प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑस्ट्रेलिया के दौरे के बीच ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत का एक ओपनियन पीस चर्चा में है. पूर्व राजदूत ने आगाह करते हुए कहा है कि ऑस्ट्रेलिया को भारत से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें नहीं करनी चाहिए वरना चीन और इंडोनेशिया की तरह बाद में निराशा हाथ लगेगी.
अंग्रेजी वेबसाइट 'फाइनेंशियल रिव्यू' में पूर्व ऑस्ट्रेलियाई राजदूत जॉन मैक्कार्थी ने लिखा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में काफी तेजी आई. ऑस्ट्रेलिया ने उत्साह में आकर बड़े देशों के साथ संबंध जोड़ने की कोशिश की लेकिन बाद में निराशा हुई.
उन्होंने लिखा, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. 60 से 80 के दशक के बीच आर्थिक दृष्टिकोण से हमारे लिए जापान फोकस में था. फिर जापान की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई. हमने जापान जाना बंद कर दिया. फिर हाल के वर्षों में बदलते सुरक्षा परिवेश के कारण फिर से जापान से रिश्तों में गर्मजोशी आई है.
सतर्क रहने की जरूरतः मैक्कार्थी
मैक्कार्थी ने आगे कहा कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री पॉल कीटिंग ने इंडोनेशिया से हाथ मिलाया. इसके बाद इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर पर हमला कर कब्जा कर लिया. इसके बाद रिश्ते सामान्य होने में वर्षों लग गए. हम यह भी जानते हैं कि चीन के साथ बेहतर संबंध बनाने से क्या हुआ. इन सभी चीजों को देखते हुए हम भारत से क्या उम्मीद कर रहे हैं, इस बारे में हमें सतर्क रहना चाहिए.
उन्होंने लिखा है, "यह सच है कि पिछले दो दशकों में भारत का कद ऊंचा हुआ है और ऑस्ट्रेलिया ने इसे अहमियत दी है. लगभग 1.4 अरब आबादी के साथ भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. लोगों की खरीदने की क्षमता की बात करें तो भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था है. यह संभव है कि जल्द ही भारत हर लिहाज से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए. भारत में हमारे चार ऑफिस हैं. ऑस्ट्रेलिया आने वाले प्रवासियों में सबसे ज्यादा भारतीय होते हैं. भारत हमारे लिए चौथा सबसे बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन है. दोनों देशों के बीच शिक्षा सहयोग बढ़ रहा है. सब अच्छा है."
"लेकिन यूक्रेन मुद्दे पर रूस का विरोध करने से इनकार करने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी देशों में भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण को अपने जैसा देखने की आदत है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण से एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि आज दक्षिण एशियाई मूल के लोग पूरी तरह से या आंशिक रूप से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के कई महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं. समय के साथ ऑस्ट्रेलिया में भी एक दिन ऐसा ही होगा."
From productive talks with PM @AlboMP to a historic community programme, from meeting business leaders to eminent Australians from different walks of life, it’s been an important visit which will boost the friendship between 🇮🇳 and 🇦🇺. pic.twitter.com/5OdCl7eaPS
— Narendra Modi (@narendramodi) May 24, 2023
भारत हमारे वैश्विक दृष्टिकोण को नहीं करता साझाः एशले टेलिस
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत ने भारतीय मूल के एक अमेरिकन एकेडमिक एशले टेलिस के हाल ही में छपे आर्टिकल “America’s Bad Bet on India” का हवाला दिया है. इस लेख में टेलिस ने कहा है कि भारत कभी भी चीन और अमेरिकी टकराव में खुद को शामिल नहीं करेगा, जब तक कि उसकी खुद की सुरक्षा खतरे में ना पड़ जाए. यह उस नीति का हिस्सा है जिसका लक्ष्य है कि भारत वही करेगा जो उसके लिए सबसे अच्छा है.
पूर्व राजदूत ने लिखा, टेलिस का यह तर्क इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि 2008 में जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील हुई थी. टेलिस इस डील में अहम भूमिका में थे. यह जानते हुए कि भारत पहले से ही परमाणु संपन्न देश है और वह न्यूक्लियर प्रोलिफेरेशन ट्रिटी (Nuclear Non-Proliferation Treaty) का सिग्नेटेरी भी नहीं है. इसके बावजूद अमेरिका भारत के परमाणु विकास में सहायता करने के लिए सहमत हो गया.
यह डील अमेरिका और भारत के सुरक्षा संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इस डील ने एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहे भारत को और बढ़ावा दिया. अमेरिका को लगता है कि भारत उसे चीन से निपटने में मदद करेगा. लेकिन भारत का अपना हित सर्वोपरि है. इसलिए हमें भी भारत से यथार्थवादी अपेक्षाएं ही रखनी चाहिए, न कि अपनी उम्मीदों के मुताबिक चीजों को देखना चाहिए. हमें जमीनी हकीकत को समझते हुए भारत के साथ पेश आना चाहिए.

