अमेरिका में ट्रंप की सरकार में पाकिस्तान को बहुत नजरअंदाज किया गया, जब बाइडेन की सरकार आई तो पाकिस्तान को लगा कि अब अमेरिका के साथ उसके रिश्ते सुधरेंगे. पाकिस्तान इस बात से परेशान हो गया है कि अमेरिका के लिए उसकी अहमियत अफगानिस्तान के दायरे से बाहर नहीं है. अब इसी झल्लाहट में पाकिस्तान ने अमेरिका को खुले आम ब्लैकमेल किया है. पाकिस्तान ने कहा है कि अगर अमेरिका पाकिस्तान से दूर जाता है तो दूसरे देशों से उसकी करीबी बढ़ जाएगी. पाकिस्तान का इशारा अमेरिका के प्रतिद्वंद्वी चीन की तरफ था.
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पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि उनके देश की प्राथमिकताएं बदल गई हैं और अमेरिका को अतीत की खुमारी से बाहर आकर इस्लामाबाद को नए नजरिए से देखना चाहिए. कुरैशी ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका को अतीत से बाहर आकर इस्लामाबाद को "अफगानिस्तान प्रिज्म" से हटकर देखना चाहिए और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के द्विपक्षीय पक्ष पर ध्यान देना चाहिए.
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शाह महमूद कुरैशी ने जापानी अखबार निक्की को दिए एक साक्षात्कार में जोर देकर कहा कि इस्लामाबाद की प्राथमिकता में अब आर्थिक विकास और मानव विकास शामिल है. शाह महमूद कुरैशी ने कहा, 'हमने उन्हें (अमेरिका) बताया है कि पाकिस्तान की विचार प्रक्रिया बदल गई है. अमेरिकी प्रशासन को अतीत के अपने हैंगओवर से बाहर आना चाहिए. यह एक नया, रूपांतरित पाकिस्तान है, जिसमें हमारी प्राथमिकताएं बदल गई हैं. हमारी प्राथमिकता आर्थिक विकास, मानव विकास, आर्थिक सुरक्षा, आतंकवाद का उन्मूलन और चरमपंथ को मिटाना है.'
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अमेरिका और चीन के साथ गठजोड़ के सवाल का जवाब देते हुए शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिकियों से कह रहा है कि, 'यदि आप हमसे दूर जाते हैं तो कोई और हमारे करीब आएगा.' पाकिस्तान के विदेश मंत्री का सीधा इशारा चीन की तरफ था जो पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है.
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शाह महमूद कुरैशी ने अमेरिका से कहा, 'आप पाकिस्तान में निवेश नहीं कर रहे हैं, आप पाकिस्तान से नहीं जुड़ रहे हैं...तो आप इस द्विपक्षीय संबंध को मजबूत बनाने में कैसे मदद कर रहे हैं? ऐसा करने का एकमात्र तरीका परस्पर जुड़े रहना है. अब यदि आप केवल लेन-देन का रिश्ता रखते हैं, तो यह कारगर साबित नहीं होगा. आप केवल "अफगानिस्तान, अफगानिस्तान, अफगानिस्तान" कहते नहीं रह सकते. हमारा एक द्विपक्षीय पक्ष भी है.'
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अफगानिस्तान के महत्व पर जोर देते हुए शाह महमूद कुरैशी ने अमेरिका से कहा कि इस्लामाबाद युद्धग्रस्त देश में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए जो कुछ भी कर सकता है, वह कर रहा है, "लेकिन हमें अफगानिस्तान के चश्मे से देखना बंद करें." साक्षात्कार के दौरान शाह महमूद कुरैशी ने यह भी कहा कि भारत के साथ अमेरिका के संबंध "नए और फिर से जीवंत हो उठे हैं."
