चीन की बढ़ती ताकत और विस्तारवादी रणनीति ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ाई है. इसी वजह से साल 2017 में QUAD का गठन किया गया था. इसमें अमेरिका के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान भी शामिल हैं. अब 24 सितंबर को उसी QUAD की बैठक होने वाली है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका हिस्सा बनने वाले हैं.
लेकिन एक बार फिर चीन ने अपना विरोध जाहिर कर दिया है. चीन को हमेशा से ही दर्द रहा है कि उसे QUAD का हिस्सा नहीं बनाया गया. वहीं उसने पूरी दुनिया के सामने ये भी दिखाने की कोशिश की है कि QUAD के जरिए उसके खिलाफ साजिश रची जाती है. अब जब फिर वो मीटिंग होने जा रही है तो चीन को मिर्ची लगी है.
QUAD की मीटिंग, चीन क्यों परेशान?
चीन ने साफ कर दिया है कि अगर किसी भी सहयोग के जरिए तीसरे देश को निशाना बनाने की कोशिश की जाएगी, तो वो पहल कभी सफल नहीं हो सकती. उसने आपसी विश्वास के मजबूत रहने पर जोर दिया है.
किसी भी सहयोग का मतलब ये नहीं होता कि तीसरी पार्टी को नुकसान पहुंचाया जाए. चीन ने हमेशा से ही ये माना है कि समझौता और सहयोग ऐसा रहना चाहिए जहां पर आपसी विश्वास हो, जहां पर हर स्थानीय देश के बीच बेहतरीन तालमेल रहे. सिर्फ किसी तीसरे देश को निशाना बनाने के लिए ऐसे समझौते नहीं होने चाहिए.
जोर देकर यहां तक कह दिया गया है कि QUAD का कोई भविष्य नहीं है. चीन के मुताबिक जहां पर सिर्फ तीसरे देश को नुकसान पहुंचाने की बातें होती हों, वो कभी सफल या लोकप्रिय नहीं हो सकता और उसका भविष्य भी अंधकार में ही रहता है.
चीन क्या तर्क दे रहा?
नसीहत दे दी गई है कि कोल्ड वॉर जैसी विचारधारा से सभी देशों को अब ऊपर उठ जाना चाहिए. लोगों के सपनों को समझने की जरूरत है, उनका सम्मान होना जरूरी है. क्षेत्रीय एकजुटता के जरिए ही हर देश को आगे बढ़कर काम करना चाहिए.
अब ये पहली बार नहीं है जब चीन ने QUAD पर निशाना साधा हो. जब 2017 में इसका गठन हुआ था, उस समय भी चीन ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी. लेकिन साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी ने QUAD की भूमिका और ज्यादा बढ़ा दी है. पूरी कोशिश है कि अहम समुद्री मार्गों को किसी भी दूसरे देश के प्रभाव से दूर रखा जाए. नाम तो किसी का नहीं लिया गया है, लेकिन इशारा चीन पर ही रहता है.