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आसिम मुनीर बादशाह जहांगीर, ट्रंप टॉमस रो...रेयर अर्थ मिनरल डील पर PAK में क्यों हो रही मुगलों और गुलामी की चर्चा?

पाकिस्तान अपने खनिज और बंदरगाह अमेरिका को सौंपकर इसे अपनी रणनीतिक जीत बता रहा है. लेकिन पाकिस्तान की कुछ राजनीतिक शक्तियां अपने हुक्मरानों को मुगल बादशाह जहांगीर की कहानी याद दिला रही हैं, जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को सूरत के पोर्ट से तिजारत करने की इजाजत दी थी. जिसका नतीजा 200 वर्षों बाद हिन्दुस्तान की गुलामी के रूप में सामने आया.

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अमेरिका के साथ पोर्ट और मिनरल डील पर पाकिस्तान में मुगल बादशाह जहांगीर की चर्चा. (Photo: AI generated/Gemini)
अमेरिका के साथ पोर्ट और मिनरल डील पर पाकिस्तान में मुगल बादशाह जहांगीर की चर्चा. (Photo: AI generated/Gemini)

अमेरिका के साथ रेयर अर्थ मिनरल डील को पाकिस्तान एक ऐसे सौदे के रूप में देख रहा है जो इस खस्ताहाल मुल्क का मुस्तकबिल बदल सकता है. पहले तो पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ आसिम मुनीर ब्रीफकेस में भरकर इन मिनरल्स का सैंपल राष्ट्रपति ट्रंप को व्हाइट हाउस में दिखा लाए. इसके बाद पाकिस्तान ने अब इन मिनरल्स की पहली खेप गुपचुप तरीके से अमेरिका को भेज दी है. 

अपने देश के कथित कीमती खनिजों को औने-पौने दामों पर अमेरिका को बेचना पाकिस्तान को बड़ी रणनीतिक कामयाबी लग रही है. लेकिन ऐसे समय में पाकिस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ ने इस डील पर सवाल उठाया है. 

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने कहा है कि पाकिस्तान सरकार को इस सीक्रेट डील के एग्रीमेंट को सार्वजनिक करने चाहिए. पीटीआई के सूचना सचिव शेख वक्कास अकरम ने कहा कि पाकिस्तान की अवाम और पाकिस्तान के हितों की कुर्बानी देकर किए गए इस समझौते को पीटीआई कभी स्वीकार नहीं करेगी. 

400 साल पुराने मुगल बादशाह के फैसले की चर्चा

उन्होंने पाकिस्तान की शहबाज सरकार को  400 साल पुराना एक उदाहरण देकर कहा कि कभी इसी तरह मुगल बादशाह जहांगीर ने अंग्रेजों के साथ तिजारत की इजाजत ईस्ट इंडिया कंपनी को दी थी. इसका नतीजा ये हुआ कि पूरा मुगल सल्तनत धीरे-धीरे अंग्रेजों के चंगुल में फंस गया और पूरा हिन्दुस्तान ही अंग्रेजों का गुलाम हो गया. इस डील को अंजाम दिया था सर टॉमस रो ने.

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टॉमस रो एक अंग्रेज राजनयिक और व्यापारी था. इस व्यक्ति को मुगल भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले आधिकारिक दूत के रूप में जाना जाता है. 1615 में  इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम ने इसे मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में भेजा था.

अमेरिका के साथ रेयर अर्थ मिनरल्स की डील के बाद पाकिस्तान अमेरिका को अपना एक पोर्ट देने पर भी राजी हुआ है. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ने हाल ही में अमेरिका को अरब सागर तट पर स्थित पासनी पोर्ट को विकसित करने और संचालित करने का प्रस्ताव दिया है. यह पोर्ट बलूचिस्तान के ग्वादर जिले में स्थित है. 

अमेरिका को पासनी पोर्ट देना चाहता है पाकिस्तान

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यह प्रस्ताव पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर के सलाहकारों द्वारा अमेरिकी अधिकारियों को दिया गया है. इसका उद्देश्य अमेरिका को पाकिस्तान के आंतरिक खनिज संसाधनों (जैसे तांबा, एंटीमोनी और दुर्लभ मिट्टी) तक पहुंच प्रदान करना है. पासनी पोर्ट चीन द्वारा विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट से मात्र 100 किमी दूर और ईरान के चाबहार पोर्ट के निकट स्थित है. चाबहार पोर्ट में भारत का भारी निवेश है.

इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 1.2 अरब डॉलर है, इसमें रेल नेटवर्क का निर्माण भी शामिल है. हालांकि इस प्रोजेक्ट के ब्लूप्रिंट में अमेरिकी सैन्य उपयोग या बेस की मनाही है. लेकिन पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया में इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंता है. 

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पीटीआई के सूचना सचिव शेख वक्कास अकरम ने मांग की कि संसद और राष्ट्र को इसमें शामिल किया जाए और ऐसे सभी सौदों का पूरा विवरण सार्वजनिक किया जाए. अकरम ने जोर देकर कहा कि पीटीआई “लोगों और राज्य के हितों की कीमत पर किए गए समझौतों को कभी स्वीकार नहीं करेगी.

