माता सीता की जन्मस्थली 'मिथिलांचल' का इलाका बिहार की सियासत का धुरी माना जाता है. दिल्ली की सत्ता का रास्ता जिस तरह से यूपी से होकर गुजरता है, उसी तरह बिहार की सत्ता का फैसला मिथिलांचल के इलाके से होता है. एक समय यह इलाका आरजेडी का गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब मिथिलांचल जेडीयू-बीजेपी के मजबूत दुर्ग में तब्दील हो चुका है। क्या केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 'माता सीता' के जरिए एनडीए के सबसे मजबूत दुर्ग को दुरुस्त करने उतर रहे हैं?
अमित शाह शुक्रवार को सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में मां जानकी मंदिर के शिलान्यास और भूमि पूजन के कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. इसे लेकर अमित शाह ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर कहा है कि शुक्रवार का दिन पूरे देश और खासकर मिथिलांचल क्षेत्र के लिए अत्यंत सौभाग्य और हर्ष का दिन होने वाला है, जब सीतामढ़ी स्थित माता सीता की जन्मभूमि में पवित्र पुनौरा धाम मंदिर का शिलान्यास होगा.
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अमित शाह और सीएम नीतीश कुमार द्वारा पुनौरा धाम में माता सीता के मंदिर का शिलान्यास एनडीए के लिए मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. इसके जरिए सिर्फ सीतामढ़ी जिले को साधने का ही नहीं बल्कि पूरे मिथिला बेल्ट में सियासी संदेश देने की रणनीति है. बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बिहार में माता सीता का भव्य मंदिर बनने जा रहा है, जो मिथिला इलाके के साथ-साथ पूरे बिहार के लिए गर्व की बात है.
माता सीता के मंदिर का शाह करेंगे शिलान्यास
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सीतामढ़ी स्थित पुनौराधाम में माता सीता मंदिर परिसर का शिलान्यास करेंगे. करीब 67 एकड़ में बनने वाले इस भव्य मंदिर के अलावा परिसर में संग्रहालय, सीता वाटिका और लवकुश वाटिका बनायी जाएगी. पुनौराधाम में भूमि पूजन का भव्य आयोजन होगा, जिसमें सीएम नीतीश कुमार समेत राज्य सरकार के कई मंत्री मौजूद रहेंगे। पूरे विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ शिलान्यास किया जाएगा.
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माता सीता मंदिर के प्रोजेक्ट को अयोध्या के राम मंदिर निर्माण की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है. पुनौराधाम को हिंदू धर्म में माता सीता के जन्मस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह स्थल सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है. राम मंदिर निर्माण का श्रेय बीजेपी पहले से लेती रही है और अब माता सीता के मंदिर का क्रेडिट भी अपने नाम करने का दांव चल रही है. साथ ही शाह विकास की सौगात देकर सियासी समीकरण साधते नजर आएंगे.
मिथिलांचल पर मजबूत पकड़ बनाए रखने का दांव
अमित शाह माता सीता के मंदिर का शिलान्यास कर सीतामढ़ी को ही नहीं बल्कि पूरे मिथिलांचल पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने की स्ट्रेटेजी मानी जा रही है. बिहार की कुल 243 सीटों में से मिथिलांचल क्षेत्र में 60 विधानसभा सीटें आती हैं, जो कुल सीटों का करीब 25 फीसदी बनता है. 2020 के चुनाव में मिथिलांचल की 60 में से 40 सीटें एनडीए जीतने में कामयाब रही थी. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दौरे के बाद अमित शाह इस क्षेत्र को साधने के लिए उतर रहे हैं ताकि बीजेपी-जेडीयू का दुर्ग पूरी तरह दुरुस्त रहे.
मिथिलांचल का सियासी और जातीय समीकरण
बिहार के मिथिलांचल इलाके में सात जिले आते हैं. मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, वैशाली और सहरसा की सीटें मिथिलांचल में आती हैं. इन जिलों में विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं। मिथिलांचल में ब्राह्मण, राजपूत, यादव, अति पिछड़ा वर्ग, और दलित समुदायों की महत्वपूर्ण आबादी है. ब्राह्मण और राजपूत पारंपरिक रूप से बीजेपी के कोर वोटर माने जाते हैं, जबकि ईबीसी और कुछ हद तक यादव मतदाता जेडीयू और आरजेडी के बीच बंटते हैं.
