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इजरायल: बेंजामिन नेतन्याहू फिर बन सकते हैं प्रधानमंत्री, एग्जिट पोल में दावा

इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू एक बार फिर प्रधानमंत्री बन सकते हैं. टीवी चैनलों के एग्जिट पोल में नेतन्याहू की पार्टी लिकुड को स्पष्ट बहुमत मिलते हुए दिख रहा है. हालांकि उनकी पार्टी केवल जादुई आंकड़े को छूती हुई ही दिख रही है.

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बेंजामिन नेतन्याहू (फाइल फोटो)
बेंजामिन नेतन्याहू (फाइल फोटो)

इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू एक बार फिर प्रधानमंत्री बन सकते हैं. एक नवंबर को हुए चुनाव के बाद टीवी चैनलों के एग्जिट पोल में पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनने का अनुमान लगाया जा रहा है. मंगलवार को प्रसारित किए गए एग्जिट पोल ने नेतन्याहू के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी गुट को स्पष्ट बहुमत मिलते हुए दिख रहा है. 
इजरायल के टीवी चैनलों पर स्थानीय समय के अनुसार रात करीब 10 बजे मतदान केंद्र बंद होने के बाद एग्जिट पोल प्रसारित किए गए. एग्जिट पोल में नेतन्याहू समर्थक गुट ने 120 सदस्यीय इजरायल की संसद में 61-62 सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया. इजरायल में बहुमत के लिए किसी भी पार्टी को कम से कम 61 सीटें जीतनी होती हैं.   

एग्जिट पोल के अनुसार, प्रधान मंत्री यायर लापिड के नेतृत्व वाले ब्लॉक को 54-55 सीटों पर रखा गया, जबकि कई चैनलों ने नेतन्याहू के नेतृत्व वाले ब्लॉक को 62 सीटें दीं. हालांकि चैनल 12 ने उनकी सीटों को घटाकर 61 मिलने का अनुमान लगाया.  

नेतन्याहू की लिकुड पार्टी बहुमत का जादुई आंकड़ा पा सकती है. इससे पहले किए गए चुनावी सर्वे में उनकी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा था, हालांकि कहा जा रहा था कि सहयोगी दलों के सहारे नेतन्याहू सत्ता में वापसी कर सकते हैं.  

नेतन्याहू के प्रतिद्वंदी यैर लैपिड भी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं, उनकी Yesh Atid party दूसरे पायदान पर रह सकती है. वहीं इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री नैफताली बेन्नेट ने इस बार खुद को चुनाव से दूर कर लिया था. उनके इस फैसले ने चुनावी मुकाबले को नेतन्याहू बनाम लैपिड बना दिया था. लैपिड की Yesh Atid party को इस सर्वे में 25 सीटें दी जा रही थीं. उनके नेतन्याहू विरोधी गुट को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो उनका आंकड़ा 59 पहुंच जाता है, यानी कि बहुमत दो सीटें कम.

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इजरायल की चुनावी व्यवस्था क्या है? 

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 120 सीटों वाले इजरायल चुनाव में जिस भी पार्टी के पक्ष में वोटर टर्नआउट ज्यादा रहता है, उसकी जीतने की उम्मीद ज्यादा बन जाती है. असल में इजरायल में जनता कभी भी किसी उम्मीदवार के लिए वोट नहीं करती है, उनकी तरफ से पार्टी को वोट दिया जाता है. अगर संसद में किसी को भी सीट चाहिए होती है तो नेशनल वोट का कम से कम 3.25% चाहिए ही होता है. यानी कि इजरायल में प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन वाली चुनावी व्यवस्था चलती है जहां पर जिस पार्टी को जितना वोट मिलेगा, उसी के हिसाब से उसे सीटें भी मिलेंगी. 

इजरायल में अस्थिरता वाला दौर 

इजरायल की राजनीतिक अस्थिरता की जिस वजह से अब तक पांच साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं और पांचवीं बार होने वाले हैं. इसकी शुरुआत साल 2018 में हो गई थी जब बहुमत से एक सीट कम होने की वजह से मध्यावधि चुनाव करवाया गया था. उस चुनाव में नेतन्याहू को तो बहुमत नहीं मिलता, लेकिन वे दूसरे दूलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहे. जब वो गठबंधन नहीं बन पाया, तब नेतन्याहू ने बड़ा फैसला लेते हुए फिर चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया. इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख बेनी गैंट्स को सरकार बनाने का मौका दिया जा सकता था, लेकिन उसकी जगह फिर आम चुनाव का ऐलान कर दिया गया.  

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2019 में भी नहीं मिला किसी पार्टी को बहुमत

उसके बाद 17 सितंबर 2019 को इजरायल में फिर चुनाव होते हैं, टक्कर बराबर की रहती है और हमेशा की तरह किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता. सरकार क्योंकि कोई भी दल बनाने की स्थिति में नहीं आ पाता, इसलिए तीसरी बार चुनाव का ऐलान कर दिया जाता है. अब आखिरी बार 23 मार्च, 2021 को इजरायल में चुनाव हुए थे. तब भी मुकाबला तो बराबर का ही रहा, लेकिन अंत में सरकार बनाने में यैर लैपिड सफल हो गए. उनके नेतन्याहू के खिलाफ वाले दलों का जो गुट तैयार था, वो सभी साथ आए और सरकार बनाई गई. लेकिन गठबंधन पूरे एक साल भी नहीं चल सका और अब फिर देश को चुनाव में झोंक दिया गया. 

 

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