इमरान की पार्टी ने मुगल बादशाह की गलती याद दिलाई

शेख वक्कास अकरम ने पाकिस्तानी हुक्मरानों से आग्रह किया कि वे मुगल सम्राट जहांगीर के 1615 में सूरत बंदरगाह पर अंग्रेजों को व्यापारिक अधिकार देने के फैसले के “विनाशकारी परिणामों” से सीख लें. जिसके कारण आखिरकार हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हुआ. अविभाजित भारत के इतिहास को याद करते हुए पीटीआई ने पाकिस्तानी सत्ता को आगाह किया है.

क्या था 1615 में जहांगीर और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुआ समझौता

1615 में मुगल बादशाह जहांगीर ने अंग्रेजों को सूरत बंदरगाह से व्यापार करने की अनुमति दी थी. भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में ये एक अहम घटना थी. इसी घटना को लोग याद कर कहते हैं कि अंग्रेज हिन्दुस्तान आए तो थे व्यापार करने लेकिन मुगलों की नाकामियों और अंग्रेजों की शातिर चालों से वे यहां के मालिक बन बैठे.

जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी सर थॉमस रो की गुहार पर अंग्रेजों को सूरत पोर्ट से व्यापार करने की अनुमति दे दी. सूरत उस समय भारत का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था जो यूरोपीय व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र था.

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कैसे इस समझौते से हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों की गुलामी का रास्ता साफ हुआ?

अंग्रेजों को सूरत में व्यापार की अनुमति मिलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के आर्थिक संसाधनों तक पहुंच मिली. उन्होंने कपड़ा, मसाले, और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार शुरू किया, जिससे कंपनी को भारी मुनाफा हुआ. इस आर्थिक शक्ति ने अंग्रेजों को भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर दिया. 

भारत से हुई कमाई का इस्तेमाल अंग्रेजों ने भारत को ही गुलाम बनाने में करना शुरू कर दिया. उनके मन में लालच बढ़ा. अंग्रेजों ने व्यापारिक चौकियों को सैन्य किलों में बदलना शुरू किया. सूरत में उनकी उपस्थिति ने उन्हें स्थानीय शासकों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने और अन्य यूरोपीय शक्तियों जैसे पुर्तगालियों और डचों से कॉम्पीटिशन करने में मदद की. 

18वीं शताब्दी तक अंग्रेजों ने अपनी सैन्य और राजनैतिक शक्ति बढ़ाई. जिसका परिणाम प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों में उनकी जीत के रूप में सामने आया. इन जीतों ने बंगाल पर उनका नियंत्रण स्थापित किया जो भारत में अंग्रेजी शासन की आधारशिला बनी. 

तो क्या ट्रंप टॉमस रो हैं?

इमरान की पार्टी ने यही वाकया आसिम मुनीर और शहबाज शरीफ को याद दिलाया है. इमरान की पार्टी शहबाज शरीफ को जाली पीएम कहती है. इनका आरोप है कि ये सरकार जनमत में हेर फेरकर बनाई गई है. पाकिस्तानी आर्मी चीफ को पीटीआई ऐसे किसी भी समझौते को करने के लिए अनाधिकृत मानती है. उनके मुताबिक ये समझौते पाकिस्तान की संसद के जरिये होने चाहिए थे. 

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सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान द्वारा अमेरिका को पासनी पोर्ट को अमेरिका को सौंपना इतिहास को दुहराना है. क्या जिस तरह 1615 में टॉमस रो ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी बनकर भारत आया था. उसी तरह ट्रंप अपने व्यापारिक हितों के लिए पाकिस्तान पर डोरे डाल रहे हैं और पासनी पोर्ट पर कब्जा करना चाहते हैं. इस डील में आसिम मुनीर का रोल कुछ-कुछ जहांगीर जैसा है. 

अमेरिका-पाकिस्तान के रेयर अर्थ मिनरल्स डील को समझिए

अमेरिकी कंपनी यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स ने सितंबर में पाकिस्तान के साथ देश में खनिज प्रोसेसिंग और विकास सुविधाएं स्थापित करने के लिए लगभग 500 मिलियन डॉलर के निवेश हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था. 

पाकिस्तान ने हाल ही में इसी सौदे को आगे बढ़ाने के लिए खनिज नमूनों की अपनी पहली खेप अमेरिका भेजी है.

पाकिस्तान के फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (एफडब्ल्यूओ) के सहयोग से अमेरिका को भेजे गए इस शिपमेंट में एंटीमनी, कॉपर कॉन्संट्रेट और नियोडिमियम तथा प्रेजोडायमियम जैसे दुर्लभ मृदा (रेयर अर्थ) तत्व शामिल हैं. 

एक बयान में USSM ने इस डिलीवरी को "पाकिस्तान-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी में एक मील का पत्थर" बताया और कहा कि इससे पाकिस्तान में रेयर अर्थ मिनरल्स को खोजने और प्रोसेस करने के लिए एक पूरी वैल्यू चेन स्थापित करने में मदद मिलेगी.

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डॉन ने एक रिपोर्ट में दावा किया है पाकिस्तान की खनिज संपदा का अनुमानित भंडार लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर का है. ये आकलन इसे दुनिया के सबसे संसाधन संपन्न देशों में से एक बनाता है.

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