोनों साफ दिखाई देते हैं.
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155 बच्चे, 7 शिक्षक, लेकिन स्कूल भवन नहीं
पहाड़ी मझौआ प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक कुल 155 बच्चे नामांकित हैं. पढ़ाने के लिए 7 शिक्षक तैनात हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि स्कूल के पास अपना एक भी पक्का कमरा नहीं है. न चारदीवारी है, न सुरक्षित छत. बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं.
गर्मी के मौसम में तेज धूप बच्चों की सेहत पर असर डालती है. कई बार बच्चे चक्कर खाकर बेहोश भी हो जाते हैं. बरसात में हालात और खराब हो जाते हैं, जमीन पर पानी भर जाता है, कॉपियां भीग जाती हैं और पढ़ाई लगभग ठप हो जाती है.
आंधी-तूफान का डर, हर दिन जोखिम
मजबूरी में प्रधानाध्यापक कभी बच्चों को घर भेज देते हैं, तो कभी पास की जर्जर फूस की आंगनबाड़ी में पढ़ाई कराते हैं. लेकिन हर दिन एक बड़ा खतरा बना रहता है. अगर अचानक आंधी, तूफान या आकाशीय बिजली गिर जाए, तो बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
यह स्कूल अब शिक्षा का मंदिर नहीं, बल्कि रोज बच्चों की जान के साथ खेलता हुआ मैदान बन गया है. शिक्षक और अभिभावक भी हमेशा डर में रहते हैं.
2008 से लटका भवन निर्माण का मामला
प्रधानाध्यापक बताते हैं कि वर्ष 2008 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए राशि स्वीकृत हुई थी. लेकिन भूमि विवाद और अतिक्रमण के कारण निर्माण शुरू नहीं हो सका. स्वीकृत राशि वापस चली गई और तब से लेकर आज तक हालात जस के तस बने हुए हैं.
आज भी यह विद्यालय भूमिहीन और भवनहीन है. कई बार पत्राचार हुआ, लेकिन जमीन और भवन का मुद्दा सुलझ नहीं सका.
शौचालय नहीं, बच्चियों की पढ़ाई पर असर
विद्यालय में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. बच्चों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. खासकर बच्चियों के लिए यह स्थिति और ज्यादा डरावनी है. छात्राओं का कहना है कि बाहर जाने पर मनचलों की परेशानी झेलनी पड़ती है या फिर मजबूरी में घर लौटना पड़ता है.
इस कारण उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है और आत्मविश्वास भी टूटता है. बच्चियों की साफ मांग है कि सरकार स्कूल में भवन और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराए.
आसपास के स्कूल भी बदहाल
हरदी नदवा पंचायत स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय पिपरा की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है. यहां सिर्फ दो जर्जर कमरों में पढ़ाई होती है. 100 से अधिक बच्चे एक ही शौचालय पर निर्भर हैं, जिससे खतरा हर समय बना रहता है.
अधिकारियों का जवाब और बड़ा सवाल
बगहा-1 प्रखंड के शिक्षा पदाधिकारी पुरन शर्मा बताते हैं कि प्रखंड में ऐसे 12 विद्यालय हैं जो भवनहीन हैं. इस संबंध में जिला डीपीओ के माध्यम से अंचलाधिकारी को पत्र भेजा गया है. जिन स्कूलों में शौचालय और अन्य सुविधाओं की कमी है, वहां प्रक्रिया टेंडर स्तर पर बताई जा रही है.
लेकिन सवाल अब भी कायम है कि कब तक बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर अपना भविष्य गढ़ते रहेंगे? कब तक शिक्षा व्यवस्था फाइलों और पत्राचार में उलझी रहेगी? पहाड़ी मझौआ का यह स्कूल सिर्फ एक विद्यालय नहीं, बल्कि सिस्टम से जवाब मांगती एक सच्चाई है.