तालिबान ने चीन को अफगानिस्तान में निवेश के लिए न्योता देने के साथ साथ सुरक्षा की गारंटी दी है. लेकिन इसके बावजूद चीन तालिबान के उभार को लेकर आशंकित है. चीन को इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि उत्तर-पश्चिमी चीन के शिनजियांग वीगर स्वायत्त क्षेत्र में अफगानिस्तान की सीमा पर वखान कॉरिडोर के जरिये फिर आतंकवाद पनप सकता है. तालिबान का अफगानिस्तान के उत्तरपूर्वी बदख्शां प्रांत पर कब्जा हो गया है और वह सीमा से लगे चीन के शिनजियांग की तरफ बढ़ रहा है.
हालांकि, चीनी पर्यवेक्षकों के मुताबिक आतंकवादी गुटों के वखान कॉरिडोर के माध्यम से शिनजियांग में एंट्री लेने की आशंका नहीं है. लेकिन यदि अफगानिस्तान में स्थिति बिगड़ती है, तो मध्य एशिया के देशों के माध्यम से चीन को तालिबान का खतरा बढ़ेगा. चीन का कहना है कि अफगानिस्तान की स्थिति का क्षेत्रीय स्थिरता पर सीधा असर पड़ता है और हालात को ठीक करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास जरूरी है.
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चीनी विदेश मंत्री वांग यी तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान की यात्रा पर हैं. अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थिति को लेकर चीनी विदेश मंत्री ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में सदस्य देशों के साथ चर्चा भी की.
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अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति के साथ तालिबान चुपचाप अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधारने के लिए खुद को बदल रहा है, पड़ोसी देशों की चिंताओं को कम करने की कोशिश के साथ उनके संग मित्रता कर रहा है. चीनी पर्यवेक्षकों का कहना है कि जिम्मेदार शक्तियों के तौर पर चीन और रूस अफगानिस्तान में मसलों को सुलझाने और उसके विकास के लिए मिलकर काम करेंगे. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन और रूस अफगानिस्तान में हस्तक्षेप ना करने की नीति अपना रहे हैं.
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चीन को क्यों लगता है खतरा? चीनी पर्यवेक्षकों का कहना है कि विदेशी सैनिकों की वापसी और तालिबान के लगातार मजबूत होने के साथ पश्चिमी मीडिया चीन के डर को बढ़ाचढ़ाकर पेश कर रहा है. पश्चिमी मीडिया का कहना है कि तालिबान के उभार से चीन के शिनजियांग में अस्थिरता पैदा हो रही है. फ्रांस 24 की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन शिनजियांग के पास अफगानिस्तान की सीमा पर हमलों से चिंतित है, और इससे चीन के आतंकवाद विरोधी कदमों को "झटका" लगा है.
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हालांकि, लान्झू विश्वविद्यालय में सिक्योरिटी स्टडीज के विशेषज्ञ काओ वेई ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि इस बात की बहुत कम संभावना है कि चरमपंथी और आतंकवादी गुट वखान गलियारे से चीन में एंट्री करें. सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग ने बताया कि कॉरिडोर भले ही लगभग 90 किलोमीटर लंबा है, लेकिन तकनीकी रूप से इसे बंद करना मुश्किल नहीं है.
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काओ वेई कहते हैं कि तालिबान 20 साल पहले जो था, अब वैसा नहीं है. 'दिस वीक इन एशिया' को दिए इंटरव्यू में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था कि तालिबान चीन को दोस्त की नजर से देख रहा है और उम्मीद है कि अफगानिस्तान में निवेश के लिए बीजिंग बातचीत करने को राजी होगा. तालिबान प्रवक्ता ने चीनी निवेशकों को सुरक्षा मुहैया कराने की गारंटी भी दी. तालिबान ने वीगर अलगाववादियों को अफगानिस्तान में दाखिल ना होने देने का वादा भी किया.
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तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते रूस की अपनी यात्रा के दौरान आश्वस्त किया कि वह अफगानिस्तान को दूसरे देशों पर हमला करने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा. विश्लेषकों का कहना है कि इन सभी घटनाक्रमों से पता चलता है कि तालिबान चुपचाप अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करने वाला राजनीतिक संगठन बनने की तरह बढ़ रहा है. वह सत्ता में हिस्सेदारी की तैयारी में है. काओ ने कहा, लेकिन यह समय बताएगा कि तालिबान की कथनी और करनी कोई अंतर है या नहीं?
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अमेरिका का खुफिया आकलन है कि बाहरी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में जो मौजूदा हालात हैं, उससे लगता है कि सरकार छह महीने में विद्रोहियों के सामने घुटने टेक देगी. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करने की तैयारी में है.
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चीनी विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर अफगानिस्तान में सुरक्षा खतरा बना रहा तो इसका असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा. आतंकियों के मध्य एशियाई देशों और पाकिस्तान के माध्यम से चीन में एंट्री की आशंका है.
काओ ने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों ने पिछले वर्षों में मध्य एशिया में कुछ आतंकवादी गुटों को पीछे हटने को मजबूर किया है. कई गुटों ने सीरिया का रुख कर दिया है. लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के साथ, हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या तालिबान समर्थित अल-कायदा फिर से खड़ा हो रहा है.
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काओ ने कहा कि चीन की तुलना में रूस अधिक दबाव में है. क्योंकि कुछ आतंकवादी गुट पूर्व सोवियत संघ के देशों के माध्यम से रूस में घुसपैठ कर सकते हैं काकेशस और चेचन्या तक पहुंच सकते हैं.
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शंघाई सहयोग संगठन(एससीओ) के सदस्य देशों के विदेश मंत्री 13 और 14 जुलाई को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुई बैठक में शामिल हुए. इन सभी देशों के चिंता के केंद्र में अफगानिस्तान है. एससीओ-अफगानिस्तान संपर्क समूह का 2018 में गठन किया गया था जिसका मकसद आतंकवाद मुक्त एक शांतिपूर्ण, स्थिर और आर्थिक रूप से समृद्ध अफगानिस्तान है. अफगानिस्तान के छह पड़ोसी देश SCO के सदस्य हैं. चीन और रूस के नेतृत्व में और 2001 में गठित SCO में भारत, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उजबेकिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं. अफगानिस्तान, मंगोलिया, बेलारूस और ईरान पर्यवेक्षक के तौर पर इसमें शामिल हैं.
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सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग का कहना है कि भारत अफगानिस्तान को रणनीतिक नजरिये से अहम मानता है. क्योंकि अफगानिस्तान उत्तर और पश्चिम में पाकिस्तान को घेरता है. अफगानिस्तान को भारत विरोधी ताकतों के लिए आश्रय नहीं बनने की गारंटी देने की भी आवश्यकता है. पिछले 20 वर्षों में, भारत ने अफगानिस्तान को 3 अरब रुपये की मदद की है. भारत के अफगान सरकार, क्षेत्रीय नेताओं और नागरिक के साथ अच्छे संबंध हैं. हालांकि तालिबान के साथ भारत के संबंध खराब थे और तालिबान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए वह इसके साथ संपर्क फिर से शुरू करने के लिए उत्सुक है, जो अफगानिस्तान में पाकिस्तान के प्रभाव को दर्शाता है.
(फाइल फोटो-PTI)