सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों से जुड़ा हुआ जो एक आदेश दिया है, इसके बाद से सोसायटी दो खांचों में बंट गई है. एक खेमा उनका है जो ये मानकर चल रहे हैं कि ये आदेश अमानवीय है. इन्हें दूसरे खेमे वाले #Dog_Lover कह रहे हैं. दूसरा खेमा उनका है जो मान रहे हैं कि आदेश सही है और हाल-फिलहाल की घटनाओं को देखते हुए बिल्कुल मार्के का फैसला लिया गया है.
खैर, समय का चक्का बहुत पीछे घुमाते हुए चलते हैं उस टाइम जोन में जहां कुत्तों को भी बड़े सम्मान से 'श्वान' कहा जाता था. यह संस्कृत और संस्कृतियों वाला दौर था. इस दौर में एक भी घटना ऐसी याद नहीं आती, जब कुत्ते खूंखार हुए हैं और उन्होंने यूं ही मजे-मजे में राह चलते किसी को दौड़ा लिया हो, काट खाया हो, या फिर घसीट ले गए हों. अलबत्ता ये जरूर हुआ कि उन्होंने बेवजह ही मार खाई और जैसे सब श्राप दे देते थे तो उस दौर में कुत्ते भी श्राप दे रहे थे.
महाभारत के आदिपर्व में कुत्ते का जिक्र
महाभारत के आदिपर्व में ही कुत्ते का खास जिक्र मिलता है. आदिपर्व में राजा जनमेजय का एक प्रसंग है. वह अपने भाइयों के साथ एक यज्ञ करा रहे थे. उसी समय एक पिल्ला (श्वान छौना) आकर वहां यज्ञपूजा स्थल पर बैठ गया. जनमेजय के भाइयों ने उस कुत्ते को डंडा मारकर वहां से भगा दिया. वह पिल्ला रोते हुए स्वर्ग पहुंचा और अपनी मां से सारी बात कही. उसकी माता श्वान ने कहा- अकारण ही वह तुम्हें क्यों मारेंगे? जरूर तुमने उनके यज्ञ की समिधा और हवि को चाटा होगा!
पिल्ले ने कहा- मैं बस यज्ञस्थल के पास बैठा था. मैंने न सूंघा, न चाटा न ही कुछ किया. इस पर वह श्वान माता स्वर्ग से उतरकर नीचे आई और राजा जनमेजय के भाइयों के पास पहुंची. वहां यज्ञ कर रहे उनके भाइयों से कहा- तुमने मेरे बच्चे को बिना किसी कारण के क्यों मारा? इस पर जनमेजय के भाइयों ने कोई उत्तर नहीं दिया. तब दुखी हुई उस श्वान माता (कुतिया) ने रोते हुए उन्हें श्राप दिया कि कुरुवंश में जल्दी ही कोई अनिष्ट होगा. ऐसा श्राप देकर वह श्वान माता कुतिया वहां से चली गई.

कुत्तों का रोना क्यों अशुभ माना जाता है?
प्रसंग में आगे होता ये है कि श्राप के कारण जनमेजय को अपने पिता की अकाल मृत्यु का कष्ट सहना पड़ता है. इसीलिए आज भी किसी शुभकार्य के दौरान कुत्ते रोते हैं तो उनका रोना अपशकुन माना जाता है और उन्हें जल्दी ही चुप कराने की कोशिश की जाती है.
खैर... कुत्तों के साथ अगर ये एक अपशकुन जुड़ा है तो कई सारे शुभ लक्षण भी जुड़े हुए हैं. जिस श्वान माता का जिक्र महाभारत के आदिपर्व में हुआ है, वह कोई साधारण कुतिया नहीं थी. उसका नाम सरमा था. वह देवराज इंद्र की प्रिय और रक्षिका कुतिया थी. वह स्वर्गलोक की दूती भी थी. वही संसार के सारे कुत्तों की माता जननी भी है. उसे 'आदिश्वान' होने का सम्मान प्राप्त है. स्वर्गलोक में उसका दर्जा देवगणों जैसा ही था, फिर भी जनमेजय के भाइयों ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया, इसीलिए सरमा ने ऐसा श्राप भी दिया.
स्वर्गलोक में भी था श्वान का महत्वपूर्ण स्थान
हालांकि सरमा इतनी क्रूर और निर्दयी थी नहीं, बल्कि उसका काम रक्षा का था और कई बार उसने अपना ये दायित्व निभाया भी था. एक बार पणि नामके असुरों ने इंद्र की गायें चुरा लीं. इंद्र ने सरमा को गायों को वापस लाने के लिए भेजा. सरमा इंद्र की सबसे विश्वासी थी. वह गुफाओं, जंगलों-पर्वतों से होते हुए पाताल से भी नीचे रसातल में उस जगह पहुंची जहां पणि ने गायों को छिपाकर रखा था.
ऋग्वेद के प्रथम मंडल में इस कहानी का वर्णन है. देवशुनी सरमा इंद्र से कहती हैं कि वह उसके पुत्रों सरमेय को सुरभि गाय का अमृत तुल्य दूध पिलाएंगे. इंद्र इसके लिए मान जाते हैं. तब सरमा रसातल से गायों को खोज लाती है. ऋग्वेद में सरमा के महिमा में 62वां सूक्त कहा गया है.
कुत्तों को घी क्यों नहीं हजम होता?
हालांकि इस कहानी का एक दूसरा वर्जन भी है, जो कुत्तों के सम्मान को कम करता है. एक कहावत तो सुनी होगी, 'कुत्तों को घी हजम नहीं होता है.' ऋग्वेद से जुड़ी इस कहानी से निकली एक लोककथा भी है. होता ये है कि इंद्र के कहने पर सरमा पणि असुर के पास गाय लाने जाती है, लेकिन पणि असुर कहता है इस काम के बदले इंद्र तुम्हें क्या देगा? सरमा कहती है कि वह मेरे पुत्रों को सुरभि गाय का दूध देंगे. तब पणि हंसने लगता है और कहता है कि सिर्फ दूध देंगे. फिर एक कटोरा आगे करके कहता है, यह खाओ.

