भारत के पड़ोसी देश नेपाल में चुनावी सरगर्मी तेज चल रही है. गिनती की प्रक्रिया अभी भी पूरी नहीं हुई है, किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत भी नहीं मिला है और पीएम को लेकर भी असमंजस की स्थिति है. इस समय नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, उसके खाते में 55 सीटें आ चुकी हैं. वहीं केपी ओली की पार्टी भी ज्यादा पीछे नहीं है और 44 सीटें जीत ली गई हैं. लेकिन किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत के लिए 138 सीटें जीतनी है, उस स्थिति में कोई भी पहुंचता नहीं दिख रहा है.
यहां ये समझना जरूरी है कि नेपाल के 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 165 का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से होता है. वहीं जो बाकी 110 होते हैं, वो आनुपातिक चुनाव प्रणाली से चुने जाते हैं. पत्यक्ष मतदान वालीं 165 सीटों में से 162 सीटों के नतीजे आ गए हैं. यानी कि सिर्फ तीन और सीटों पर नतीजे आने बाकी हैं. ऐसे में ये साफ हो चुका है कि शेर बहादुर देउबा की पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई है. लेकिन अभी बहुमत तक पहुंचने के लिए उसे कई दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ेगा. कहा जा रहा है कि नेपाली कांग्रेस में इस समय पीएम पद को लेकर होड़ मची हुई है. नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता प्रकाश मान सिंह तो पहले ही कह चुके हैं कि आवंटित सीटों का निर्धारण करने के बाद ही संसदीय दल का नेता चुना जाएगा. रेस में देउबा इस बार भी सबसे आगे चल रहे हैं, लेकिन क्योंकि कई दूसरे नेता भी आस लगाए बैठे हैं, ऐसे में अभी खुलकर कुछ भी बोलने से बचा जा रहा है.
जो नतीजें आए हैं, उनसे ये भी स्पष्ट हो गया है कि CPN-UML को सीटें भले कम मिल रही हों, लेकिन वोट के मामले में वो सबसे आगे है. CPN-UML को अब तक 27,73,999 वोट मिले हैं. वहीं नेपाली कांग्रेस को इस चुनाव में 26,44,241 वोट मिले हैं. दूसरी पार्टियों की बात करें तो CPN-MC को 11,61,256, RSP को 1119,996 वोट मिले हैं. पार्टियों का ये प्रदर्शन दिखा रहा है कि इस चुनाव में कहने को दो पार्टियां सबसे बड़ी रहीं, लेकिन दूसरे कई दलों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है. बड़ी बात ये है कि ज्यादातर दलों को तीन प्रतिशत से ज्यादा मत मिला है. इस बात का संज्ञान चुनाव आयोग ने भी लिया है और सात दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया है. वैसे 2017 में जब चुनाव हुए थे, तब 6 पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया था.