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महज शिल्प नहीं सदियों पुरानी गाथा...‘क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर’ में जीवंत हुईं आदिवासी परंपराएं

दिल्ली के राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय में चल रही 'क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर' प्रदर्शनी देश भर के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों की समृद्ध शिल्प परंपराओं को प्रदर्शित करती है. यह 10 दिवसीय प्रदर्शनी 21 दिसंबर 2025 तक जारी रहेगी.

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राष्ट्रीय शिल्प म्यूजियम में आयोजित है प्रदर्शनी
राष्ट्रीय शिल्प म्यूजियम में आयोजित है प्रदर्शनी

राजधानी दिल्ली में मौजूद राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय इस वक्त देश के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों की रंगत से गुलजार है. यहां जारी है शिल्प आधारित प्रदर्शनी 'क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर' जिसमें देश भर के अलग-अलग इलाकों और समुदायों से निकली भारत की समृद्ध शिल्प परंपराएं और उनके सतत, समकालीन जीवन का प्रदर्शन देखने लायक है. इसके अलावा यहां इस प्रदर्शनी में हिस्सा लेकर एक वर्कशॉप के जरिए आप इन समृद्ध परंपरा की मेकिंग प्रोसेस से रूबरू भी हो सकते हैं और सीखने की प्रक्रिया में शामिल भी हो सकते हैं.  


प्रदर्शनी का आयोजन वस्त्र मंत्रालय के हस्तकला विभाग के विकास आयुक्त कार्यालय द्वारा किया गया है. प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए गिरीराज सिंह ने कहा कि आज का युवा पारंपरिक शिल्प को समझ रहा है और वैश्विक दर्शकों के लिए प्रासंगिक समकालीन उत्पाद प्रस्तुत कर रहा है. 

विश्व तक पहुंच रहा है भारत का शिल्प
प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए गिरीराज सिंह ने कहा कि आज का युवा पारंपरिक शिल्प को समझ रहा है और वैश्विक दर्शकों के लिए प्रासंगिक समकालीन उत्पाद प्रस्तुत कर रहा है.उन्होंने कहा कि कारीगरों को सुगमता देने और भारत के विभिन्न शिल्पों को विश्व तक पहुंचाने के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं.

'क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर', की यह 10 दिवसीय प्रदर्शनी राष्ट्रीय हस्तशिल्प सप्ताह का हिस्सा है. 21 दिसंबर 2025 तक यह जनता के लिए जारी रहेगी, जिसमें सभी आगंतुकों के लिए निःशुल्क प्रवेश होगा. 'क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर', व्यापक 'वीव द फ्यूचर' श्रृंखला का तीसरा संस्करण है, जो दैनिक भौतिक संस्कृति पर जोर देता है. खासकर समुदायों और उनके पर्यावरण और दैनिक जीवन को आकार देने वाली सामग्रियों के बीच अटूट संबंध का भी नजरिया पेश करता है. यहां एक छोटे परिसर में भारत की कला और कलाकारों का सुंदर जमावड़ा है, जहां आप कारीगरों और सामग्री के सुंदर शिल्प विकास की बारीकियों को जान-पहचान सकते हैं. यह पहल पारिस्थितिक संतुलन, क्षेत्रीय पहचान पर आधारित प्रथाओं को भी सामने रखती है.

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संस्कृति से परिचित कराते हैं शिल्प
यहां कई शिल्प ऐसे प्रदर्शित हैं जो सीधे तौर पर न सिर्फ कला से परिचित कराते हैं बल्कि बीती कई सदियों की संस्कृति को भी अपने में संजोए हुए हैं. इनमें से एक है बस्तर की हल्बा जनजाति का शिल्प. यह जनजाति मुख्य रूप से बस्तर क्षेत्र में पिटवा लोहे से कई पारंपरिक और समकालीन शिल्प बनाती है, जिनमें दीपक, पशु-पक्षी, देवी-देवताओं की आकृतियां, ग्रामीण जीवन के दृश्य, मुखौटे , दीवार पर टांगने वाली सजावटी वस्तुएं और कृषि/शिकार के उपकरण शामिल हैं.

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यह शिल्प अपनी अनूठी कला के लिए प्रसिद्ध हैं, साथ ही अपने सांस्कृतिक महत्व को भी सामने रखते हैं. कोंडागांव और उमरगांव जैसे स्थानों पर हल्बा समुदाय की बहुलता है और उन्होंने गांव और जंगल की मिलि-जुली संस्कृति को खुद में संजो रखा है.  

