CAFE 3 Norms: भारतीय ऑटोमोबाइल बाज़ार इन दिनों सिर्फ गाड़ियों की रफ्तार से नहीं, बल्कि शब्दों की टक्कर से भी गरमाया हुआ है. बड़े इंजनों वाली कंपनियों पर छोटे कार निर्माताओं के खिलाफ गलत नैरेटिव खड़ा करने के आरोप हैं. प्रस्तावित CAFE-3 नियमों के आते ही इंडस्ट्री दो खेमों में बंट चुकी है, और सबसे ज्यादा सवाल खड़े कर रही है एफिशिएंसी की वही लड़ाई, जिसका मकसद साफ तौर पर प्रदूषण कम करना और कारों को ज्यादा फ्यूल एफिशिएंट (Fuel Efficient) बनाना है.
प्रस्तावित CAFE-III (कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफिशियेंसी) मानकों में छोटे और हल्के वाहनों को वजन और किफायती सेगमेंट के आधार पर कुछ राहत देने की चर्चा है. इसी को लेकर इंडस्ट्री में बड़ा मतभेद सामने आया है. टाटा मोटर्स सहित कुछ कंपनियां इस राहत का विरोध कर रही हैं. इनका तर्क है कि नियम सभी पर बराबर लागू होने चाहिए और छोटी कारों को अलग ट्रीटमेंट देना गलत होगा.
दूसरी ओर, मारुति सुजुकी जैसे बड़े निर्माताओं का मानना है कि CAFE-III का उद्देश्य बड़े, भारी और ज्यादा ईंधन खपत करने वाले वाहनों की दक्षता सुधारना है, न कि छोटी कारों पर अतिरिक्त दबाव डालना.
बीते सोमवार को मासिक बिक्री ब्रीफिंग के दौरान मारुति सुजुकी के सीनियर एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, कॉरपोरेट अफेयर्स, राहुल भारती ने खुलकर कहा कि कुछ कंपनियां “ग़लत तथ्यों और नैरेटिव्स” का इस्तेमाल कर रही हैं. उनका आरोप था कि बड़े इंजन वाली कंपनियां अपने ‘गैस-गज़लर’ वाहनों से ध्यान हटाने के लिए छोटी कारों को निशाना बना रही हैं.
भारती ने कहा कि “कुछ बड़ी गैस-गज़लर कंपनियों द्वारा बहुत गैर-जिम्मेदाराना तरीके से गलत तथ्य और नैरेटिव फैलाए जा रहे हैं ताकि लोगों का ध्यान उनके बड़े इंजन वाले वाहनों से हट जाए.” भारती के अनुसार, यह बहस तकनीक और पर्यावरण की होनी चाहिए, न कि ऐसी दलीलों की जिनका मकसद चर्चा को भटकाना हो.
दरअसल, ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) ने पिछले साल जून में CAFE -3 नियमों का ड्राफ्ट जारी किया था. इस प्रस्ताव के तहत औसत CO2 उत्सर्जन सीमा को वर्तमान CAFE 2 नियमों के 113 ग्राम CO2/किमी से घटाकर 91.7 ग्राम CO2/किमी करने का नियम है. हालांकि, नए ड्राफ्ट में यह सीमा और सख्त कर दी गई है. पहले साल में यह 88.4 ग्राम CO2/किमी होगी, जिसके बाद अगले वर्षों में यह क्रमशः 84.7 ग्राम, 81.9 ग्राम, 76.4 ग्राम और 71.5 ग्राम तक कम होगी. यानी हर साल क्रमिक रूप से उत्सर्जन सीमा घटाई जाएगी.
2027 में: 88.4 ग्राम/किमी
2028 में: 84.7 ग्राम/किमी
2029 में: 81.9 ग्राम/किमी
2030 में: 76.4 ग्राम/किमी
2031 में: 71.5 ग्राम/किमी
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक नए नियमों को लेकर मारुति सुजुकी ने CAFE का रूख किया था और नियमों में बदलाव की मांग की थी. जिसके बाद नए ड्राफ्ट में सब-4 मीटर (यानी चार मीटर की लंबाई से छोटे) पेट्रोल वाहनों के लिए ख़ास तौर पर राहत दी गई. जिन वाहनों का वजन 909 किलोग्राम तक, इंजन क्षमता 1200 सीसी तक और लंबाई 4000 मिमी से कम है उन्हें विशेष लाभ मिलेगा. इन कारों को कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (CAFE 3) नियमों के तहत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन की गणना में 3 ग्राम का लाभ दिया गया है.
ख़बर ये भी है कि, नए ड्राफ्ट से मारुति सुजुकी संतुष्ट नहीं है. कंपनी की जो मांग थी नियमों में वैसा बदलाव नहीं किया गया, लेकिन फिर भी कंपनी के लिए राहत की बात जरूर है. मारुति सुजुकी के सीनियर अधिकारी राहुल भारती का कहना है कि, छोटी कारों के लिए BEE को अलग से नियम बनाने चाहिए. वहीं दूसरे वाहन निर्माता वजन-आधारित छूट का विरोध कर रहे हैं.
इन कंपनियों में टाटा मोटर्स, महिंद्रा, हुंडई और एमजी मोटर्स जैसे ब्रांड्स शामिल हैं. जिनका का मानना है कि, वेट बेस्ड नियम का सीधा फायदा उन कार कंपनियों को मिलेगा, जिनके पोर्टफोलियो में ऐसी कारें ज्यादा शामिल हैं जिनका वजन 909 किग्रा से नीचे है. इस मामले में इन बड़ी कंपनियों ने सरकार को पत्र भी लिखा है और वजन पर आधारित उत्सर्जन छूट को "मनमाना" बताया है.
हाल ही में टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स (TMPV) के प्रबंध निदेशक और सीईओ शैलेश चंद्रा ने कहा था कि, "CAFE-3 में बदलाव करने या कारों की किसी ख़ास कैटेगरी को छूट देने का कोई मतलब नहीं बनता है." बता दें कि, मौजूदा CAFE-2 नियम मार्च 2027 तक लागू है और अप्रैल 2027 से CAFE-3 नॉर्म्स को लागू किए जाने का प्रस्ताव है.
कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल इफिसिएन्सी जिसे संक्षिप्त रूप में (CAFE) भी कहा जाता है. CAFE स्टैंडर्ड पहली बार सरकार द्वारा ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत 2017 में जारी किए गए थें, ताकि ईंधन की खपत को कम करते हुए कार्बन (CO₂) उत्सर्जन को कम किया जा सके.
ये एक सरकारी नियम है जो किसी भी वाहन के लिए एक मिनिमम या औसत फ्यूल एफिशिएंसी तय करता है. जिसे कार निर्माता द्वारा भारत में बेचे जाने वाले सभी वाहनों को पूरा करना होता है. यह कार के माइलेज को तय करने का एक मानक है. यह नियम कंपनियों को सभी मॉडलों की फ्यूल इकोनॉमी का औसत निकालकर हाई इफिसिएंसी वाली कारों का निर्माण करने में मदद करता है.
प्रस्तावित CAFE-III नियमों को लेकर अभी कई दौर की चर्चाएं होंगी. लेकिन इतना तय है कि भारत की ऑटो इंडस्ट्री में ईंधन दक्षता की बहस सिर्फ तकनीक की नहीं, बाज़ारी रणनीतियों की भी बन चुकी है. आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नियम किस रूप में लागू होते हैं और किसकी दलीलें सरकार को ज्यादा तार्किक लगती हैं.