नये साल की अगवानी को सिर्फ दो दिन बचे हैं. इसके बाद साल 2026 की जनवरी के आगमन के साथ समय और वर्ष का एक और नया चक्र शुरू हो जाएगा. कैलेंडर में महीनों के वही पन्ने साल के नए डिजिट्स के साथ फिर से रिपीट होंगे. नए साल के स्वागत की तैयारियों के बीच यह जानना दिलचस्प कितना दिलचस्प है कि, किसी जमाने में दिसंबर नहीं बल्कि फरवरी आखिरी महीना हुआ करता था. इससे भी दिलचस्प बात ये है कि इस आखिरी महीने का नाम फरवरी नहीं था, बल्कि कोई नाम ही नहीं था.
साल की शुरुआत मार्च के महीने से होती थी, जिसे पहला महीना मानते थे. इसके पहले के 61 दिनों का कोई नाम नहीं था. इस समय को बिना किसी नाम के बस बीत जाने दिया जाता था. रोम के राजा
नूमा पोम्पिलियस ने जब साल को दस महीने के बजाय बारह महीनों में बांटा. तब हमें जनवरी और फरवरी दो नए महीने मिले. यही दोनों शुरुआते महीने बन गए. जनवरी नाम तो मिला रोमन देवता जानूस के नाम पर, लेकिन फरवरी नाम पड़ा, मृतकों के यादगार के समय और आत्मा की शुद्धि करने वाले अनुष्ठान के दिनों से. लेकिन कैसे? आइए जानते हैं.
क्या है ‘फेब्रुअम’ ?
असल में फरवरी का नाम पड़ा है, जनवरी के बाद आने वाले दिनों में इस्तेमाल होने वाले ‘फेब्रुअम’ (februum) से. फेब्रुअम का अर्थ था, 'धार्मिक शुद्धि का साधन'. प्राचीन रोमन मिथकों की किताबों में दर्ज मिलता है कि, 'जो कुछ भी शुद्ध या पवित्र करता है, वही फेब्रुअम है.' शुद्धि से जुड़े अनुष्ठानों को 'फेब्रुअमेंशिया' कहा जाता था. अलग-अलग धार्मिक विधियों में शुद्धि के अलग-अलग तरीके थे.
कवि ओविड भी अपनी प्रसिद्ध कृति 'फास्ती' में इसी बात की पुष्टि करते हैं. उनके अनुसार, ' प्राचीन में रोम में पुरखों की याद और आत्मा की शुद्धि को ‘फेब्रुआ’ कहा जाता था. भाषाविदों का मानना है कि यह शब्द सबाइन (Sabine) परंपरा से आया है.
छठी सदी के लेखक योहानेस लिडियस ने एक अलग व्याख्या दी है. उनके अनुसार फरवरी महीने का नाम देवी फेब्रुआ (Februa) से आया, जिन्हें वस्तुओं की निगरानी और शुद्धि की देवी माना जाता था. हालांकि इतिहासकार मानते हैं कि यह व्याख्या लिडियस की अपनी परंपरा से निकली हो सकती है. फरवरी कोई एक रस्म नहीं, बल्कि 'शुद्धिकरण की रस्मों का पूरा महीना' था. यहां तक कि सेंट ऑगस्टीन भी 'सिटी ऑफ गॉडट में लिखते हैं. 'फरवरी वह महीना है जिसमें पवित्र शुद्धिकरण होता है, जिसे वे फेब्रुअम कहते हैं, और इसी से महीने का नाम पड़ा.'
रोमन मिथकों में शुद्धि प्रक्रिया
रोमन माइथॉलजी में शुद्धि प्रक्रिया का जिक्र भी मिलता है. इस दौरान पुराने ऊनी कपड़े मंगाए जाते थे. घरों को भुने अनाज और नमक से शुद्ध किया जाता था. प्रीस्ट के मुकुटों में इस्तेमाल होने वाली पत्तियों की डालियां भी शुद्धिकरण के काम आती थीं. फरवरी केवल शुद्धि का महीना नहीं था, बल्कि 'मृतकों का महीना' भी माना जाता था. दरअसल, यह कभी साल का आखिरी महीना हुआ करता था. इस दौरान 'पैरेंटालिया' नाम के पर्व में पूर्वजों की आत्माओं की पूजा होती थी. मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते थे और अग्नि को बुझा दिया जाता था, ताकि अशुभ शक्तियां पवित्र स्थलों को प्रभावित न कर सकें.
क्या शोक और विलाप का समय था फरवरी?
योहानेस लिडियस का मानना था कि महीने का नाम 'फेबर (शोक या विलाप) से भी जुड़ा हो सकता है, क्योंकि यह मृतकों के लिए शोक मनाने का समय था. लोगों का विश्वास था कि इन अनुष्ठानों के ज़रिए क्रोधित आत्माओं को शांत कर उन्हें वापस उनके लोक में भेजा जा सकता है. इस तरह आत्मा की शुद्धि, पूर्वजों की याद और शुद्धिकरण की देवी फेब्रुआ से निकलकर रोमन कैलैंडर में फरवरी नाम भी जुड़ गया.