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33 घंटे मलबे में दबी रही महिला, भारतीय टीम ने बचाई जान

नेपाल में भूकंप के बाद 33 घंटे तक मलबे में सुमीता सिलुआला दबी रही, भारतीय टीम ने उसे बसुंधरा में धवस्त एक मलबे के नीचे से निकाला. जान बचने के बाद सुमीता ने कहा, 'मुझे ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे मैं दूसरी दुनिया से आई हूं.'

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नेपाल में भूकंप से तबाही
नेपाल में भूकंप से तबाही

नेपाल में भूकंप के बाद 33 घंटे तक मलबे में सुमीता सिलुआला दबी रही, भारतीय टीम ने उसे बसुंधरा में धवस्त एक मलबे के नीचे से निकाला. जान बचने के बाद सुमीता ने कहा, 'मुझे ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे मैं दूसरी दुनिया से आई हूं.'

इस महिला की अविश्वसीय कहानी बहुत लोगों में एक उम्मीद की किरण जगा देगी. सुमीता ने कहा, 'जब भूकंप आया तो मेरे पति और बेटा बाहर थे. अचानक पांच मंजिला मकान जोर-जोर से हिलने लगा. मैं रसोई में बर्तन धो रही थी. मुझे उस वक्त कुछ समझ ही नहीं आया.'

सुमीता ने दरवाजे को पकड़ने की कोशिश की, उसी तरह वह घंटों खड़ी रही, उसके ऊपर, लड़की और सीमेंट गिरने लगा. उन्होंने बताया, 'मैं इस उम्मीद से चिल्लाती रही कि कोई तो बाहर होगा, जो मेरी आवाज सुनेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.' उसी रात उसने मलबे में दबे हुए बाहर से कुछ आवाजें आती सुनीं. वह फिर चीखी. बाहर खड़े कुछ लोग बोल रहे थे, 'अंदर कोई जिंदा है, लेकिन कोई रास्ता नहीं है कि उसे निकालकर लाया जाए. अभी चलो, हम बाद में आएंगे.'

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सुमीता ने बताया, 'बाहर खड़े लोगों की ये बात सुनकर मेरा दिल टूट गया. मैंने चीख कर कहा, जो मर गए वो चले गए, मैं जिंदा हूं मुझे बाहर निकालो.' सुमीता ने कहा कि अगला 24 घंटा बहुत लंबा था. उसने सोच लिया था कि उसे कोई बचा नहीं पाएगा.

रविवार रात को कुछ लोगों का समूह आया और उसी जगह से आवाज देने लगा, जहां से पहले वाले दिन के लोग दे रहे थे. सुमीता ने कहा, 'ये लोग हिंदी में बात कर रहे थे, उन भारतीय लोगों के साथ कुछ और लोग थे, जिन्होंने मुझे बचाया.'

इस लंबे संघर्ष के बाद सुमीता को बाहर निकालकर अस्पताल ले जाया गया, अस्पताल कौन सा था ये उसे नहीं पता चला. सोमवार सुबह तीन बजे उसे अस्पताल से छुट्टी दी गई. सुमीता ने कहा, 'डॉक्टरों सहित सभी हैरान थे, क्योंकि मुझे कोई बड़ी चोटें नहीं आई थी. मैं 33 घंटे मलबे के अंदर दबकर भी बची हुई थी और अब मैं अपने घर जा रही थी. मैं एक अलग दुनिया में कदम रखने जा रही थी.'

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