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सीरिया में असद फैमिली का उदय, पनपता आक्रोश और अरब स्प्रिंग... जानें 54 साल की तानाशाही की कहानी

Syria Civil War: सीरिया में तख्तापलट के बाद बशर अल-असद और उनका परिवार रूस के मॉस्को में शरण लिए हुए है. वहीं दूसरी तरफ रविवार को दश्मिक पर कब्ज़ा करने के बाद अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की है. आइए बशर अल-असद की बर्बादी की कहानी जानते हैं.

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सीरिया में तख्तापलट के बाद बशर अल-असद और उनका परिवार रूस के मॉस्को में शरण लिए हुए है.
सीरिया में तख्तापलट के बाद बशर अल-असद और उनका परिवार रूस के मॉस्को में शरण लिए हुए है.

सीरिया के अंदर ही एक स्कूल की दीवार पर 14 साल के एक बच्चे ने एक लाइन लिखी थी. अरबी में लिखी उस लाइन का मतलब है, ''अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर...'' लंदन से आंखों की डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले सीरिया के कल तक राष्ट्रपति रहे बशर-अल-असद को लोग डॉक्टर के नाम से भी बुलाते थे. 14 साल के एक स्कूली बच्चे ने 54 साल की तानाशाही हुकुमत को कैसे मिट्टी में मिला दिया? कैसे रूस का साथ होने के बावजूद बशर-अल-असद को सीरिया छोड़कर उसी रूस में पनाह लेनी पड़ी? इन सवालों के जवाब जानने के लिए और पूरी कहानी समझने के लिए 54 साल पीछे जाना पड़ेगा.

बात 13 नवंबर 1970 की है. हाफिज अल असद सीरियाई एयरफोर्स के चीफ थे. सेना में उनकी अच्छी पकड़ थी. इसी का फायदा उठाते हुए 13 नवंबर 1970 को हाफिज असद ने तब की सरकार को गिरा कर तख्तापलट करते हुए खुद को सीरिया का राष्ट्रपति डिक्लेयर कर दिया. हालांकि तब लोगों को उम्मीद नहीं थी की हाफिज ज्यादा दिनों तक तानाशाह रह पाएंगे. उसकी वजह ये थी की सीरिया शुरू से सुन्नियों की आबादी वाला देश रहा है. सीरिया में सुन्नियों की आबादी करीब 74 फीसदी है. जबकि शियाओं की आबादी 16 फीसदी है. हाफिज असद शिया थे. उन्हें भी पता था कि सुन्नी कभी भी विरोध कर सकते हैं.

इसलिए तख्तापलट करने के बाद से ही हाफिज असद ने सुन्नियों को कुचलना शुरू कर दिया. उन पर शुरू से ही संविधान से लेकर नौकरी, सेना और दूसरी पॉलिसी में शियाओं को फेवर देने के इल्जाम लगे. लेकिन फौज पर मजबूत पकड़ होने की वजह से उनकी सत्ता बनी रही. करीब 30 साल तक सीरिया पर हुकुमत करने के बाद साल 2000 में हाफिज अल असद की मौत हो गई. उनके बाद उनके बेटे बशीर अल असद बतौर राष्ट्रपति सीरिया की गद्दी पर बैठ गए. अगले 10 सालों तक पिता की पॉलिसी और हथकंडों के चलते बशर अल असद भी हर विरोध को दबाते रहे. बाप-बेटे ने मिलकर विपक्ष खत्म कर दिया था.

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उस वक्त एक साथ दो चीजें होती हैं. साल 2006 से 2010 तक सीरिया में कम बारिश की वजह से सूखा पड़ जाता है. लोग भूखे मरने लगते हैं. उन्हें लगता है कि तानाशाही ना होती तो शायद उनकी जिंदगी बेहतर होती. पहली बार दबी जुबान बशर के खिलाफ लोगों के दिलों में गुस्सा फूटने लगता है. इत्तेफाक से ठीक इसी वक्त अरब में भी एक आंदोलन शुरू हो चुका था. अरब स्प्रिंग नाम से मशहूर ये आंदोलन उन देशों में शुरू हुआ, जहां लंबे वक्त से तानाशाही थी. देखते ही देखते ट्यूनीशिया, लीबिया, इजिप्ट, लेबनान, जॉर्डन में लोग सड़कों पर उतर आए. इसका नतीजा दुनिया के लिए हैरान करने वाला था. 

14 साल के एक बच्चे ने दीवार लिखा... अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर!

ये हुआ कि 23 साल से ट्यूनीशिया की सत्ता पर काबिज बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा. लीबिया में कर्नल गद्दाफी को जनता ने मार दिया. 30 साल तक इजिप्ट के तानाशाह रहे हुस्नी मुबारक को भी देश छोड़कर भागना पड़ा. अब चूंकि ये सब कुछ सीरिया के इर्द-गिर्द हो रहा था. इसलिए पहली बार बशर अल असद को भी इस खतरे का अहसास हुआ. उनको लगा कि सीरिया में भी लोग बगावत ना कर दें. असद डरे हुए थे. उसी वक्त उन्होंने अपनी सेना को ये हुक्म दिया कि पूरे सीरिया में पैनी नजर रखी जाए. जो भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाए उसे कुचल दिया जाए. तब तक सीरिया शांत था.