इस पूरे इलाके में 55 पिछड़ी और अति पिछड़ा जातियों के मतदाता हैं, जिन्हें पचपनिया कहा जाता है. राम मंदिर आंदोलन के बाद से ब्राह्मण और मुस्लिम समुदायों का ध्रुवीकरण हुआ, जिसने भाजपा को इस क्षेत्र में मजबूत किया। मिथिलांचल में मुस्लिम आबादी भी कुछ क्षेत्रों में प्रभावशाली है, जिसे आरजेडी और अन्य विपक्षी दल अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं.
यादव-मुस्लिम और अतिपिछड़े वर्ग के वोटों को जोड़कर लालू यादव अपनी सियासी जड़ें जमाने में कामयाब रहे, लेकिन नीतीश के सियासी उभार के बाद आरजेडी को झटका लगा है. ब्राह्मण वोट बीजेपी के कोर वोटबैंक माने जाते हैं लेकिन इनके बाहुल्य के बावजूद यह इलाका कमल निशान वाली पार्टी के लिए तिलिस्म की तरह रहा है. जेडीयू के साथ होने पर एनडीए का प्रदर्शन दमदार रहा है लेकिन बगैर उसके बीजेपी गठबंधन बेदम दिखा है.
साल 2005 के बिहार चुनाव में एनडीए और नीतीश कुमार के उभार के बाद यह इलाका जेडीयू का गढ़ बनकर उभरा, लेकिन 2015 के बिहार चुनाव में जेडीयू महागठबंधन के घटक दल के रूप में चुनाव मैदान में थी और तब बगैर नीतीश कुमार के बीजेपी 30 विधानसभा सीटों वाले दरभंगा प्रमंडल में तीन सीटों पर सिमट गई थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी एनडीए ने मिथिलांचल की 60 में से 40 से ज्यादा सीटें जीतकर महागठबंधन को तगड़ा झटका दिया था.
2020 में कैसा रहा मिथिलांचल का मिजाज
मिथिलांचल के इलाके की सीटों का सियासी समीकरण देखें तो बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती ने महागठबंधन का माहौल पूरी तरह खराब कर दिया था.सीतामढ़ी की 8 सीटों में से छह सीटों पर बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को जीत मिली थी जबकि आरजेडी दो सीटों पर ही जीत सकी थी. मधुबनी की 10 विधानसभा सीटों में से एनडीए 8 और महागठबंधन 2 सीटें जीती थी. ऐसे ही दरभंगा जिले की 10 सीटों में से एनडीए 9 और महागठबंधन महज एक सीट ही जीत सकी थी.
मुजफ्फरपुर जिले की 11 सीटों में से एनडीए 6 और महागठबंधन 5 सीटें जीती थी. इसी तरह, शिवहर की एकमात्र विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय जनता दल ने जीत हासिल की है. मुजफ्फरपुर और वैशाली में भी एनडीए का दबदबा है. समस्तीपुर की 10 सीटों में एनडीए और महागठबंधन ने 5-5 सीटें जीती थीं.सहरसा की 4 सीटों में से एनडीए 3 और महागठबंधन 1 सीट जीती थी। इस तरह से एनडीए का दबदबा पूरी तरह कायम है, जिसे मजबूत बनाए रखने के लिए पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक फोकस कर रहे हैं.
मिथिलांचल पर बीजेपी का खास फोकस
मोदी सरकार का खास फोकस मिथिलांचल पर रहा है, सड़क से रेल परियोजनाओं तक की सौगात दी गई. दरभंगा में एयरपोर्ट शुरू कराया। दरभंगा को एम्स का तोहफा मिला और केंद्र ने मिथिला को ध्यान में रख मैथिली और मखाना को लेकर भी कई कदम उठाए. इनमें मैथिली में संविधान, मखाना को जीआई टैग, मखाना बोर्ड का गठन शामिल है.
सूबे की नीतीश सरकार में कुल नौ मंत्री ऐसे हैं जो मिथिलांचल से आते हैं. अब अमित शाह माता सीता का मंदिर का शिलान्यास करके सियासी संदेश देने के साथ-साथ मिथिलांचल को साधने का दांव चल रहे हैं. ऐसे में देखना है कि बीजेपी-जेडीयू की जोड़ी क्या मिथिलांचल पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएगी या फिर आरजेडी का मिथिला प्रदेश बनाने का दांव सियासी मुफीद बनेगा.
कुबूल अहमद