
पूरे यूरोप में अमेरिका और यूक्रेन के बीच बढ़े तनाव का असर साफ देखा जा रहा है. अमेरिका को लगता है कि रूस फरवरी में यूक्रेन पर हमला करने जा रहा है. करीब एक लाख रूसी सैनिक पिछले एक हफ्ते से यूक्रेन की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं. अमेरिकी मिलिट्री एक्सपर्ट की मानें तो रूस सर्द मौसम को देखते हुए यूक्रेन के इर्द-गिर्द बर्फ पिघलने का इंतजार कर रहा है. ताकि हैवी जंगी सामान तब वो आसानी से पहुंचा सके. तो क्या अमेरिका की आशंका सही है? क्या फरवरी में रूस यूक्रेन पर हमला करेगा? क्या रूस और यूक्रेन के बीच संभावित जंग रुक सकती है? अगर हां तो कैसे? आज आपको बताते हैं कि इस संभावित जंग की असली वजह क्या है और ये जंग किस तरह टल सकती है.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का एक बयान है कि इस बात की पूरी संभावना है कि रूस अगले महीने यूक्रेन पर हमला कर सकता है. व्हाइट हाउस की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल प्रवक्ता एमिली हॉर्न ने कहा है कि गुरुवार को बाइडन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोल्मिर ज़ेलेन्स्की को फोन कर सीधे सीधे ये बात कही है. बाइडन ने कहा है कि रूस फरवरी में यूक्रेन पर हमला कर सकता है और हम लोग महीनों से इस खतरे को लेकर यूक्रेन को आगाह कर रहे हैं. तो क्या अमेरिका की आशंका सही है? क्या फरवरी में रूस यूक्रेन पर हमला करेगा? क्या रूस और यूक्रेन के बीच संभावित जंग रुक सकती है? अगर हां तो कैसे?

सबसे पहले ये जानते हैं कि संभावित जंग की असली वजह क्या है और ये जंग किस तरह टल सकती है. दरअसल, इन दोनों ही वजह की जड़ में एक ही चीज है, और वो है गैस. ये बात किसी से छुपी नहीं है कि हाल के वक्त में चाहे इराक़ हो ईरान सीरिया या कतर... लड़ाई की जड़ में असली चीज तेल या गैस ही रही है. रूस और यूक्रेन के बीच मौजूदा जंग की सुगबुगाहट में भी गैस ही है.
2014 से पहले तक सबकुछ ठीक था. 2014 में पहली बार यूक्रेन में सत्ता बदलती है. लोगों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए तब के राष्ट्रपति को कुर्सी छोड़कर जान बचाने के लिए देश से भागना पड़ता है. इसके बाद देश में एक नई सरकार आती है. 1991 में सोवियत संघ से आज़ाद होने के बाद ये पहला मौका था कि जब यूक्रेन में रूस विरोधी सरकार आई थी. इसी गुस्से में रूस ने 2014 में ही यूक्रेन पर हमला बोला और क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. इसके बाद हालात और बिगड़ने शुरू हो गए.
दरअसल 2014 तक रूस पाइप लाइन के जरिए गैस सीधे यूरोप तक भेजता था. जिन देशों से होकर ये पाइपलाइन गुज़रती थी, रूस को उस देश को ट्रांजिट फीस देनी पड़ती थी और इन्हीं में से एक देश था यूक्रेन. गैजप्रॉम कंपनी की गैस पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुज़रती है और इसके लिए रूस को हर साल क़रीब 33 बिलियन डॉलर ट्रांजिट फीस के ज़रिए यूक्रेन को देनी पड़ती थी. ये यूक्रेन के सालाना बजट का क़रीब 4 फीसदी है. मगर 2014 के बाद यूक्रेन के साथ रिश्ता खराब होते ही यूक्रेन को सबक सिखाने के लिए रूस ने एक नया तरीका आजमाया. उसने तय किया कि वो यूरोप तक नई गैस पाइपलाइन बिछाएगा और इस बार ये पाइपलाइन यूक्रेन से होकर नहीं गुजरेगी. इससे यूक्रेन आर्थिक तौर पर कमजोर हो जाएगा.
