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भारतीय सैनिकों को मारकर खा गए जापानी दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान

दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा रहे हजारों भारतीय जवानों को जापान की सेना ने सरेंडर के बाद अमानवीय ढंग से मारा और फिर उनकी लाश को खा गए. इतना ही नहीं जिंदा सैनिकों को टारगेट प्रैक्टिस के लिए भी इस्तेमाल किया गया. गोलियां खाने के बाद भी जिन जवानों की सांस चलती पाई गई, उन्हें चाकू भोंककर मार दिया गया. ये खुलासा उस वक्त के रॉयटर्स के एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार ने एजेंसी को भेजे अपने संदेश में किया था.

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दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा रहे हजारों भारतीय जवानों को जापान की सेना ने सरेंडर के बाद अमानवीय ढंग से मारा और फिर उनकी लाश को खा गए. इतना ही नहीं जिंदा सैनिकों को टारगेट प्रैक्टिस के लिए भी इस्तेमाल किया गया. गोलियां खाने के बाद भी जिन जवानों की सांस चलती पाई गई, उन्हें चाकू भोंककर मार दिया गया. ये खुलासा उस वक्त के रॉयटर्स के एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार ने एजेंसी को भेजे अपने संदेश में किया था.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक पत्रकार ने जो संदेश भेजा, वह इस प्रकार था. जापानी सेना के लेफ्टिनेंट हिसाता तोमियासू न्यू गुएना इलाके में 14 भारतीय सैनिकों को मारने और फिर उन्हें खाने के दोषी पाए गए हैं. उन्हें इस जुर्म के ऐवज में फांसी की सजा दी गई है. जापानियों के चंगुल से बचे कई भारतीय सैनिकों ने भी इस बात की तस्दीक की थी. ऐसे वक्त में जब नेता जी सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न दिए जाने की खबर जोरों पर है, उनकी बनाई आजाद हिंद फौज खुद ही ध्यान में आ जाती है. इस फौज का निर्माण 15 फरवरी 1942 को जापानियों के सामने सरेंडर करने वाले ब्रिटिश इंडियान आर्मी के 40 हजारों जवानों से हुआ था. लगभग 30 हजार जवान आजाद हिंद फौज में आ गए थे, मगर 10 हजार भारतीय जवान और अफसर ऐसे भी थे, जिन्होंने पाला नहीं बदला. ऐसे में उन्हें युद्ध बंदी के तौर पर रखा जाना चाहिए था. उन्हें यातना के लिए जापानी सेना ने पहले जकार्ता के एक हिस्से में और फिर समुद्री द्वीप समूह न्यू गुएना भेज दिया. जापानी सेना के अधीन इन कैंपों में भारतीय अफसरों को बात बात पर थप्पड़ मारकर जलील किया जाता था. अगर सिपाही जापानी अफसर को हल्के से सैल्यूट मारते या डबल ड्यूटी के दौरान कुछ पल के लिए ठहर भी जाते तो गाज हिंदुस्तानी अफसरों पर गिरती.

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सिपाहियों पर टारगेट प्रैक्टिस
जल्द ही थके हुए युद्ध बंदियों के दस्ते को एक दूसरी जगह पर ले जाया जाने लगा. बाद में पता चला कि जापानी पैदल सेना में आए नए रंगरूटों को इन युद्धबंदियों के ऊपर फायरिंग की प्रैक्टिस करने को कहा गया. इस दौरान जो सिपाही जिंदा बच जाते, उन्हें बंदूक के आगे लगने वाली संगीन से मारा जाता.

जाट रेजिमेंट के जमादार ने किया खुलासा
1945 में ऑस्ट्रेलियाई बचाव दल के हाथ ब्रिटिश इंडियान आर्मी का एक जमादार लगा. वह 4-9 जाट रेजिमेंट का था. उसका नाम था अब्दुल लतीफ. लतीफ ने बताया कि न्यू गुएना में सिर्फ भारतीय सिपाही ही नहीं स्थानीय लोग भी जापानी सैनिकों का भोजन बनते थे. जापानी सेना का एक डॉक्टर प्रिजनर कैंप में राउंड लगाता था और सबसे हट्टे कट्टे सिपाहियों को छांटकर ले जाता था. ये सिपाही फिर कभी नहीं लौटते थे. भारतीय अफसरों ने बताया था कि जापानी अफसर सिपाहियों को मारकर उनका लिवर, जांघ, हाथ और पैरों का मांस पकाकर खा जाते थे.

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