पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की जिंदगी में रोशन चांदनी चार दिन बाद अंधेरी रात में तब्दील हो सकती है. 28 मार्च को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. चार दिन बाद 31 मार्च को इस पर चर्चा होनी है. सोमवार को इमरान खान ने अपनी सरकार बचाने के लिए अपने सबसे बड़े प्रांत पंजाब के सीएम को हटा दिया है. ताकि, सहयोगी पीएमएल-क्यू को पंजाब के सीएम पद की गद्दी देकर अपनी पीएम पद की कुर्सी बचाई जा सके. आज ही विपक्ष के महागठबंधन पीडीएम ने शाहबाज शरीफ को अपना नेता भी चुन लिया है.
बता दें कि 342 सांसदों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सांसद चाहिए होते हैं. पूर्व में इमरान खान की सरकार के पास गठबंधन के साथियों के साथ 178 का समर्थन था. लेकिन अब कहा जा रहा है कि इसमें से 24 सांसद फिलहाल नाराज चल रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 50 सांसद भी साथ छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. विपक्ष का दावा है कि उन्हें 164 सांसदों का समर्थन है.
27 मार्च को इमरान ने इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में एक रैली की थी. इसमें उन्होंने कहा था कि विदेशी ताकतें उनकी सरकार गिराना चाहती हैं. इमरान ने कहा था कि पाकिस्तान में सरकार बदलने की कोशिश में विदेशी धन का इस्तेमाल किया जा रहा है. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये इमरान खान की आखिरी रैली साबित होगी?
बहुमत खोने के बाद से इमरान खान लगातार रैलियों के जरिए माहौल बनाने की कोशिश करते रहे. उन्हें लग रहा था कि शायद जनता उनके समर्थन में सड़कों पर निकल आएगी, लेकिन जब इस्लामाबाद में तमाम कोशिशों के बावजूद लोग नहीं आए तो इमरान ने आखिरी कोशिश के तहत चिट्ठी हवा में लहराते हुए विपक्षी दलों पर विदेशों से सांठगांठ के इल्जाम की बारिश कर दी.
अमेरिका को नहीं दिया भाव, बाइडेन से लिया पंगा
इमरान खान को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बिल्कुल भाव नहीं दिया. इससे चिढ़कर इमरान खुल्लम-खुल्ला अमेरिका का विरोध करने लगे. इमरान खान ने कभी अफगानिस्तान में हुई हार के बहाने अमेरिका पर निशाना साधा तो कभी चीन की तारीफ करके बाइडेन को नाराज किया. अमेरिका को चिढ़ाने के चक्कर में इमरान रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच पुतिन से हाथ मिलाने मॉस्को पहुंच गए. नतीजा ये हुआ कि अमेरिकी डॉलर पर चलने वाली पाकिस्तानी सेना इमरान से नाराज हो गई.
पाकिस्तान की सेना के लिए क्यों महत्वपूर्ण है अमेरिका?
पाकिस्तान भले ही चीन के रहमो-करम पर पलता हो, लेकिन पाकिस्तान के जनरल अब भी अमेरिका की गुलामी करते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि अमेरिका की दोस्ती से पाकिस्तान की सेना को हथियार, डॉलर और उनके बच्चों को पश्चिमी देशों में महफूज ठिकाना मिलता है. लेकिन इमरान ने इसे बाजवा से बदला लेने का हथियार बना लिया और भारत की आजाद विदेश नीति की खुलेआम तारीफ कर डाली. दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की विदेश नीति उसकी सेना संभालती है. इसीलिए अफगानिस्तान से बाहर निकलने वाला अमेरिका इमरान की जगह बाजवा के संपर्क में रहा. अब इमरान इशारों-इशारों में अमेरिका पर सरकार गिराने का इल्जाम लगा रहे हैं.
इमरान ने बिलावल-मरियम पर साधा निशाना
अपनी रैली में इमरान ने बिलावल भुट्टो पर भी निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि बिलावल लीडर बनना चाहते हैं, लेकिन आसिफ जरदारी को उसे नेता बनने से पहले थोड़ा बड़ा होने दें. मरियम नवाज का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि मरियम ने जिंदगी में एक घंटे भी काम नहीं किया. उसे 14 साल में उर्दू बोलनी नहीं आई, फिर भी वो नेता बनना चाहती हैं.
इमरान सरकार के खिलाफ हुई BAP
28 मार्च को इमरान खान की पार्टी को एक और झटका लगा. इमरान सरकार की सहयोगी रही बलूचिस्तान अवामी पार्टी यानी BAP ने अविश्वास प्रस्ताव पर इमरान के खिलाफ वोट देने का निर्णय लिया है. बीएपी के मुखिया ने कहा है कि वो इमरान सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष के साथ हैं.
5 साल क्यों नहीं टिक पाता कोई PM?
पाकिस्तान के बारे में मशहूर है कि वहां कोई भी प्रधानमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता. दरअसल, पहले साल वह यकीन कर पाता है कि वो अब विपक्ष में नहीं है. दूसरे साल वो छोटे-छोटे निर्णय लेने लगता है. लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रखता है कि सेना की दुम पर पांव न पड़े. तीसरे साल वो यकीन करने लगता है कि उसे किसी और ने नहीं बैठाया, बल्कि वो खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है, चौथे साल पाकिस्तानी पीएम इसी गुमान में सेना की दुम पर पैर रखने की जुर्रत कर बैठता है और सेना उसे फारिग कर देती है. इमरान खान भी बाकी पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों की तरह निकले और पांचवां साल में आते-आते भूतपूर्व होने की राह पर चल निकले.
किस तरह आर्मी से दूर होते गए इमरान खान?
2018 में प्रधानमंत्री बनने वाले इमरान खान दूसरे साल तक सेना प्रमुख जनरल बाजवा की गुडबुक में बने रहे. 2019 में उन्होंने बाजवा का कार्यकाल 3 साल के लिए बढ़ा दिया. लेकिन 2021 आते-आते इमरान खान को लगने लगा कि वो सेना से ऊपर हैं. इसी खुमारी में ISI चीफ फैज हमीद के ट्रांसफर को लेकर उनके बाजवा से संबंध बिगड़े. दरअसल, बाजवा ने ISI प्रमुख लेफ्टिनेंट जरनल फैज हमीद का तबादला कर दिया. इमरान खान इस फैसले से काफी नाराज हो गए. जबकि पाकिस्तान में सेना प्रमुख की सलाह पर ये फैसला होता रहा है. लेकिन इमरान वही पांचवें साल वाली गलती कर बैठे और उनकी सरकार के बुरे दिन शुरू हो गए. दरअसल पाकिस्तान की राजनीति में ISI चीफ का अहम रोल होता है. सरकार बनाने और बिगाड़ने में ISI का मुखिया खुलकर खेल खेलता है, इसीलिए इमरान चाहते थे कि ISI का अधिकारी उनके कंट्रोल में रहे, लेकिन इस कोशिश में वो बाजवा को खफा कर बैठे.
(आजतक ब्यूरो)