उस कटोरे में घी था. सरमा घी खाती है, उसका मुंह चिकनाई से सन जाता है, फिर वह उसी मुंह को लिए स्वर्गलोक लौटती है. वहां वह इंद्र से कहती है कि मुझे गायें नहीं मिली, लेकिन इंद्र उसके घी से सने मुंह को देख लेते हैं. वह कहते हैं घी का ऐसा लोभ कि वह पूरी तरह तुम्हारे मुंह में गया भी नहीं और तुमने मुझसे झूठ बोल दिया. इस विश्वासघात के कारण इंद्र सरमा और श्वान प्रजाति को स्वर्ग से निष्कासित कर देते हैं. संभव है कि 'घी हजम न होने' वाली बात यहीं से आई होगी.
स्वर्ग से भी कुत्तों को मिला था निष्कासन
खैर, स्वर्ग से कुत्तों को जो एक बार निष्कासन मिला तो फिर उन्हें दोबारा प्रवेश महाभारत के आखिरी में ही मिला. युधिष्ठिर वाली कहानी तो याद ही होगी. पांडव जब स्वर्ग यात्रा के लिए निकले तो रास्ते में एक कुत्ता भी उनके साथ हो लिया. वह नदी-पहाड़, झरने लांघते जाते और कुत्ता भी उनके पीछे धर्म पथ पर बढ़ता जाता. स्वर्ग के मुहाने तक पहुंचकर सिर्फ धर्मराज युधिष्ठिर और उनके पीछे चला जा रहा वही कुत्ता जीवित बचे थे.
अब बस एक और कदम बढ़ाना था और स्वर्ग में प्रवेश मिल जाता, लेकिन धर्मदेवता प्रकट हुए और बोले कि आप सिर्फ अकेले ही प्रवेश कर सकते हैं, यह कुत्ता नहीं. तब युधिष्ठिर इस बात पर अड़ गए कि मैं अकेले स्वर्ग नहीं जाऊंगा. तब धर्मदेव अपने स्वरूप में सामने आ गए और वह कुत्ता जो खुद धर्म का ही एक रूप था वह भी देव रूप में प्रकट हो गया. युधिष्ठिर के कारण कुत्तों को स्वर्ग में फिर से प्रवेश मिलने लगा.
पुराणों और उपनिषदों में भी धर्म के प्रतीक हैं कुत्ते
इस कहानी से इतर भी पुराणों और उपनिषदों में कुत्तों को धर्म का प्रतीक माना गया है. उसके चार पैर धर्म के चार स्तंभ हैं, जिन्हें, क्षमा, दया, तप और त्याग का प्रतीक माना जाता है. श्वान का मुख ज्ञान का प्रतीक है. जो पुराणों में वर्णित कैवल्य और सम्यक ज्ञान का स्वरूप है. भगवान दत्तात्रेय के साथ चार कुत्ते दिखाई देते हैं, वह भी ज्ञान स्वरूप में चार वेदों के प्रतीक हैं. भगवान दत्तात्रेय ही नाथ पंथ के प्रणेता, सिद्ध और गुरु हैं, इससिए नाथ संप्रदाय में कुत्तों का विशेष पवित्र महत्व है. कुत्ते भैरव की सवारी भी हैं, शनिवार को काले कुत्ते को कराया गया भोजन शनि की छाया दूर करता है, ऐसी मान्यता है.

पहली रोटी गाय की आखिरी कुत्ते की, कहां गई यह परंपरा?
कुत्ते स्वर्ग से नीचे उतारे गए तो उन्हें वैतरणी नदी के आगे प्रहरी के तौर पर बिठाया गया. गरुण पुराण में जिक्र आता है कि आत्मा जब शरीर को छोड़कर अपनी यात्रा पर जाती है तब उसके दो सहायक होते हैं, एक तो गाय, दूसरा कुत्ते. गाय की पूंछ वैतरणी पार कराती है तो चार आंखों वाले कुत्ते आत्मा को राह दिखाते हुए स्वर्ग की ओर ले जाते हैं.
इसीलिए सनातनी परंपरा में परिवारों में पहली रोटी गाय की और आखिरी कुत्ते की तय की गई है और सदियों से यह परंपरा चली आ रही थी. हालांकि अब परंपराएं सिर्फ बातों में रह गई है, संस्कृति किताबों में. कुत्ते भी खूंखार होने लगे और इन सब का मिला-जुला परिणाम ही विवाद के रूप में हमारे सामने है.