पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को पाकिस्तान की जीत बताया है. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने और अमेरिकी सैनिकों के अपने देश वापसी के बाद तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमा लिया था और ये इस्लामिक चरमपंथी संगठन अफगानिस्तान में सरकार भी बना चुका है. इसके बाद से ही तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर काफी चर्चाएं हो रही हैं.
अमेरिका और श्रीलंका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत रह चुके हुसैन हक्कानी ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा कि अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति पाकिस्तान के लिए जीत है. पाकिस्तान ने हमेशा से ही भारत को ध्यान में रखकर अपनी सुरक्षा नीति बनाई है और इतने सालों से वह तालिबान को समर्थन दे रहा था. वे तर्क देंगे कि वे उनका सपोर्ट कर रहे थे. लेकिन जमीनी हकीकत को पहचानना जरूरी है.
तालिबान लीडरशिप को पाकिस्तान ने पहुंचाई मदद
हक्कानी ने कहा कि तालिबान लीडरशिप को पाकिस्तान ने काफी मदद की है. तालिबान की लीडरशिप से जुड़े कई लोगों के सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े बेनेफिट्स पाकिस्तान में हैं. अगर इस तरह का सपोर्ट तालिबानियों को पाकिस्तान मुहैया नहीं कराता तो तालिबान लीडरशिप के हालात बेहद मुश्किल हो सकते थे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है. उन्होंने कहा कि दुनिया अगर चाहे तो तालिबान पर प्रतिबंध लगा सकती है लेकिन इन प्रतिबंधों का बोझ अफगानिस्तान और उनके लोगों पर नहीं पड़ना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि तालिबान के आने से पाकिस्तान पर काफी नकारात्मक प्रभाव भी पड़ने जा रहा है क्योंकि इंटरनेशनल कम्युनिटी अफगानिस्तान में होने वाले हालात को लेकर लगातार पाकिस्तान को ही दोषी ठहराएगी.
हक्कानी ने अफगानिस्तान में अमेरिका की रणनीति की भी आलोचना की. उन्होंने कहा, "अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिए लंबी अवधि की कोई योजना नहीं बनाई, पिछले 20 सालों से वो एक-एक साल की योजना बनाते रहे. अफगानिस्तान रणनीतिक रूप से उनके लिए शायद उतना अहम नहीं था."