मल्टीपोलर वर्ल्ड में शक्तिशाली ध्रुव बनने की भारत की कोशिशः एडवर्ड लुस
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत ने टेलिस के बाद एडवर्ड लुस के लेख का भी जिक्र किया है. रूस और भारत के बीच जब न्यूक्लियर डील हो रही थी, उस वक्त एडवर्ड लुस फाइनेंशियल टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो चीफ थे. एडवर्ड लुस का कहना है कि भारत खुद को अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक ताकत के रूप में देखता है. मल्टीपोलर वर्ल्ड में भारत एक शक्तिशाली ध्रुव बनने की ख्वाहिश रखता है. भारत रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत का पालन करता है. भारत के लिए यह मायने रखता है कि उसके लिए अच्छा क्या है. न कि पार्टनर कंट्री या कोई और देश क्या चाहते हैं.
भारत शंघाई कॉ-ऑपरेशन संगठन का भी सदस्य है. इसे चीन ने इनिशिएट किया था. इसके अलावा, भारत कभी भी पश्चिमी देशों की लिबरल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थक नहीं रहा. भारत अलग-अलग लेकिन मुख्यतः ग्लोबल साउथ और विकासशील दुनिया का नेता है. यूक्रेन युद्ध में भारत ने पश्चिमी देशों के दबाव के बाद रूस से दूरी तो बनाई, लेकिन वह रूस पर किसी भी तरह से प्रतिबंध लगाने से इनकार करता है.
अमेरिका से भारत का संबंध जापान-ऑस्ट्रेलिया से अलग
ऑस्ट्रेलियाई राजदूत जॉन मैक्कार्थी का मानना है कि अमेरिका और भारत की चीन को काउंटर करने वाली रणनीति भी उस तरह की रणनीति नहीं है, जिस तरह से एक पार्टनर देशों के बीच होती है. भारत आपसी दायित्व के तहत काम नहीं करता है. भारत को लगता है कि दूसरे देश उसकी सहायता के लिए नहीं आएंगे. इसलिए वह भी किसी अन्य देशों के युद्ध में शामिल नहीं होगा.
इसी तरह क्वाड में भी भारत की अंतर्निहित सीमाएं हैं. यहां तक कि क्वाड में भी भारत चीन के खिलाफ नरम रुख का समर्थन करता है. क्योंकि जापान और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में अमेरिका के साथ भारत का संबंध काफी अलग है. क्वाड चार देशों का संगठन है. इसके सदस्य देश भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है. इसे एशिया का 'नाटो' भी कहा जाता है.

भारत से यथार्थवादी अपेक्षाएं ही रखनी चाहिएः मैक्कार्थी
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई राजदूत ने आगे लिखा है कि नरेंद्र मोदी के भारत का लोकतंत्र अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के लोकतांत्रिक मूल्यों से अलग है. भारत में चुनाव आम तौर पर निष्पक्ष होते हैं. मोदी के प्रभुत्व के सामने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और क्षेत्रीय दल मजबूती से चुनाव भी लड़ते हैं. लेकिन मोदी एक हिंदू वर्चस्ववादी नेता हैं. कुछ लोगों के लिए भारत एक अनुदार लोकतंत्र है तो कुछ लोगों के लिए चुनावी निरंकुशता (electoral autocracy). लेकिन यह निश्चित है कि नरेंद्र मोदी का भारत एक उदार लोकतांत्रिक देश नहीं है.
मैक्कार्थी ने आगे लिखा है कि हमारे हित तय करते हैं कि हम भारत के साथ संबंध पूरी एनर्जी और धैर्य के साथ आगे बढ़ाएं, लेकिन हमें भारत से यथार्थवादी अपेक्षाएं ही रखनी चाहिए. भारत से हमें वैसा ही संबंध रखना चाहिए जैसा वह है, न कि जैसा हम देखना चाहते हैं. यदि हम ऐसा हम करते हैं, तो उस निराशा से बचेंगे जो हमने पहले अनुभव की है.
अमेरिकी राजदूत ने की पीएम मोदी की तारीफ
हालांकि, भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की है. पीएम मोदी की आगामी अमेरिकी दौरे पर टिप्पणी करते हुए गार्सेटी ने कहा है, "मोदी सरकार ने भविष्य के लिए एक लचीली अर्थव्यवस्था बनाने के प्रयासों को साझा किया है. पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत अद्भभुत हाथों में है."
ऑस्ट्रेलिया के अलावा, अमेरिका भी क्वाड का हिस्सा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाएंगे. जी-7 समिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पीएम मोदी से कहा था कि अमेरिका में बड़ी संख्या में लोग आपसे मिलना चाहते हैं.