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साल 2010 खत्म होते होते असद को लगा कि अब सब कुछ ठीक है, लेकिन तभी 14 साल का एक बच्चा वो कर जाता है कि 13 साल बाद बशर अल असद को सीरिया छोड़कर भागना पड़ता है. जी हां, 14 साल के एक बच्चे ने 54 साल की एक पूरी सरकार को नेस्तनाबूत करके रख दिया. 26 फरवरी 2011 को उत्तरी सीरियाके दारा में 14 साल का एक बच्चा मुआविया सियासने अपने स्कूल की दीवार पर एक लाइन लिखता है, ''अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर...'' चूंकी बशर अल असद को उनके करीबी डॉक्टर भी बुलाते थे, इसलिए दारा शहर में जिसने भी ये लाइन पढ़ी वो इसका मतलब समझ चुका था.

Syria Civil War

सीरिया की तानाशाही सरकार ने बच्चे के साथ ऐसे की दरिंदगी

असल में अरब देशों के कई तानाशाहों के खात्मे के बाद इस लाइन का साफ-साफ मतलब यही थी कि अब बारी बशर अल असद सरकार की है. जैसे ही दारा के लोगों ने दीवार पर ये लाइन पढ़ी सभी डर गए. मुआविया के पिता ने तो अपने बेटे को ही छुपा दिया. लेकिन दारा के सिक्योरिटी चीफ को दीवार पर लिखे इस लाइन के बारे में जानकारी मिल गई. अगले ही दिन यानि 27 फरवरी 2011 को स्कूल के कुल 15 बच्चों को असद की फोर्सेस ने उठा लिया. इनमें मुआविया भी था. इसके बाद इन बच्चों पर जो जुल्म ढाए गए उसकी कोई इंतिहा नहीं. उनके नाखून नोच दिए गए. पानी से भिगा कर करंट दिए गए.

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उन बच्चों को उल्टा लटकाया गया. इन बच्चों की रिहाई की मांग को लेकर दारा के लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किया. लेकिन बच्चों को नहीं छोड़ा गया. उल्टे असद की सेना ने बच्चों के मां-बाप से एलानिय ये कह दिया कि अपने अपने बच्चों को भूल जाओ. दूसरे बच्चे पैदा करो और नहीं कर सकते तो अपनी अपनी औरतों को हमारे पास छोड़ जाओ. बच्चों पर हो रहे जुल्म, दीवार पर लिखी वो लाइनें, दारा से निकलकर सीरिया के अलग-अलग शहरों में भी पहुंच चुकी थी. चू्ंकि बच्चे छोटे थे इसलिए हर एक को हमदर्दी थी. फिर क्या था देखते ही देखते पूरे सीरिया में विरोध प्रदर्शन शुरु हो गया. जो कि बहुत जल्द बड़ा होता गया.

बच्चों पर जुल्म के बाद सड़कों पर निकले लोगों ने किया प्रदर्शन

बशर अल असद को तब पहली बार अहसास हुआ कि इस विरोध प्रदर्शन को रोकना जरूरी है. आखिरकार पूरे 45 दिन बाद अप्रैल 2011 में सभी बच्चों को छोड़ दिया गया. लेकिन यहीं से कहानी पलट जाती है. जब बच्चे बाहर आते हैं तब उनके साथ उन पर ढाए गए जुल्मों की कहानियां भी सामने आती हैं. आंदोलन रुकने की बजाय अब और तेज हो जाता है. बच्चों की रिहाई के बाद अगले जुमा को ही यानि 22 अप्रैल 2011 को दारा की एक मस्जिद में नमाज के बाद खुलकर असद के खिलाफ नारेबाजी शुरु हो जाती है. इसके बाद फोर्स मौके पर पहुंचती है. गोलियां चलती हैं. दो लोग मारे जाते हैं. यहां से मामला ज्यादा भड़क जाता है.

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दोनों लोगों के जनाजे के साथ लोग सड़कों पर उतर आते हैं. फिर हिंसा होती है. इस बार इस आंदोलन को कुचलने के लिए असद सरकार अपने ही लोगों को कुचलने के लिए सड़कों पर टैंक उतार देती है. आसमान में हेलीकॉप्टर से गोलियां बरसाई जाती हैं. ये पहली बार था जब सीरिया में एक साथ दर्जनों लोग मारे जाते हैं. दारा की कहानी अब सीरिया के शहर शहर की कहानी बन चुकी थी. अब हर शहर में हिंसा शुरु हो जाती है. सीरिया के लोग असद की सेना की गोलियों का समाना डंडों और पत्थरों से कर रहे थे. हर दिन लाशों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी. अब हालात ऐसे हो गए की असद की सेना में भी बगावत शुरू होने लगी.