इसी के बाद रूस ने नॉर्ड स्ट्रीम -2 गैसपाइप लाइन की शुरूआत की. ये रूस की एक बेहद महत्वाकांक्षी और खर्चीली परियोजना थी. इस योजना के तहत वेस्टर्न रूस से नॉर्थ ईस्टर्न जर्मनी तक बाल्टिक महासागर के रास्ते 1200 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन बिछाई गई. इसकी क़ीमत क़रीब 10 बिलियन डॉलर है. इस पाइपलाइन के ज़रिए रूस अब सीधे यूक्रेन को बाइपास कर जर्मनी तक अपनी गैस भेज सकता है. जर्मनी में नेचुरल गैस की सख्त ज़रूरत है और रूस ने उसे सस्ते दामों पर गैस देने का समझौता किया है. कहते हैं कि इस नई पाइप लाइन के ज़रिए रूस हर साल जर्मनी को 55 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई करेगा. नई गैस पाइप लाइन बनकर पूरी तरह से तैयार हो चुकी है. रूसी सरकारी कंपनी गैज़प्रॉम अब बस यूरोपियन रेगुलेटर्स की मंजूरी का इंतजार कर रही है. मंजूरी मिलते ही गैस की सप्लाई शुरू हो जाएगी.

जर्मनी रूस का सबसे बड़ा तेल और गैस का खरीददार है, हालांकि जर्मनी के अलावा पूरे यूरोप में रूसी गैस और तेल की सप्लाई होती है. वहीं जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और लगभग पूरा यूरोप ही तेल और गैस के लिए रूस पर निर्भर है. अभी तक रूस की ये सप्लाई लाइन यूक्रेन से होकर गुजरती है. दो साल पहले हुए एक समझौते के मुताबिक, यूक्रेन को इसके ऐवज में 2024 तक हर साल 7 अरब डॉलर मिलने थे. रूस, यूरोप और खासकर जर्मनी को होने वाली सप्लाई का करीब 40 फीसद हिस्सा इसी पाइपलाइन से भेजता है. रूस की गैस और प्राकृतिक गैस पाइप लाइन करीब 53 हजार किमी लंबी है. रूस के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि उसकी पाइपलाइन काफी पुरानी और जर्जर हो चुकी हैं, जिसकी वजह से उसको नुकसान उठाना पड़ता है. इन जर्जर लाइन में अक्सर गैस और तेल रिसाव की घटनाएं सामने आती हैं, जो उसके लिए बड़ी समस्या बन जाती हैं. इस समस्या से निजात पाने के लिए रूस ने नॉर्ड स्ट्रीम-2 की शुरुआत की थी. बस इसी नई गैस पाइप लाइन ने यूक्रेन के इस नए विवाद को जन्म दे दिया है. एक ऐसा विवाद जिसमें एक तरफ यूरोप है तो दूसरी तरफ अमेरिका. रूस की इस गैस पाइपलाइन से किसे क्या दिक्कत है ये भी समझ लीजिए.
यूक्रेन खुद को बाइपास किए जाने से ज़ाहिर है नाराज होगा, क्योंकि अब तक ट्रांजिट फीस के तौर पर सालाना जो 33 बिलियन डॉलर रूस उसे देता था अब नहीं मिलेगा. यूक्रेन का कहना है कि रूस ने उसे जानबूझ कर बाइपास किया है, ताकि आर्थिक रूप से उसे कमजोर कर सके, इसीलिए यूक्रेन नॉर्ड स्ट्रीम -2 पाइप लाइन को शुरू किए जाने के ख़िलाफ है. वो चाहता है कि इस रोक लग जाए. पोलेंड भी इसीलिए इसका विरोध कर रहा है क्योंकि रूस ने उसे भी बाइपास कर दिया.
अब सवाल ये है कि अमेरिका को इससे क्या दिक्कत है?
अमेरिका की परेशानी की दो वजह है. पहली अब तक अमेरिका जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों को गैस की सप्लाई किया करता था. क़ीमत ज़्यादा थी. रूस ने जर्मनी के साथ जो समझौता किया है उसमें गैस की क़ीमत अमेरिका से कहीं कम है. ज़ाहिर है इससे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होगा. अमेरिकी की दूसरी परेशानी ये है कि ये नई गैस पाइपलाइन पूरे यूरोप को ऊर्जा के मामले में रूस पर निर्भर कर देगी. इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और ज्यादा ताकतवर बनकर उभरेंगे, इसीलिए अमेरिका भी लगातार इस नई पाइप लाइन का विरोध करता रहा है.
नार्ड स्ट्रीम रूस और जर्मनी के बीच समुद्र के नीचे से सीधी जाने वाली पाइपलाइन है. इसके जरिए रूस ज्यादा तेजी और अधिक मात्रा में अपनी गैस और तेल आपूर्ति कर सकेगा. ये पाइप लाइन बाल्टिक सागर से होकर गुजरेगी. इसको लेकर जहां जर्मनी और रूस काफी उत्साहित हैं, वहीं यूक्रेन और अमेरिका इस पाइप लाइन का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं. यूक्रेन को डर है कि ये पाइपलाइन के बन जाने से उसको जो कमाई होती है वो बंद हो जाएगी जो उसके लिए आर्थिक तौर पर नुकसानदेह साबित होगी. वहीं, अमेरिका की मंशा जर्मनी समेत यूरोप को अपनी गैस और तेल बेचने की है. ऐसे में नॉर्ड स्ट्रीम-2 से उसकी मंशा पर पानी फिर सकता है.

