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सत्यार्थी और मलाला ने नोबेल शांति पुरस्कार समारोह में मोदी-नवाज के न आने पर जताया अफसोस

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं से अमन को गले लगाने की अपील करते हुए कहा कि विश्वास और मित्रता ही दक्ष‍िण एशिया में स्थायी शांति की कुंजी हैं. शांति के लिए नोबल मिलने से ठीक पहले ओस्लो में कैलाश और मलाला ने बच्चों की बेहतरी के लिए काम करने का ऐलान किया.

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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं से अमन को गले लगाने की अपील करते हुए कहा कि विश्वास और मित्रता ही दक्ष‍िण एशिया में स्थायी शांति की कुंजी हैं. शांति के लिए नोबल मिलने से ठीक पहले ओस्लो में कैलाश और मलाला ने बच्चों की बेहतरी के लिए काम करने का ऐलान किया. पुरस्कार समारोह में दोनों देशों के पीएम के न आने पर इन्होंने अफसोस भी जताया है.

नोबेल पुरस्कार के ऐलान के बाद मलाला ने ख्वाहिश जाहिर की थी, कि पुरस्कार के वक्त वो चाहेगी कि भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी मौजूद रहें. दोनों देशों के बीच अमन का नया रास्ता इसी बहाने खोजा जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. लेकिन मलाल इस बात का, कि इस गुजारिश का कोई जवाब ही नहीं मिला.

भारत और पाकिस्तान के इन दो चेहरों को नोबेल का साझा सम्मान ऐसे समय में मिल रहा है, जब दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख हैं. सरहद पर तनाव है, बातचीत में अपनी बात पर अड़ने और मुलाकात में भी मुंह फेरने की नौबत है.

पुरस्कार समारोह की पूर्व संध्या पर मंगलवार को सत्यार्थी ने कहा, 'विश्वास और मित्रता भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति के लिए महत्वपूर्ण है.’ उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच संबंध दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है.’

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सत्यार्थी ने कहा कि वह भारत और पाकिस्तान तथा दूसरे देशों में भी इसको लेकर प्रयास करेंगे कि युवक और बच्चे कैसे साथ मिलकर अमन की राह पर चल सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘शांति ऐसी कोई चीज नहीं है कि उसको लेकर सिर्फ मेज पर बातचीत हो सकती और इसे स्थायी बनाया जा सकता है और न ही ऐसी कोई चीज मंदिरों और मस्जिदों में पढ़ाई जा सके. शांति हर बच्चे का बुनियादी और मानवाधिकार है.’

सत्यार्थी ने कहा, ‘हमारे युवकों को इसे स्वीकार करना चाहिए कि हम सम्मान, आजादी, अच्छी शिक्षा और शांति के साथ जिंदगी गुजारना चाहते हैं. और अगर इस राह में कोई अवरोध आता है तो फिर भारत और पाकिस्तान के युवाओं को मलाला जैसी हमारी बेटियों के नेतृत्व में शांति के लिए लड़ना चाहिए.’ सत्यार्थी ने कहा कि धार्मिक नेता दुनिया में सहिष्णुता का प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

सत्यार्थी के विचारों का समर्थन करते हुए मलाला ने कहा, ‘भारत और पाकिस्तान को अमन को गले लगाने की जरूरत है.’ मलाला ने कहा, ‘अगर हम बच्चों को सहिष्णुता, धर्य और शांति के बारे में शिक्षा देते हैं तो खुदा के करम से भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्ते होंगे और हम फिर से भाइयों की तरह होंगे.’ उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बच्चों को तालीम मिलने के बाद ही दोनों मुल्कों के रिश्तों में सुधार होगा. मलाला ने कहा, ‘यह मेरी ख्वाहिश थी कि दोनों मुल्कों के पीएम यहां साथ खड़े होते और अमन के बारे में बात करते. यह बहुत बड़ी चीज होती.’

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60 साल के सत्यार्थी और 17 साल की मलाला को यह पुरस्कार संयुक्त रूप से दिया जा रहा है. मलाला पाकिस्तान से शांति का नोबेल पाने वाली पहली शख्सियत होंगी. साथ ही उनका नाम सबसे कम उम्र की नोबेल विजेता के रूप में भी दर्ज होगा. वहीं 'बचपन बचाओ आंदोलन' के अगुवा कैलाश सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले शख्स होंगे, जिन्हें शांति का नोबल पुरस्कार मिला.

(भाषा से इनपुट)

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