हल्बा जनजाति के लामन दीपक
इनके शिल्प में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं, दीपक. इन दीपकों की खास शृंखला को लामन दिया कहते हैं. लामन दीपकों को बनाने की प्रक्रिया विवाह परंपरा से भी जुड़ी हुई है. हल्बा जनजाति में जैसे ही विवाह तय हो जाता है तो उस दिन से पुरुष लामन दीया बनाने में जुट जाता है. यह लामन दिया उसकी पत्नी के लिए सबसे पहला उपहार होता है. इसलिए लामन दीपक बेल-बूटों से अलंकारिक, सजावटी और सुंदर शृंखला में बनाए जाते हैं. 

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विवाह के बाद नई बहू जब आती है तो वह अपने पति द्वारा उपहार में दिए गए लामन दिया में ही ज्योति जलाकर रौशनी करती है और नए जीवन की शुरुआत करती है. यह पूरे जीवन को प्रकाश से भर देने का सुंदर और अनकहा वचन है, जिसे गृहस्थी की गाड़ी खींचते हुए दोनों पति-पत्नी निभाते हैं. इसीलिए जब शहरीकरण के दौर में भी विकास की चमक गांव में पहुंच रही है तो भी लामन दीया की उजास धुंधली नहीं पड़ी है और संस्कृति की ज्योति जलाए रखने में सहायक बन रही है. 

दीपकों में और भी दिए हैं, इनमें साधारण से लेकर जटिल डिज़ाइन तक शामिल हैं, जैसे खड़े दीये (खुंट दीया), और माता-दीया जो देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले होते हैं, उन्हें भी अलंकारिक तरीके से पिटवां लोहे द्वारा बनाया जाता है. 
इसके अलावा स्थानीय जानवर, पक्षी और प्रसिद्ध "राओदेव घोड़ा" (दो पैरों वाला) शामिल हैं, जो जंगल और धरती से प्रेरित होते हैं. आदिवासी नृत्य, नाव दौड़, और आदिवासी महिलाएं व बच्चे (जैसे एक मां और बच्चा) जैसे दृश्य भी बनाए जाते हैं, जो उनके जीवन को दर्शाते हैं.

मोमबत्ती स्टैंड, की-होल्डर (Key Holders), शोपीस, और मुखौटे (Masks) जैसी कई सजावटी वस्तुएं भी बनती हैं. जादू-टोने और अनुष्ठानों के लिए विशेष कीलें देवी-देवताओं को चढ़ाने वाली चीज़ें भी बनती हैं. 

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प्रदर्शन और संवाद का सिलसिला जारी
कार्यक्रम में वस्त्र मंत्रालय की हस्तकला विभाग की विकास आयुक्त अमृत राज ने कहा कि भारत की शिल्प बुद्धिमत्ता को जीवित रखना स्मृति को संरक्षित करने के बारे में नहीं है, बल्कि शिल्प को एक जीवंत, सांस लेने वाली शक्ति के रूप में पहचानना है जो हमारे कल को आकार दे रही है. ‘क्राफ्टेड फॉर द फ्यूचर’ प्रदर्शनी के दर्शक भारत की भौतिक संस्कृतियों की उत्पत्ति, प्रक्रियाओं और समकालीन संभावनाओं में डुबोने के लिए डिज़ाइन किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का अनुभव कर सकते हैं.

इस प्रदर्शनी में ऐसे मोहक शिल्प जिसमें रोज की भौतिक सामग्रियों की झलक दिखाई पड़ती है. वह शामिल हैं. इसके अलावा, विशेष रूप से निर्मित हस्तशिल्प की वस्तुओं का बाजार जहां स्थानीय, शिल्पी कारीगर अपनी स्थानीय पुनर्चक्रीय सामग्रियों के साथ अपनी कलाकृति निर्मित की हुई हो . सामग्री की उत्पत्ति और शिल्प प्रक्रियाओं पर दैनिक फिल्म स्क्रीनिंग, प्रदर्शन तथा संवाद का सिलसिला भी जारी है. मिट्टी के बर्तन, कढ़ाई, ऊन, बांस, प्राकृतिक रंग, खाद्य परंपराओं आदि में कारीगरों, डिजाइनरों तथा अभ्यासकर्ताओं द्वारा संचालित हैंड्स-ऑन वर्कशॉप भी यहां हो रही है. 

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