अमेरिका यूरोप पर इसका विरोध करने को लेकर दबाव भी बना रहा है. इतना ही नहीं, जर्मनी के लिए भी अमेरिका इसको एक खराब सौदा बता रहा है. फ्रांस और पोलैंड समेत कुछ दूसरे यूरोपीय देश मानते हैं कि नॉर्ड स्ट्रीम-2 से जहां गैस का पारंपरिक ट्रांजिट रूट कमजोर होगा वहीं इससे रूस पर यूरोप की निर्भरता बढ़ जाएगी.
जर्मनी यूक्रेन पर रूस के किसी भी संभावित हमले के तो खिलाफ है लेकिन वो रूस के साथ गैस की डील से पीछे भी नहीं हटना चाहता. जर्मनी को ऊर्जा के लिए पाइप लाइन गैस की सख्त ज़रूरत है. रूस की मदद से जर्मनी 26 मिलियन जर्मन घरों में ऊर्जा पहुंचाएगा, वो भी सस्ती क़ीमत पर.
अमेरिका और यूरोप को इस बात का अच्छी तरह से अहसास है कि पुतिन के लिए ये नई गैस पाइपलाइन परियोजना बेहद अहम है, इसीलिए यूक्रेन पर हमले से रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप के देश रूस को ये धमकी दे रहे हैं कि अगर उसने ऐसा कुछ किया तो इस गैस पाइपलाइन पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी. यूरोपीय देश और यहां तक कि जर्मनी भी रूस से गैस नहीं खरीदेगा. खुद जर्मनी ने कहा है कि अगर रूस पर ऐसा कोई सेंक्शन लगता है तो जर्मनी को इससे आर्थिक नुकसान होगा, लेकिन वो फिर भी नेटो के फैसले के साथ ही जाएगा.

जंग आखिर कैसे टल सकती है?
पश्चिमी देशों ने भी यूक्रेन पर हमला करने से रोकने के लिए रूस को यही धमकी दी है कि ऐसा करने पर नॉर्ड स्ट्रीम-2 योजना ठप पड़ जाएगी. इससे रूस की अर्थ व्यवस्था भी हिल जाएगी. खुद रूस को भी इस बात का अंदाजा है. यानी जिस गैस पाइपलाइन ने रूस और यूक्रेन को जंग के मुहाने तक पहुंचा दिया शायद वही गैस पाइप लाइन इस जंग को टाल भी दे।
पश्चिमी देशों का डर है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच जंग हुई तो इसकी आग पूरे यूरोप में फैल सकती है. पश्चिमी देशों की खुफिया संस्थाओं का मानना है कि यूक्रेन की सीमा पर टैंकों और तोपों के साथ रूस के अभी एक लाख सैनिक तैनात हैं. मगर अमेरिका का मानना है कि जनवरी के आखिर तक रूसी सैनिकों की तादाद पौने दो लाख तक पहुंच जाएगी. अमेरिका और सहयोगी नाटो देश पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि यूक्रेन पर रूस के किसी भी हमले के गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे खतरनाक वक्त बता रहे हैं.
अमेरिका भले ही अपने सैनिकों को तैयार रहने का आदेश दे रहा हो. नाटो देश यूक्रेन को हथियार दे रहे हों, लेकिन हकीकत ये है कि रूस से सीधे टकराने को अमेरिका अभी तैयार नहीं है. बात सिर्फ तैयारी और खर्चे की भी नहीं है. बात तकनीकी भी है. दरअसल अमेरिका 30 देशों वाले नेटो सेना के गठबंधन का सरबराह है. मगर यूक्रेन फिलहाल नेटो का सदस्य देश नहीं है. ऐसे में रूस और यूक्रेन के बीच जंग होती है तो अमेरिका नेटो के नाम पर कम से कम रूस से जंग नहीं कर सकता. अलबत्ता बिना जंग लड़े नेटो देशों की मदद से वो रूस पर दबाव बनाने का काम कर सकता है. हालांकि एक तरफ रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की सीमा की घेरेबंद कर रखी है तो वहीं दूसरी तरफ ये भी कह रहा है कि उसका यूक्रेन पर हमले का कोई इरादा नहीं है. वहीं अमेरिका ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि जनवरी के आखिर या फरवरी में रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है. खुद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूसी सेना अपने देश में कहीं भी जाने के लिए आजाद है. अपनी सीमा के अंदर उनकी तैनाती पर किसी भी देश को सवाल नहीं उठाना चाहिए.