Syrian rebels

ऐसे बढ़ता गया विद्रोहियों का कुनबा, सीरियाई सेना ने दिया साथ

बहुत से सैनिक सरकार का साथ छोड़कर आम लोगों से जा मिले. असद के ऐसे ही सैनिकों को अपने साथ लेकर सीरिया की जनता ने सेना का मुकाबला करने के लिए अपनी सेना बनाने का फैसला किया. आखिरकार 29 जुलाई 2011 को फ्री सीरियन आर्मी की बुनियाद रखी गई. इसमें ऐसे हजारों अलग अलग छोटे छोटे गुट आ मिले जो असद के खिलाफ थे. सीरिया के पड़ोसी सुन्नी देशों ने भी फ्री सीरियन आर्मा की मदद करनी शुरू कर दी. ये वही दौर था जब बहती गंगा में बगदादी ने भी हाथ साफ करने की ठानी थी. बगदादी की आईएसआई भी फ्री सीरियन आर्मी की मदद के लिए ईराक से सीरिया पहुंच जाती है. 

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अभी तक जो आईएसआई यानि इस्लामिक स्टेर ऑफ ईराक था वो अब ISIS यानि इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड सीरिया बन जाता है. सीरिया में एक बड़ी आबाद कुर्द की भी है. खासकर नॉर्थ ईस्ट सीरिया में. फ्री सीरियन आर्मी की तर्ज पर अब कुर्द ने भी असद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. असल में कुर्दों की मांग एक अलग देश कुर्दिस्तान की थी. यानि अब सूरत-ए-हाल कुछ यूं था कि सीरिया के अंदर एक साथ चार मोर्चा खुला हुआ था. एक असद की सरकार का. एक बगदादी की आईएसआई का. फ्री सीरियन आर्मी की और कुर्द फोर्स का. अब सीरिया सचमुच गृह युद्ध की आग में झुलस रहा था. 

इस तरह हुआ तख्तापलट, देश से भागने पर मजबूर हुए राष्ट्रपति

देखते ही देखते अब बाहरी मुल्क भी अपने अपने फायदे के लिए सीरिया के अखाड़े में कूदने लगते हैं. कई अरब देश सीधे फ्री सीरियन आर्मी की मदद के लिए आगे आ जाते हैं. वजह ये थी कि वो सीरिया में सुन्नियों को सपोर्ट करना चाहते थे. ये देख ईरान भी कूद पड़ता है. लेकिन असद के विरोधियों का साथ देने के लिए नहीं बल्कि असद सरकार को बचाने के लिए, क्योंकि ईरान शियाओं का सबसे बड़ा देश है. उधर रूस को इस इलाके में एक दोस्त चाहिए था. पुतिन को असद के रूप में एक दोस्त नजर आया, तो रूस भी असद का ढाल बनकर सामने आ गया. अब जहां रूस होगा तो उसके खिलाफ अमेरिका को तो आना ही था.

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Syria Civil War

अमेरिका भी सीरिया में असद सरकार के खिलाफ कूद पड़ा. कुल मिलाकर सीरिया अब एक अखाड़ा बन चुका था. अब भी किसी तरह असद अपनी सरकार बचाए हुए थे. पर सीरियाई सेना के खिलाफ अब भी लड़ाई जारी थी, फिर हुआ यूं कि असद जिस ईरान और पुतिन के भरोसे बैठे थे. उन दोनों देशों की कहानी भी थोड़ी सी बदल चुकी थी. पुतिन के रूस का सारा ध्यान यूक्रेन में जंग की तरफ था. इधर पिछले 6 महीने से ईरान भी हिज्बुल्लाह के चक्कर में इजरायल से उलझा पड़ा है. ऐसे वक्त में पुतिन और ईरान दोनों ने ही असद की और मदद करने से मजबूरी जता दी. फिर क्या था असद को अपने अंजाम का अहसास हो चुका था.

11 दिन पहले सीरिया में फिर से विद्रोह ने जोर पकड़ा. सीरियाई सैनिक चौकी, पोस्ट छोड़-छोड़ कर भागने लगे. देखते ही देखते इन्हीं 11 दिनों में असद के हाथों से सीरिया की राजधानी दमिश्क समेत 5 बड़े शहर अलेप्पो, हमा, होम्स और वो दारा भी निकल गया जहां से इस क्रांति की शुरुआत हुई थी. 8 दिसंबर को बशर-अल-असद सीरिया पर 20 साल हुकुमत करने के बाद बड़ी खामोशी से दमिश्क से एक प्लेन में बैठते हैं और चुपचाप मॉस्को में उतर जाते हैं. पुतिन ने अब भी अपनी दोस्ती निभाई. असद को अपने घर में पनाह दिया है. करीब 2 करोड़ी की आबादी वाले सीरिया में पिछले 13 सालों में 5 लाख से ज्यादा लोगों की जाने गईं.

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