
देश में खेती करना भी एक चुनौती है. कृषि प्रधान देश जरूर है, लेकिन सबसे ज्यादा आर्थिक संकट से भी किसान ही जूझते दिख जाते हैं. कारण स्पष्ट है- उत्पादन कम और लागत ज्यादा. महाराष्ट्र के रहने वाले बालाजी तट को भी यहीं समस्या थी. वे गन्ने की खेती करते हैं. कई सालों से कर रहे हैं, लेकिन कभी भी ज्यादा फायदा नहीं हुआ. अब बालाजी ने खेती में तकनीक का सहारा लिया है और उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई है.
बीड के आपेगाव के रहने वाले बालाजी लंबे समय से खेती कर रहे हैं. जिस इलाके में वे खेती करते हैं उसे ग्रीन बेल्ट कहा जाता है क्योंकि वहां पर सभी गन्ने के खेत हैं. ऐसे मे वे भी गन्ने की खेती कर ही अपना घर-बार चलाते हैं. लेकिन क्योंकि हमेशा उत्पादन कम और लागत ज्यादा की समस्या रही, ऐसे में मुनाफा कमाना उनके लिए हमेशा मुश्किल रहा. अब इससे निजात पाने के लिए उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल करने की ठानी. वे अपने दोस्तों के सहयोग से इजरायल चले गए.

इजरायल की तकनीक से भारत में खेती
इजरायल के लिए कहा जाता है कि वहां पर मॉर्डन खेती पर काफी बल दिया जाता है. तकनीक के जरिए वहां पर खेती के मामले में क्रांति ला दी गई है. यहीं सोचकर बालाजी भी इजरायल चले गए और वहां उन्होंने ऑटोमेशन मशीन के बारे में जाना.
ऑटोमेटेड मशीन फसल की जरूरत के हिसाब से फसल का प्रबंधन करती है.फसल को कितना पानी देना चाहिए, घुलनशील खाद की मात्रा, कहां, कब, कहां लगाएं ,यह सब इस मशीन में फिट हो जाता है. ऐसे में अगर इसका सही इस्तेमाल किया जाए, तो किसानों का काम काफी आसान हो सकता है.

क्या फायदा हुआ?
ऐसे में इजरायल से आने के बाद बालाजी ने भी अपने खेत में ऑटोमेशन मशीन लगाई और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू कर दिया. उस टेक्नोलॉजी की वजह से अब बालाजी को खेत में ज्यादा लोगों को काम पर नहीं रखना पड़ता है. जो काम पहले पांच लोग मिलकर करते थे, अब आसानी से दो लोग कर पाते हैं.
ऐसे में समय और पैसे दोनों की बचत होने लगी है. वहीं बालाजी को पूरी उम्मीद है कि इस साल प्रति एकड़ 80 से 85 टन गन्ने का उत्पादन हो सकता है. ऐसे में वे भी सभी दूसरे किसानों से जोर देकर कह रहे हैं कि अगर तकनीक का सही इस्तेमाल किया जाए, तो खेती भी मुनाफे का जरिया बन सकती है.
रोहिदास हातागले की रिपोर्ट