भारत में मौसम का कहर: 7 महीनों में 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद

2025 के सात महीनों में मौसमी आपदाओं ने भारत को हिला दिया. 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद और हजारों मवेशियों का नुकसान इस तबाही की गंभीरता दिखाता है. उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.

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उत्तरी सिक्किम में तीस्ता में बादल फटने के बाद आई बाढ़. (File Photo: PTI) उत्तरी सिक्किम में तीस्ता में बादल फटने के बाद आई बाढ़. (File Photo: PTI)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

भारत में इस साल मौसम ने भयानक रूप दिखाया है. पिछले सात महीनों (जनवरी से जुलाई 2025) में बारिश, बाढ़, तूफान और बिजली गिरने जैसी आपदाओं ने 1,626 लोगों की जान ले ली है. 1.57 लाख हेक्टेयर से ज्यादा फसलों को नष्ट कर दिया है उत्तराखंड से लेकर केरल तक, हर तरफ तबाही का मंजर दिख रहा है.

साल-दर-साल बढ़ती आपदाएं

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हर साल मॉनसून के दौरान बाढ़, भूस्खलन और बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. ऐसा लगता है कि अब कोई साल ऐसा नहीं रहा, जब देश ने जलवायु से जुड़ी त्रासदी न देखी हो. 2025 में भी हालात खराब हैं. उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली गांव में बादल फटने से अचानक बाढ़ आई और पूरे गांव को उजाड़ दिया.

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इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज में 30 जून 2025 की रात भारी बारिश ने भूस्खलन और बाढ़ ला दी, जिसमें कई जिंदगियां चली गईं. हिमालय नीति अभियान (HNA) के मुताबिक, सराज घाटी के करीब 25 गांव इस आपदा से प्रभावित हुए. 2024 में केरल के वायनाड में भी मानसून ने भारी तबाही मचाई थी.

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गृह मंत्रालय के आंकड़े

6 अगस्त 2025 को गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में इन आपदाओं की जानकारी दी. पिछले सात महीनों में देशभर में 1626 लोगों की मौत हुई है. कई राज्यों में यह आंकड़ा चौंकाने वाला है. आंध्र प्रदेश में 343, मध्य प्रदेश में 243, हिमाचल प्रदेश में 195, कर्नाटक में 102 और बिहार में 101 लोगों की जान गई.

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केरल में 97, महाराष्ट्र में 90, राजस्थान में 79, उत्तराखंड में 71, गुजरात में 70, जम्मू-कश्मीर में 37, असम में 32 और उत्तर प्रदेश में 23 मौतें रिकॉर्ड की गईं. कुल मौतों में 60% से ज्यादा सिर्फ आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल, कर्नाटक और बिहार में हुईं. 

किसानों पर कहर

इन आपदाओं का असर सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं रहा. किसानों और उनकी फसलों पर भी भारी नुकसान हुआ.  52,367 मवेशी मारे गए और 1,57,818 हेक्टेयर जमीन की फसलें बर्बाद हो गईं. उत्तराखंड में 9.47 हेक्टेयर फसल और 67 मवेशी प्रभावित हुए.

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महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 91,429 हेक्टेयर फसलें नष्ट हुईं, जबकि असम में 30,474.89, कर्नाटक में 20,245, मेघालय में 6,372.30, और पंजाब में 3,569.11 हेक्टेयर फसलें तबाह हुईं. हिमाचल में 23,992, असम में 14,269 और जम्मू-कश्मीर में 11,067 मवेशी मरे, जो किसानों की आजीविका को झटका दे गया.

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अस्थायी आंकड़े और चुनौतियां

मंत्रालय ने कहा कि ये आंकड़े अस्थायी हैं. राज्यों से मिली जानकारी पर आधारित हैं. मंत्रालय खुद आंकड़े इकट्ठा नहीं करता, बल्कि राज्यों पर निर्भर रहता है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति (NPDM) के तहत राहत और प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है. केंद्र उनकी मदद करता है. लेकिन कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह तरीका सही है, क्योंकि इससे देशभर में एकजुटता की कमी हो सकती है.

चेतावनी प्रणाली में सुधार

लोगों को बिजली और तूफान से बचाने के लिए सरकार ने कदम उठाए हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने सैटेलाइट, रडार और 102 सेंसर वाले ग्राउंड नेटवर्क से लैस एक उन्नत प्रणाली बनाई है, जो 5 दिन पहले चेतावनी दे सकता है. 

पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम संस्थान ने 112 सेंसर वाला वज्रपात निगरानी नेटवर्क तैयार किया है, जिससे 'दामिनी' ऐप बना. यह ऐप 20-40 किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने की सटीक जानकारी देता है. 28 फरवरी 2025 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आंधी, बिजली और तेज हवाओं से निपटने के दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं.

जलवायु परिवर्तन और भविष्य

ये आपदाएं जलवायु परिवर्तन का नतीजा मानी जा रही हैं. बारिश का पैटर्न बदल रहा है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि वनों को बचाना, टिकाऊ खेती और बेहतर प्रबंधन से इस संकट को कम किया जा सकता है. लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार और समाज मिलकर इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं?

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