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जैसा कि अमेरिका का अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाना जारी है, विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका के लिए प्रासंगिक रहेगा, भले ही वे अपने पड़ोसी देश को छोड़ दें. शाह महमूद कुरैशी ने कहा, "हमारी भू-रणनीतिक स्थिति महत्वपूर्ण है. हमारे पास 20 करोड़ लोग हैं. हम इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में महत्वपूर्ण हैं. हम एक परमाणु शक्ति सपंन्न देश हैं. उन्हें (अमेरिका) हमारी आवश्यकता होगी. इसलिए पाकिस्तान के साथ बने रहना बेहतर है."
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असल में, डोनाल्ड ट्रंप जब तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे, तब तक महाशक्ति के साथ पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य नहीं रहे. जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद इमरान खान की सरकार को उम्मीद थी कि पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध पटरी पर आएंगे. अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने की बात कर रहा है. अमेरिका ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खात्मे को लेकर पड़ोसी देशों के सैन्य बेस का इस्तेमाल करने की भी बात कही. हालांकि, पाकिस्तान ने अपनी धरती पर अमेरिकी सेना के लिए बेस मुहैया कराने से इनकार कर दिया.
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बहरहाल, इन सब घटनाक्रमों के बावजूद पाकिस्तान हर स्तर पर अमेरिका से अपने द्विपक्षीय रिश्तों को बहाल करने का प्रयास कर रहा है. पाकिस्तान के नव नियुक्त राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ मोईद यूसुफ ने पिछले रविवार को जिनेवा में अपने अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन से गुपचुप तरीके से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने जेक सुलिवन के सामने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर एक ब्लूप्रिंट पेश किया. इसमें पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों के भविष्य की परिकल्पना की गई है.
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द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक अतीत को भूलने की बात कहते हुए युसुफ ने पाकिस्तानी योजना प्रस्तुत की, जिसमें सुरक्षा और रक्षा पर नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था और व्यापार पर आधारित अमेरिका के साथ द्विपक्षीय सहयोग की मांग की गई है. इन घटनाक्रमों से परिचित सूत्रों ने द एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया कि जहां तक अमेरिका के साथ रिश्तों की बात है, पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर नजरिये को बदलने की मांग कर रहा है.
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Pleased to meet US NSA @JakeSullivan46, yesterday. Pakistan and US delegations held positive discussions on bilateral, regional and global issues of mutual interest. Both sides agreed to continue the conversation to advance cooperation in Pak-US bilateral relations.
— Moeed W. Yusuf (@YusufMoeed) May 24, 2021
पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंधों को अक्सर लेन-देन के रूप में देखा जाता है क्योंकि इस्लामाबाद लंबे समय से वॉशिंगटन पर निर्भर था. इस्लामाबाद के सहयोग और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका से असंतुष्टि जाहिर करते हुए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनवरी 2018 में पाकिस्तान को सभी सुरक्षा सहायता बंद कर दी थी.
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हालांकि, नीति निर्माताओं के बीच इस बात पर रजामंदी बनी है कि पाकिस्तान को भू-रणनीतिक से भू-अर्थशास्त्र की ओर बढ़ने की जरूरत है. इस साल की शुरुआत में आयोजित इस्लामाबाद सुरक्षा वार्ता में पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य नेतृत्व ने उस बदलाव के बारे में बात की थी. उस दृष्टिकोण के अनुरूप प्रधानमंत्री इमरान खान ने मार्च में एक शीर्ष समिति का गठन किया, जिसे बाइडन प्रशासन के तहत अमेरिका के साथ संबंधों पर एक नई रणनीति तैयार करने का काम सौंपा गया था.
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इसे पाकिस्तान और अमेरिका द्वारा अपनाए गए पहले के दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप से अलग हटने के रूप में देखा जा रहा है जो काफी हद तक अफगानिस्तान के साथ सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित था. सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक 'ब्लूप्रिंट' के साथ जिनेवा गए थे, जिसमें रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा सहयोग और अफगानिस्तान से परे अमेरिका के साथ अपने संबंधों को व्यापक बनाने की पाकिस्तान की इच्छा की परिकल्पना की गई है. विभिन्न मंत्रालयों और विभागों ने पाकिस्तान और अमेरिका के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों की पहचान करते हुए कई प्रस्ताव तैयार किए हैं.
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